अमेरिकी इतिहास में यह दिलचस्प वाकया दर्ज है कि कभी कैदियों को सोने नहीं दिया जाता था, यानी उन्हें जागने की सजा दी जाती थी, लेकिन आज इंसान सबकुछ जल्दी पा लेने की दौड़ में अपनी खुशी से जाग रहा है। नतीजतन, तनाव और थकन
जैसी समस्या से जूझ रहा है। ऐसा नहीं की जागने की आदत इंसान में अचानक आई, यह बदलाव धीरे-धीरे हुआ। 1940 के दशक में लोग औसतन 8 घंटे सोया करते थे, मगर आज के दौर में लोग छह सवा छह घंटे की नींद ही ले रहे हैं, यानी 70 साल में इंसान की नींद के घंटों में करीब बीस फीसदी की कमी आई है...
नींद न मुझको आए...
आज की व्यस्तम जिंदगी में सोने के लिए वक्त निकाल पाना भी इंसान के लिए मुश्किल होता जा रहा है। यह सिर्फ भारत ही नहीं, दुनियाभर की समस्या बनता जा रहा है। नतीजतन, वह हर वक्त थका सा महसूस करता है। वाकई नींद क्या इतना जरूरी है, यह रिसर्च का विषय बन गया है। दुनियाभर के वैज्ञानिक इस तथ्य को तलाशने का प्रयास कर रहे हैं कि क्या हम हमेशा ही इतना थका हुआ महसूस करते थे? कनाडा की टोरंटो यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डेविड सैमसन इंसान के विकास का जीव विज्ञान पढ़ते-पढ़ाते हैं। वो इन दिनों प्राइमेट्स यानी बंदरों और इंसानों के कुनबे के विकास पर रिसर्च कर रहे हैं। इनमें बंदर हैं, लीमर हैं, लंगूर हैं, चिंपैंजी हैं और अब इंसान भी सैमसन की रिसर्च में शामिल हो गए हैं। अपने रिसर्च के दौरान सैमसन ने देखा, प्राइमेट्स यानी बंदर के परिवार के सदस्य, चिंपैंजी और ओरांगउटान जैसे जानवर 9 से 16 घंटे का वक़्त सोने में बिताते हैं। इस आधार पर एक मॉडल तैयार किया गया, जिसके हिसाब से इंसान को 10.3 घंटे की नींद लेनी चाहिए। लेकिन हम ऐसा नहीं करते हैं। अब दुनिया भर में इंसान की औसत नींद का वक्त 6-7 घंटे रह गया है।
गहरी नींद का ताल्लुक यादाश्त से
इंसान की नींद ही सिर्फ कम नहीं हुई है, बल्कि गहरी नींद का एक हिस्सा कम हुआ है। सोते समय नींद का एक हिस्सा गहरा होता है, जब इंसान ख्वाब देखता है। नींद के इस दौर के कई फ़ायदे हैं। इससे हमारी याददाश्त मज़बूत होती है और जज्बात काबू में रहते हैं।
झपकी भी जरूरी
रिसर्च के दौरान यह बात सामने आई कि यदि रात को नींद पूरी न हो पाए, तो दिन में कुछ देर की झपकी ली जा सकती है, जिससे नींद पूरी हो जाती है। बहुत से लोगों को रात में जल्दी सोकर सुबह उठना पसंद है, जबकि कुछ लोगों की रात में देर तक जाग कर सुबह देर से उठने की आदत होती है। यानी इंसान अपनी नींद से लंबे वक़्त से खिलवाड़ करता आ रहा है।
महान लोग भी नींद के हिमायती
अमरीका की वर्जिनिया टेक यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफ़ेसर रोजर ई. किर्च को इतिहास की क़िताबों के पन्ने पलटते-पलटते इंसान की नींद के इतिहास में दिलचस्पी हो गई। इसी दौरान उन्हें पता चला कि क़ैदियों को तो जागने की सज़ा भी दी जाती थी। इसके बाद उन्होंने यूरोप में औद्योगिक क्रांति से पहले के इतिहास को खंगाला, तो चार्ल्स डिकेंस से लेकर लेव टॉल्सटॉय तक ने अपने उपन्यासों और कहानियों में नींद का जिक्र किया है। किर्च कहते हैं कि इन विद्वानों की नज़र में नींद की बड़ी अहमियत थी। इस दौरान वो ध्यान लगाते थे। ख़ुद को वक़्त देते थे। आराम करते थे।
विषय विशेषज्ञों की माने, तो कुदरत से बढ़ती दूरी ने भी नींद को प्रभावित किया है। उसके अलावा अत्यधिक व्यस्तता, तकनीक का बढ़ता दायरा सभी ने मिलकर हमारी नींद में खलल डाला है। परिणामस्वरूप हम थका हुआ महसूस करते रहते हैं, लेकिन यह समझने का वक्त भी नहीं है।
जैसी समस्या से जूझ रहा है। ऐसा नहीं की जागने की आदत इंसान में अचानक आई, यह बदलाव धीरे-धीरे हुआ। 1940 के दशक में लोग औसतन 8 घंटे सोया करते थे, मगर आज के दौर में लोग छह सवा छह घंटे की नींद ही ले रहे हैं, यानी 70 साल में इंसान की नींद के घंटों में करीब बीस फीसदी की कमी आई है...
