वक्त की घड़ियां कभी थमतीं नहीं
ये अलग बात है धड़कन थम जाए
जी हां, 31 दिसंबर की रात ठीक 12 बजे जैसे ही घड़ी की दो सूइयों का संगम
हुआ, प्रहर के पहरे ने कलेंडर बदल लिया। धड़कनों की रफ्तार ने भी जिंदगी से एक धड़कन कम कर अगले वर्ष में छलांग लगा दी। इस अनपढ़ ने भी सालों का सिलसिला बरकरार रखते हुए अपनों में छिपे परायों को दिल खोलकर मुबारक बोला। रिश्ते-नातों की भीड़ में कुछ अहसास बिना बधाई के अपनी सहलाहट दे डाले और हमने सामान्य सी बदलती तारीख को भी खुशियों की पोटली में संजो लिया।
नए साल की पुरानी कहानी फिर नए लिबास में रंगी-पुती नजर आई। शब्दों के मायाजाल में बधाइयों के तड़के और अखबारों में पुती स्याही भी उन्हीं कहानियों को नए रंगों में ढाल तमाशबीनों का मनोरंजन करती नजर आई। साल-दर-साल बदलते कलेंडर में कुछ बदला तो बस मशीनीकरण, जो हमें टीवी/ रेडियो/ परिवार/ समाज से निकाल फेसबुक/ ट्विटर/ इंस्टाग्राम और जाने कौन-कौन से भदेसपन (क्षमा.. 'स्मार्टनेस') में ले आया। शाम को टीवी पर नजर पड़ी, तो न्यू-ईयर सेलिब्रेशन के प्रोमो देख मन कुढ़ गया जो आज भी उसी ढर्रे पर थे- वहीं शरीर को खंड-खंड तोड़ती/ मरोड़ती पाश्चात्य नृत्यशैली नए साल के स्वागत में थी, जो करीब 20-25 साल पहले थे, बस चेहरे बदल गए थे।
तो चलिए, इसके पहले कि इस अनपढ़ की बकवास बातों पर आप भड़कें.. हम भी उसी भीड़ में शामिल हो जाते हैं और उन बिंदुओं को खंगालते हैं, जिनमें बीते साल हमने कुछ पाया, तो कुछ खोया।
बीती ताहि बिसारि दें
खींचतान के बावजूद साल 2018 में विपक्षी एकता की बानगी खूब दिखी। राजनीतिक गलियारों में आंध्रप्रदेश ने खूब लुभाया, तो हालिया हुए तीन राज्यों के चुनाव ने भरपूर सुर्खियां बटोरीं। राजनीति के पटल पर क्षेत्रीय ताकतों का जोर रहा, तो एनडीए में बिखराव व हिंदुत्व के ध्रुवीकरण के बीच जनता-जनार्दन में बदलती आवोहवा की मुनादी सुनाई दी। शेयर बाजार कुछ को अर्श पर पहुंचाया, तो निवेशकों ने सवा सात लाख करोड़ रुपये गंवा दिए। बॉलीवुड में कम बजट की फिल्मों ने धमाल किया, तो कई नए चेहरे और साइड आर्टिस्ट फ्रंट फ्लोर पर नजर आए।इसी बीच सिनेमा और बिजनेस जगत की कई आला हस्तियां शादी की डोर में बंध गईं, जिनकी साक्षी देश-दुनिया बनी। इसके अलावा विभिन्न मामलों में राजनैतिक-संवैधानिक टकराव सामने आए और तीन तलाक से लेकर अडल्ट्री के कानून तक और रिश्तों की आजादी में एलजीबीटी से लेकर #मीटू तक ने तमाम लोगों को झिंझोड़े रखा। राम-नाम के बीच हनुमान, सबरीमाला, राफेल-डील, बाढ़-बारिश-आग ने जहां आम-ओ-खास का चैन छीना, तो श्रीदेवी, केदारनाथ सिंह, गोपालदास नीरज, एम.करुणानिधि, अजीत वाडेकर, अटलबिहारी बाजपेई, सोमनाथ चटर्जी, अनंत कुमार जैसी हस्तियां अपने चाहने वालों की आंखें नम कर गए। कुल मिलाकर बीता साल हिसाब-किताब में अपने पूर्वज सालों से कमतर नहीं रहा, और हम बची-खुची आबादी के साथ चल पड़े नए साल की इबारत लिखने।
