लंका विजय के लिए समुद्र पर पुल बनाया जा रहा था। सुग्रीव की वानर सेना इस कार्य में लगी हुई थी। बड़े और विशाल पत्थरों को ढो कर लाया जा रहा था और समुद्र पर पुल बनाने के लिए डाला जा रहा था। ये पत्थर पानी में डूब नहीं रहे थे, बल्कि तैर रहे थे।
प्रभु श्रीराम भी यह देख रहे थे और यह सोचते हुए कि उन्हें भी अपना योगदान देना चाहिए। उन्होंने कुछ पत्थर उठाए और समुद्र में डाले। परंतु उनके द्वारा डाले गए पत्थर समुद्र में डूब गए। उन्होंने कई बार प्रयास किए, परंतु उनके द्वारा समुद्र में डाले गए पत्थर डूब ही जाते थे। जबकि तमाम उत्साहित वानर सेना द्वारा डाले गए पत्थर डूबते नहीं थे। श्रीराम थोड़े परेशान हो गए कि आखिर माजरा क्या है! हनुमान जी बड़ी देर से प्रभु को यह कार्य करते देख रहे थे और मंद ही मंद मुस्कुरा रहे थे। अचानक श्रीराम की नजर उन पर पड़ी। हनुमान जी ने कहा- “हे प्रभु! जिसको आपने छोड़ दिया, उसे कौन बचाएगा? उसे तो डूबना ही है।”
ऊं तत्सत...
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