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बाबा सुतनखु का खत

गपशप

का हो लोगन कइसन हउअ जा बाल-बच्चा सब मस्ती में और सुनावल जाए। जइसे-जइसे गर्मी बढ़ल जात  ह वैसहि आनहि पानि का भी मिजाज बनल जात ह लोगन ध्यान रखल जा कहुं कुछ नुकीला टीना विना छत पे पड़ल ह त हटा देवल जा लोगन। कहुं केउ के घाव न लगे। खोख्ला पेड़ से भी सावधानी बरता लोगन और जे पेड़ छा गयल ओकर छटाई कर देवा जा लोगन। 

आज हमनी महुआ का पेड़ लगावे के विषय में बात करल जाइ जा लोगन। महुआ का पेड़ बड़ी जल्दी बढ़ा ला और ऊंचाई में २० मीटर ले ऊँचा होइ। एकर पत्ती साल भर हरा रही और छाह देत रही। एकर फल, लकड़ी और टहनी सब काम आवा ला। एगो और खासियत बा ई पड़े में एमे औषधिये गुण भी हो ला जे बहुत से बीमारी में काम आवा ला।

महुआ पे एक ते कविता भी बा आवा ओहु के पढ़ लेवल जाए :

महुआ के नीचे / हरिवंशराय बच्चन

           महुआ के,
महुआ के नीचे मोती झरे,
           महुआ के.
यह खेल हँसी,
यह फाँस फँसी,
यह पीर किसी से मत कह रे,
           महुआ के,
महुआ के नीचे मोती झरे,
           महुआ के.
अब मन परबस,
अब सपन परस,
अब दूर दरस,अब नयन भरे.
           महुआ के,
महुआ के नीचे मोती झरे,
           महुआ के.
अब दिन बहुरे,
अब जी की कह रे,
मनवासी पी के मन बस रे.
           महुआ के,
महुआ के नीचे मोती झरे,
           महुआ के.
घड़ियाँ सुबरन,
दुनियाँ मधुबन,
उसको जिसको न पिया बिसरे.
           महुआ के,
महुआ के नीचे मोती झरे,
           महुआ के.
सब सुख पाएँ,
सुख सरसाएँ,
कोई न कभी मिलकर बिछुड़े.
           महुआ के,
महुआ के नीचे मोती झरे,
           महुआ के.

(उत्तरप्रदेश की एक लोक धुन पर आधारित)

बाकि मिले पे।

- बाबा सुतनखु 

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