नींद न मुझको आए...
आज की व्यस्तम जिंदगी में सोने के लिए वक्त निकाल पाना भी इंसान के लिए मुश्किल होता जा रहा है। यह सिर्फ भारत ही नहीं, दुनियाभर की समस्या बनता जा रहा है। नतीजतन, वह हर वक्त थका सा महसूस करता है। वाकई नींद क्या इतना जरूरी है, यह रिसर्च का विषय बन गया है। दुनियाभर के वैज्ञानिक इस तथ्य को तलाशने का प्रयास कर रहे हैं कि क्या हम हमेशा ही इतना थका हुआ महसूस करते थे? कनाडा की टोरंटो यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डेविड सैमसन इंसान के विकास का जीव विज्ञान पढ़ते-पढ़ाते हैं। वो इन दिनों प्राइमेट्स यानी बंदरों और इंसानों के कुनबे के विकास पर रिसर्च कर रहे हैं। इनमें बंदर हैं, लीमर हैं, लंगूर हैं, चिंपैंजी हैं और अब इंसान भी सैमसन की रिसर्च में शामिल हो गए हैं। अपने रिसर्च के दौरान सैमसन ने देखा, प्राइमेट्स यानी बंदर के परिवार के सदस्य, चिंपैंजी और ओरांगउटान जैसे जानवर 9 से 16 घंटे का वक़्त सोने में बिताते हैं। इस आधार पर एक मॉडल तैयार किया गया, जिसके हिसाब से इंसान को 10.3 घंटे की नींद लेनी चाहिए। लेकिन हम ऐसा नहीं करते हैं। अब दुनिया भर में इंसान की औसत नींद का वक्त 6-7 घंटे रह गया है।
गहरी नींद का ताल्लुक यादाश्त से
इंसान की नींद ही सिर्फ कम नहीं हुई है, बल्कि गहरी नींद का एक हिस्सा कम हुआ है। सोते समय नींद का एक हिस्सा गहरा होता है, जब इंसान ख्वाब देखता है। नींद के इस दौर के कई फ़ायदे हैं। इससे हमारी याददाश्त मज़बूत होती है और जज्बात काबू में रहते हैं।
झपकी भी जरूरी
रिसर्च के दौरान यह बात सामने आई कि यदि रात को नींद पूरी न हो पाए, तो दिन में कुछ देर की झपकी ली जा सकती है, जिससे नींद पूरी हो जाती है। बहुत से लोगों को रात में जल्दी सोकर सुबह उठना पसंद है, जबकि कुछ लोगों की रात में देर तक जाग कर सुबह देर से उठने की आदत होती है। यानी इंसान अपनी नींद से लंबे वक़्त से खिलवाड़ करता आ रहा है।
महान लोग भी नींद के हिमायती
अमरीका की वर्जिनिया टेक यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफ़ेसर रोजर ई. किर्च को इतिहास की क़िताबों के पन्ने पलटते-पलटते इंसान की नींद के इतिहास में दिलचस्पी हो गई। इसी दौरान उन्हें पता चला कि क़ैदियों को तो जागने की सज़ा भी दी जाती थी। इसके बाद उन्होंने यूरोप में औद्योगिक क्रांति से पहले के इतिहास को खंगाला, तो चार्ल्स डिकेंस से लेकर लेव टॉल्सटॉय तक ने अपने उपन्यासों और कहानियों में नींद का जिक्र किया है। किर्च कहते हैं कि इन विद्वानों की नज़र में नींद की बड़ी अहमियत थी। इस दौरान वो ध्यान लगाते थे। ख़ुद को वक़्त देते थे। आराम करते थे।
विषय विशेषज्ञों की माने, तो कुदरत से बढ़ती दूरी ने भी नींद को प्रभावित किया है। उसके अलावा अत्यधिक व्यस्तता, तकनीक का बढ़ता दायरा सभी ने मिलकर हमारी नींद में खलल डाला है। परिणामस्वरूप हम थका हुआ महसूस करते रहते हैं, लेकिन यह समझने का वक्त भी नहीं है।
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