बुद्ध कहते हैं कि जब मन रुक जाता है, तब वहां 'मैं' नहीं बचता। तुम ब्रह्मांड बन गए, तुम अहंकार की सीमाओं से पार हो गए...
जब विचार रुक जाते हैं, तुम कौन हो? एक संपूर्ण खालीपन, शून्यता, ना-कुछ। इसी कारण बुद्ध ने अजीब शब्द का उपयोग किया। उनके पहले कभी किसी को इसका विचार भी नहीं आया, या उनके बाद भी। बुद्ध पुरुष हमेशा ही तुम्हारी चेतना के अंतरतम भाग के लिए 'आत्मा' शब्द का उपयोग करते रहे। बुद्ध ने "अनत्ता" शब्द का उपयोग किया। और मैं उनके साथ पूरी तरह से राजी हूं। वह अधिक अचूक हैं, सत्य के अधिक करीब। 'आत्मा' शब्द का उपयोग करना अहंकार का अहसास देता रहा है।
बुद्ध आत्मा, अत्ता शब्द का उपयोग नहीं करते। वे इसके ठीक विपरीत शब्द का उपयोग करते हैं: अनात्मा, अनत्ता। वे कहते हैं कि जब मन रुक जाता है, तब वहां 'मैं' नहीं बचता। तुम ब्रह्मांड बन गए, तुम अहंकार की सीमाओं से पार हो गए। तुम केवल शून्य, किसी भी चीज से प्रदूषित हुए बिना। तुम बस आइना हो गए कुछ भी प्रतिबिंबित नहीं करते हुए।
जब विचार रुक जाते हैं, तुम कौन हो? एक संपूर्ण खालीपन, शून्यता, ना-कुछ। इसी कारण बुद्ध ने अजीब शब्द का उपयोग किया। उनके पहले कभी किसी को इसका विचार भी नहीं आया, या उनके बाद भी। बुद्ध पुरुष हमेशा ही तुम्हारी चेतना के अंतरतम भाग के लिए 'आत्मा' शब्द का उपयोग करते रहे। बुद्ध ने "अनत्ता" शब्द का उपयोग किया। और मैं उनके साथ पूरी तरह से राजी हूं। वह अधिक अचूक हैं, सत्य के अधिक करीब। 'आत्मा' शब्द का उपयोग करना अहंकार का अहसास देता रहा है।
बुद्ध आत्मा, अत्ता शब्द का उपयोग नहीं करते। वे इसके ठीक विपरीत शब्द का उपयोग करते हैं: अनात्मा, अनत्ता। वे कहते हैं कि जब मन रुक जाता है, तब वहां 'मैं' नहीं बचता। तुम ब्रह्मांड बन गए, तुम अहंकार की सीमाओं से पार हो गए। तुम केवल शून्य, किसी भी चीज से प्रदूषित हुए बिना। तुम बस आइना हो गए कुछ भी प्रतिबिंबित नहीं करते हुए।
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