काशी सत्संग: विद्वान की परिभाषा - Kashi Patrika

काशी सत्संग: विद्वान की परिभाषा

पराई स्त्री को माता के समान मानने वाला, दूसरे के धन को मिट्टी के ढेले की तरह जानने वाला और अपनी ही तरह सभी जीवों को जो देखता है या समझता वही वास्तव में विद्वान कहलाता है। 

ये सुन्दर भाव निम्नलिखित श्लोक में कहे गए हैं-
मातृवत् परदारेषु परद्रव्येषु लोष्टवत्।
आत्मवत्सर्वभूतेषु य: पश्यति स पंडित:॥


श्लोक में सबसे पहले समझाया है- पराई स्त्री को माता की तरह मानो। यदि हर व्यक्ति इस उक्ति का मनन कर जीवन में ढाल ले तो तथाकथित सभ्य समाज की बहुत-सी बुराइयों का अंत हो जाएगा। बलात्कार जैसी घिनौनी हरकत कोई नहीं करेगा। घर, बाहर, आफिस आदि किसी स्थान पर यौनशोषण की समस्या नहीं रहेगी। स्त्रियों पर होने वाले अत्याचारों से भी मुक्ति मिल जाएगी। 

इसी प्रकार एक बार एक बहुत बड़े विद्वान महापुरुष किसी कार्यक्रम में जा रहे थे! उसके साथ, उसके अनेक प्रशंसक भी थे। रास्ते में एक साधारण से अशिक्षित मनुष्य ने उनको हाथ जोड़ कर प्रणाम किया ! उक्त महापुरुष नें भी उसी प्रकार उसको हाथ जोड़ कर प्रणाम किया। तब उनके प्रशंसक बोले महाराज आप तो इतने बड़े व्यक्ति आप एक अशिक्षित को प्रणाम कर रहे हैं ! 
तब उस महापुरुष ने कहा कि, "उस अशिक्षित व्यक्ति में इतने संस्कार हैं कि उसने मुझे हाथ जोड़कर प्रणाम किया, आप तो मुझे एक विद्वान मानते हैं, क्या मुझ में ऐसे अच्छे संस्कार नहीं होने चाहिए?" 
अर्थात मनुष्यों में बड़ा बनकर अगर अहंकार आ जाए व संस्कार समाप्त हो जाएं, तो उसका बड़ा होना केवल ढोंग से अलग कुछ नहीं रहता। 
ऊं तत्सत...

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