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परमात्मा कहां नहीं है!

अपने जीवन को परमात्मा को ऐसे समर्पित कर दो कि हर तरफ सिर्फ वो ही रहे। सिर्फ अच्छा-अच्छा उसे मत दिखाना, अपना बुरा भी उसके लिए खोल देना। तुम्हारे क्रोध में भी उसकी ही याद हो। और तुम्हारे प्रेम में भी उसकी ही याद हो...

एक कहानी है कि गुरु नानक मक्का के पवित्र पत्थर की तरफ पैर करके सो गए थे। इससे पुजारी नाराज हुए और कहा, “हटाओ पैर यहां से। साधु होकर इतनी भी समझ नहीं है?” बात सुनकर नानक ने कहा, “आप हमारे पैर वहां कर दें, जहां परमात्मा न हो।” कहानी आगे कहती है कि पुजारियों ने उनके पैर सब दिशाओं में किए, जहां भी पैर किए, काबा का पत्थर वहीं हटकर पहुंच गया। कहानी सच हो न हो, पर कहानी में बड़ा सार है।
“जाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर,
या वो जगह बता जहां पर खुदा न हो।”
सार इतना ही है कि पुजारी ऐसी कोई जगह न बता सके, जहां परमात्मा न हो। तुम्हारा जीवन ऐसा भर जाए उससे की ऐसी कोई जगह न बचे जहां वह न हो! इसी लिए बुरे-भले का हिसाब मत रखना। अच्छा-अच्छा उसे मत दिखाना, अपना बुरा भी उसके लिए खोल देना। तुम्हारे क्रोध में भी उसकी ही याद हो। और तुम्हारे प्रेम में भी उसकी ही याद हो। और तुम सब हैरान होओगे कि तुम्हारा क्रोध क्रोध न रहा, तुम्हारे क्रोध में भी उसकी सुगंध आ गई; और तुम्हारा प्रेम तुम्हारा प्रेम न रहा, तुम्हारे प्रेम में भी उसकी ही प्रार्थना बरसने लगी। तुम जिस चीज से परमात्मा को जोड़ दोगे, वही रूपांतरित हो जाती है। तुम अपना सब जोड़ दो, तुम्हारा सब रूपांतरित हो जाएगा...!
■ ओशो

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