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काशी के युवा - मंजू सिंह




मैं Manju Singh, जो कभी मंजू कुमारी हुआ करती थी, बनारस मे पली बढ़ी  हूँ। मेरा जन्म सन् 1980 में काशी में  हुआ.  बचपन से ही मुझे Painting  का बड़ा शौक रहा हैं।  फिर अपने इसी  शौक को अपना जीवन बना लिया. सुबह - सुबह  चार बजे  उठ कर घाट किनारे लोगो को  अपने चित्रों में उतारना, अपने आप में एक योग था मेरे लिए.   इसी क्रम मेँ मैने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से Applied Arts से स्नातकोत्तर किया.
कालेज  के  बाद मैने बनारस मे ही रह कर कुछ वर्षो  तक एक Publication House के लिए काम किया. क्योंकी कुछ लोगों की छोटी  सोच ने मेरे पंखों को बांध  रख्खे थे।   पर  फिर भी मैं खुश थी।



फिर जैसा की हमारे समाज में ज़रूरी होता है शादी, मेरी भी शादी हो गई।  शादी के बाद मैं दिल्ली आ गई. वैसे मैं बता दू  मेरा दिल्ली आने का बड़ा सपना था जो कि  सच हो गया. हा हा हा

फिर जैसा कि  आम तौर  पर  होता है मैं भी घर गृहस्थी में उलझ  सी गई।  मैं अपने आप को भूल सी गई थी,  इसी वजह से  मैने  अपने कई साल बर्बाद कर दिये फिर अचानक हुई एक घटना ने मुझे फिर से मुझे मेरी कला से मिला दिया।
हुआ यू  कि  अपने दूसरे बच्चेे के जन्म  के वक्त अचानक मेरी ताबियत  बहुत खराब हो गई। अस्पताल  में भर्ती  हुई, ICU मे गई. वेनटीलेटर पर भी थी। Doctors  ने  तो हाथ तक खड़ें  कर दिये थे. पर  भगवान की कृपा से फिर एक उम्मीद  सी जगी , मेरी ताबियत सुधरने  लगी।

आज भी वे दिन याद है मुझे, इतने दर्द के बीच मे भी ICU के बेड पर मैं यही सोचा करती थी कि  अगर मुझे कुछ हो जाता तो अभी इसी पल में सब खत्म हो जाता, मैं, मेरी कला, सब कुछ।  हमें एक ही ज़िन्दगी मिली  है  हमें जो करना है जो पाना है वो इसी  एक ज़िन्दगी मे ही करना है।

इसी  से प्रेरित हो कर मैने फिर से Painting  शुरू की .Watercolorमुझे बहुत पसंद  है तो मैने Watercolor से ही शुरुआत  की, कई सारे Exhibitions लगाए। आर्ट क्लासेस की शुरुआत की, कई किताबें और पत्रिकाएं डिजाइन किए। इस  तरह मैं फिर से अपनी कला, अपने जुनुन  से जुड  पाई।


मेरे चित्र मानव आकृतियों  से प्रेरित है. मुझे व्यक्ति चित्र बनाने में ज्यादा मजा आता है. मैने अब तक कई सारे  व्यक्ति चित्र  बनायें है।अन्त में मैं यही कहना चाहती हूँ कि परेशानिया, कठिनईया तो जीवन का दूसरा रूप हैं, पर हमें इनसे डर कर अपने जीवन के लक्ष्य को भूलना नहीं चाहिए।



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