बेबाक हस्तक्षेप - Kashi Patrika

बेबाक हस्तक्षेप

आने वाले समय में केंद्र सरकार को अपनी नाकामियों पर पछताने का भी समय नहीं मिलने वाला हैं। देश के उस दौर में जनता ने पूर्ण बहुमत से मोदी सरकार को बागडोर सौपी थी, जब लोगों को यह विशवास हो चला था  कि अब इस देश का कुछ नहीं हो सकता। जनता ने ये सरकार कठिन फैसलों को लेने वाली सरकार के रूप में चुना था, जिसका सीधा सम्बन्ध आम जनता से हो।

आपने कार्यकाल के तीन साल तो सरकार ने विभिन्न मुद्दों के जवाब और हिसाब के रूप में ही काट दिए और चौथे साल ये सरकार अपने चकित करने वाले फैसलों के लिए जानी जाएगी। नोटबंदी और सर्जिकल स्ट्राइक इस सरकार के कुछ महत्पूर्ण निर्णय है, जो इस सरकार के कार्यकाल के साथ ही भविष्य में भी अपना प्रभाव दिखाते रहेंगे।

आज जिस समय हमारी सबसे बड़ी आवश्यकता थी कि हम एक केंद्रीकृत शासन व्यवस्था का सूत्रपात करते, जिससे देश के समुचित विकास की रूपरेखा खींची जा सके। मगर सरकार किसी और ही ढर्रे पर चलती दिख रही है। उसने विज्ञापन का रास्ता चुना और मान लिया की देश का विकास और समुचित प्रबंधन केवल सभी के सहयोग का प्रचार करने से ही हो सकता है। कठिन निर्णयों को सरकार लेने से हमेश पीछे हटती आई। उसने जो कठिन निर्णय लिए भी वह केवल और केवल अपने राजनैतिक फायदों की पूर्ति करते ही जान पड़ते हैं।

आज जब देश की दशा और दिशा दोनों ख़राब चल रही है। एक ओर जहाँ बेरोजगारों की लम्बी फौज तैयार हो रही है, वही व्यापारिक क्रियाकलापों में अफसरशाही का ताला है। दूसरी ओर पकौड़े और समोसे बेचने को रोजगार का दर्जा दिलवाने की कवायत है। आम जन ठेला लगाने को रोजगार की श्रेणी में नहीं रखता। उसका कहना है कि यदि  यही रोजगार है, तो शिक्षा पर सरकार द्वारा किया जाने वाला अपव्यय बंद कर दिया जाना चाहिए।  ऐसे में सोचना लाजमी है कि क्या वास्तव में सरकार हमारे लिए काम कर रही है या कुछ चुनिंदा लोगों के इशारे पर सिर्फ उनके लिए काम कर रही है।हवा में फुसफुसाहट है कि मोदी सरकार के आने से लेकर उत्तर प्रदेश के राजयसभा के चुनाव होने तक सभी कुछ एक बंद ताले के अंदर होता आया है। और जो भी निर्णय लिए गए हैं, वो  समूह विशेष को देखकर लिए गए हैं। बात यह भी है कि शासन की बागडोर पूरी तरह मोदी के हाथ में दिक्यंह रहा है,  तो क्या ऐसा माना जाए कि प्रधानमंत्री  स्वयं भी उसी  कार्यप्रणाली का हिस्सा मात्र बन कर रह गए है, जिसको तोड़ने के लिए लोगों ने उन्हें वोट दिया था।

राजनैतिक उथल-पुथल के इस दौर में युवा काफी सजग है और वह लोगों के बहकावे में कम ही आता है। वो अपनी दिशा अपने भविष्य की संभावनाओं और वर्त्तमान स्थिति के आधार पर चुनता है। हालांकि, कर्नाटक के चुनाव परिणाम से तस्वीर बहुत हद तक साफ़ हो जाएगी कि आगामी (2019) लोकसभा चुनावों की बानगी क्या होने वाली है।
-संपादकीय

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