अंधेर नगरी, चौपट राजा
“अपना देश बेशक महान है, सौ में से निन्यान्वे बईमान हैं...” ये फिल्मी डॉयलॉग देश और देशवासियों के साथ कुछ ऐसा चिपका है कि सालों से सत्ता परिवर्तन के बावजूद ईमानदारी की शीतल बयार देश में बहने का नाम ही नहीं ले रही है। अपने शासन के चरम पर किसी प्रधानमंत्री ने लाल किले से ये कहते हुए कि जो एक रुपया सरकार से योजनाओं के लिए जाता है, उसमें से केवल एक पैसा लोगों तक पहुंचता है, इसका विस्तृत ब्यौरा तक दे डाला। खैर, ये बात अलग है कि जनता ने इसे परिहास समझ कर आसानी से भुला दिया, वर्ना आज देश की स्थिति शायद कुछ और होती। आम जनता के मनोभाव को समझे तो हाल- फिलहाल देश में प्रजातंत्र के स्थान पर राजतंत्र ने देश की शासन व्यवस्था को कब्जे में ले रखा है। इसके मूल को समझे, तो ये समझना बिल्कुल दीगर नहीं कि तत्कालीन राजा ने देश को भ्रष्टाचार से मुक्त कराने के नाम पर ही सत्ता हासिल की थी। 'हाथ से हाथ मिले, सौभाग्य बने हमारा' के नाम पर दो लोगों ने राजतंत्रीय सत्ता तो हासिल कर ली, पर अपेक्षित परिवर्तन अभी तक नहीं आया।
देश के बेरोजगार मंडलियों के साथ चाय पर चर्चा की जाए, तो निचोड़ ये निकलता है कि राजा का चुनाव तो हुआ था 'हरिभजन, को, पर सत्ता में आते ही राजा ने तेजी से कपास ओटना शुरू कर दिया। आम चर्चाओं की माने, तो 'लम्बी जुबान, खोटे काम' का जो रूप वर्तमान में चल रहा है, वो देश की वास्तविक स्थिति के साथ बिल्कुल सही बैठता है। स्थिति आज तो ऐसी हो गई है कि नौसिखिया राजनेता खुले तौर पर सत्ता पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा रहा है और देश का चयनित राजा शांत है।
इन सारे पचड़ों के बीच देश पुनः एक बार अपने नियत मार्ग पर चलने को मजबूर है। चहुओर भ्रष्टाचार की काली बयार निर्बाध रूप से बह रही है। पुनः एक बार लोगों ने लेन-देन को प्रकृति का उपहार मान कर चलना शुरू कर दिया है। सुखद इस माहौल में 'हमाम में सभी नंगे हैं' का देश का रूप प्रतिबिंबित हो रहा है। अंधेर इस नगरी में वांछित राजा तो लोगों ने चार साल पहले ही पाया था, पर समझ का फेर ही था, जो लोगों ने पहचानने में देर कर दी।
■सिद्धार्थ सिंह
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