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निंदा में विद्वता

तुम यदि सत्य की, ईश्वर की बात करोगे, तो उसे सिद्ध करना कठिन होगा। किंतु यदि नकारात्मक वक्तव्य दो, निंदा करो, तो उसे कोई असिद्ध नहीं कर सकेगा। इसी लिए लोग निंदा करते हैं, क्योंकि इसे प्रमाणित नहीं करना पड़ता... 

तुर्गनेव की प्रसिद्ध कथा है: “महामूर्ख”। एक गांव में एक महामूर्ख था। वह बहुत परेशान था, क्योंकि वह कुछ भी कहता लोग हंस देते। वह महामूर्ख मान लिया गया था, तो वह कभी ठीक भी बात कहता तो भी लोग हंस देते। वह सिकुड़ा—सिकुड़ा जीता था, बोलता तक नहीं था। न बोले तो लोग हंसते थे, बोले तो लोग हंसते थे। कुछ करे तो लोग हंसते थे, न करे तो लोग हंसते थे।
एक दिन गांव में एक फकीर आए। महामूर्ख ने फकीर के चरण पकड़े और कहा कि मुझे कुछ आशीर्वाद दो, मेरी जिंदगी क्या ऐसे ही बीत जायेगी सिकुड़े-सिकुड़े? क्या मैं महामूर्ख की तरह ही मरूंगा, कोई उपाय नहीं है कि थोड़ी बुद्धि मुझमें आ जाए? फकीर ने कहा उपाय है, यह ले सूत्र, तू निंदा शुरू कर दे।
उसने कहा : निंदा से क्या होगा? फकीर ने कहा. सात दिन तू कर और फिर मेरे पास आना। महामूर्ख ने पूछा- करना क्या है निंदा में? फकीर ने कहा- कोई कुछ भी कहे, तू नकारात्मक वक्तव्य देना। जैसे कोई कहे कि देखो, कितना सुंदर सूरज निकल रहा है! तू कहना इसमें क्या सुंदर है? सिद्ध करो, सुंदर कहां है? रोज निकलता है, अरबों-खरबों सालों से निकल रहा है। आग का गोला है, सुंदर क्या है? कोई कहे कि देखो, जीसस के वचन कितने प्यारे हैं! तू तत्क्षण टूट पड़ना कि क्या है इसमें प्यारा, कौन-सी बात खूबी की है, कौन-सी बात नई है? हर बात पर नकार ही करना। तू हर-एक से प्रमाण मांगना और खयाल रखना यह कि हमेशा नकार में रहना। सात दिन बाद आ जाना।
सात दिन बीत गए। महामूर्ख अबकी बार फकीर के पास अकेला नहीं आया, उसके कई शिष्य हो गए थे। वह आगे-आगे आ रहा था। फूल-मालाएं उसके गले में डली थीं। उसने फकीर से कहा कि तरकीब काम कर गई! गांव में एकदम सन्नाटा खिंच गया है, जहां निकल जाता हूं लोग सिर नीचा कर लेते हैं। लोगों में खबर पहुंच गई है कि मैं महामेधावी हूं। मेरे सामने कोई जीत नहीं सकता। अब आगे क्या करना है?
फकीर बोले- अब आगे तो कुछ करना ही मत, बस तू इसी पर रुके रहना। अगर तेरे को मेधा बचानी है, कभी विधेय में मत पड़ना। ईश्वर की कोई कहे तो तत्क्षण, तत्क्षण नास्तिकता प्रकट करना। जो भी कहा जाए, तू हमेशा नकारात्मक वक्तव्य देना, तुझे कोई न हरा सकेगा; क्योंकि नकारात्मक वक्तव्य को असिद्ध करना बहुत कठिन है। विधायक वक्तव्य को सिद्ध करना बहुत कठिन है।
ईश्वर को स्वीकार करने के लिए बड़ी बुद्धिमत्ता चाहिए, बड़ी सूक्ष्म संवेदना चाहिए। हृदय का अत्यंत जागरूक रूप चाहिए। चैतन्य की निखरी हुई दशा चाहिए। भीतर थोड़ी रोशनी चाहिए। लेकिन ईश्वर को इंकार करने के लिए कुछ भी नहीं चाहिए। कोई अनिवार्यता नहीं है, ईश्वर को इंकार करने के लिए। इसी लिए लोग दुनिया में निंदा करते हैं।
■ ओशो

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