आगे की सुधि लेहि
नया साल भी कुछ कम नहीं, पिछले अनुभवों को देखते हुए इस साल भी तमाम उपलब्धियों की बानगी तय है। 2019 हम सबके लिए ला रहा है कुछ खास, कुछ नया और कुछ ऐसा, जिसका हमें इंतजार। इस साल होने वाला आम चुनाव सिर्फ नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के भाग्य की परीक्षा ही नहीं, अगले पांच साल के लिए देश की दिशा और दशा निर्धारित करेगा। हर 12 साल बाद लगने वाला भारतीय अध्यात्म व आस्था का केंद्र बिंदु महाकुंभ इस साल तीर्थराज प्रयाग में है। आस्था की डुबकी के बीच 2019 में 3 सूर्य ग्रहण और 2 चंद्र ग्रहण भी लगने वाले हैं। खेल जगत में हम भारतीयों के लिहाज से अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट का सबसे बड़ा आयोजन और क्रिकेट प्रेमियों के दिल की धड़कन क्रिकेट विश्वकप 2019 इस साल इंग्लैंड में होने जा रहा है। केंद्रीय शिक्षा बोर्ड CBSE में नैशनल टेस्टिंग एजेंसी ( एनटीए) की एंट्री भी होगी। इंजिनियरिंग, मेडिकल, नेट-जेआरएफ, गेट सहित अन्य अहम प्रवेश पूर्व परीक्षा नेशनल टेस्टिंग एजेंसी करा सकती है। ऐसे में, सीबीएसई के पास सिर्फ बारहवीं और दसवीं की परीक्षाएं का कामकाज ही रह जाएगा। डिजिटल दुनिया में 5G दस्तक देने वाला है। इस साल कई देशों में हाई स्पीड इंटरनेट सेवा की शुरुआत हो सकती है। नए साल की शुरुआत में बहुप्रतीक्षित चंद्रयान-2 मिशन लॉन्च किए जाने की भी तैयारी है। 2019 में भारत के पास विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का मौका है और इस बार हमारा मुकाबला ब्रिटेन से है। सिनेमा जगत की बात करें, तो बॉलीवुड में साल 2019 के लिए करीब 220 फिल्में कतार में हैं। इसके अलावा रक्षा, कृषि, अनुसंधान, शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, रेल, परिवहन, इंफ्रास्ट्रक्चर आदि सभी क्षेत्रों में नए आयाम गढ़ने की तैयारी है।
नई इबारत की तैयारी
कुल मिलाकर हम हमारी थाती को बरकरार रखेंगे और अपनी समूची ऊर्जा नए साल में नए जोश से नई इबारत लिखने में खर्चेंगे। कभी नाम के साथ 'जी' कहलाने वाले लोग 'फर्जी' दुनिया में जा पहुंचे और '2जी' का सफर '5जी' की रफ्तार में पहुंच गया। हम भी इसके सगे वाले बदलते कलेंडर के साथ पांडुलिपि से निकलकर डिजिटल दस्तक हो गए। अगर, कुछ नहीं बदला तो वह है हमारा दिल-ओ-दिमाग जो तब भी वैचारिक था और आज भी वैचारिक है। हम दुनिया को भले न समझ पाएं, खुद को समझना नहीं छोड़े और शायद यही हमारी पहचान हमें कलेंडर के साथ भी बरकरार रखे हुए है। इसी के साथ काशी-पत्रिका के सभी सुधी पाठकों को सपरिवार नववर्ष की शुभकामनाएं, नया साल आपके लिए सफलता की नई इबारत लिखे।
हर वक्त लाजमी था, हर हाल लाजमी है।
वो साल लाजमी था, ये साल लाजमी है।।
■ कृष्णस्वरूप
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