पौराणिक कथाओं के अनुसार कुबेर को एक बार तीनों लोकों में सबसे धनी होने पर अभिमान हो गया था। उन्होंने सोचा कि हमारे पास इतनी संपत्ति है, लेकिन कम ही लोगों को इसकी जानकारी है, क्यों न संपत्ति का प्रदर्शन करने के लिए एक भव्य भोज का आयोजन किया जाए। कुबेर ने भोज के लिए तीनों लोकों के सभी देवताओं को आमंत्रित किया गया।
भगवान शिव उनके इष्ट देवता थे, इसलिए उनका आशीर्वाद लेने वह कैलाश पहुंचे और कहा, “प्रभो! आज मैं तीनों लोकों में सबसे धनवान हूं, यह सब आप की कृपा का फल है। मैं अपने निवास पर एक भोज का आयोजन करने जा रहा हूं, कृपया आप परिवार सहित भोज में पधारने की कृपा करे।”
भगवान शिव कुबेर के मन का अहंकार ताड़ गए, बोले, “वत्स! मैं बूढ़ा हो चला हूं, कहीं बाहर नहीं जाता।” कुबेर गिड़गिड़ाने लगे, “भगवन! आपके बगैर तो मेरा सारा आयोजन बेकार चला जाएगा।” तब शिव जी ने कहा, “एक उपाय है। मैं अपने छोटे बेटे गणपति को तुम्हारे यहां भोज में जाने को कह दूंगा।” कुबेर संतुष्ट होकर लौट आए।
नियत समय पर कुबेर ने भव्य भोज का आयोजन किया। तीनों लोकों के देवता पहुंच चुके थे। अंत में गणपति आए और आते ही कहा, “मुझको बहुत तेज भूख लगी है। भोजन कहां है।” कुबेर उन्हें ले गए भोजन से सजे कमरे में। सोने की थाली में भोजन परोसा गया। क्षण भर में ही परोसा गया सारा भोजन खत्म हो गया। दोबारा खाना परोसा गया, उसे भी खा गए। बार-बार खाना परोसा जाता और क्षण भर में गणेश जी उसे चट कर जाते।
थोड़ी ही देर में हजारों लोगों के लिए बना भोजन खत्म हो गया, लेकिन गणपति का पेट नहीं भरा। वे रसोईघर में पहुंचे और वहां रखा सारा कच्चा सामान भी खा गए, तब भी भूख नहीं मिटी। जब सब कुछ खत्म हो गया, तो गणपति ने कुबेर से कहा, “जब तुम्हारे पास मुझे खिलाने के लिए कुछ था ही नहीं, तो तुमने मुझे न्योता क्यों दिया था?” कुबेर का अहंकार चूर-चूर हो गया। सच ही कहा है-
"लघुता से प्रभुता मिले
प्रभुता से प्रभु दूर।"
इसी लिए कभी अपनी संपत्ति, ज्ञान, प्रभाव किसी पर गर्व नहीं करना चाहिए, क्योंकि अभिमानी व्यक्ति से तो परमात्मा भी दूर हो जाते हैं।
ऊं तत्सत...
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