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भोले भण्डारी- सप्त पाठ

 उड़ गए तोते 

देश के राजनीतिक वांग्मय में अनादि काल से ही शकुन-अपशकुन, जादू-टोने, और टोटकों का बोलबाला रहा है। त्रेता युग के यशस्वी राजा राम भी इससे अछूते नहीं थे। रामायण में ढेरों ऐसे आख्यान हैं, जिनमें मुख्यतः बाई आँख का फड़फड़ाना, खाली घड़ों का मार्ग में मिलना इत्यादि है। अब जब प्रभु ही इन बातों पर विश्वास करते हों, तो साधारण मनुष्य की बिसात ही क्या है!

एक तरफ भारत के राजनीतिज्ञ साधारण से असाधारण हो गए, पर उनमें मानवी गुण, शकुन-अपशकुन अब भी बाकी हैं। देश के तत्कालीन नरेश की सांस्कृतिक पार्टी तो पूर्णतया इन टोटकों पर विश्वास करती है। और हो भी क्यों नहीं! इन्होंने ‛राम’ का पेटेंट अपने नाम करवा जो रखा है। वर्तमान में सबसे प्रचलित प्रथा तोतों की हैं। सत्ताधारी पार्टी के सभी राजनेताओं का अटूट विश्वास आज हरे-हरे तोतों पर हैं। तोतों की जितनी महत्ता आज के समय में है, उतनी शायद ही पहले कभी रही हों। 

शासक दल का हर राजनेता सुबह से शाम तक अपने हर कार्य का लेखा-जोखा तोतों से पूछ कर करता है। हालिया हुए चार राज्यों के चुनावों में तो इन तोतों ने खुलकर प्रदर्शन किया। स्थिति यहाँ तक आ गई थी कि दूसरे राज्यों के मशहूर तोतों को इन राज्यों में बुलाया गया और उनसे भविष्यवाणी करवाई गई। पर पिछले चार सालों में हुए अपने अपमान का बदला लेते हुए इन तोतों ने सामूहिक रूप से संगठित हो गलत भविष्यवाणी की। नतीजा साफ निकला और सत्ताधारी दल के धुरंधर राजनेताओं के तोते उड़ गए। 

चुनाव परिणामों के बाद स्थिति यह आ गई हैं कि शासक दल का हर राजनेता अब तोतों को केवल अपने कंधों पर नहीं बिठाता, वरन अब ये राजनेता उन्हें अपने सिर पर भी बिठाने को तैयार दिखते हैं। रोज नए-पुराने टोटकों को ध्यान में रखकर इन तोतों की पूजा की जा रही है। इन्हें नए-नए प्रलोभन दिए जा रहे हैं। सुबह-शाम इनके सामने राम की महिमा का पाठ सुनाया जा रहा है। देश की अस्मित्ता और परंपरा की दुहाई दी जा रही है। 

पर तोतों के साथ जीवन का अनुभव यही कहता है कि एक बार अगर तोतें उड़ गए, तो उन्हें दुबारा पकड़ना मुश्किल है। 
■सिद्धार्थ सिंह 

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