प्रकृति की गोद में बसे हैं शिव - Kashi Patrika

प्रकृति की गोद में बसे हैं शिव

प्रकृति की गोद में बसे हैं शिव

अगर आप तीर्थ भ्रमण व पर्यटन मोही होने के साथ-साथ प्रकृति प्रेमी भी हैं, तो जीवन के कुछ क्षण चुराकर शिलांग यात्रा पर अवश्य जाएं। पूर्वोत्तर राज्य मेघालय की राजधानी शिलांग की धार्मिक, आध्यात्मिक व सांस्कृतिक विरासत आगंतुक को अनायास ही अपनी वत्सलता में सराबोर कर हमें ऐसी ईश्वरीय अनुभूति देती है, जिसका वर्णन संभव नहीं। जब हमलोग घुमावदार पहाड़ों, शिल्पकला से भरपूर इमारतों और सघन चीड़ व देवदार के वृक्षों के घिरे इस छोटे व अद्भुत शहर में पहुंचे, तो वहां एकदम से बस जाने को जी चाहा।


भगवान शिव के प्रिय स्थानों में से एक शिलांग के महादेवखोला मंदिर में आदि अनादिकाल से स्वयं साक्षात महादेव विराजते हैं। इस मंदिर से अनेक दंत कथाएं जुड़ी हैं, माना जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन स्वयं भगवान शिव यहां आकर भक्तों के हाथों मनोहारी शृंगार कराते हैं। यही कारण है कि शिवरात्रि के दिन यहां वृहद मेला लगता है। इस भव्य मंदिर का वर्तमान स्वरूप गोरखा रेजीमेंट द्वारा बनवाया गया है। यह स्थान यहां के हिंदू व मारवाड़ी समाज के लिए अपूर्व श्रद्धा का केंद्र है। प्रचलित कथाओं के अनुसार यहां श्रावण या पुरुषोत्तम मास में पांच सोमवार तक भगवान शिव का जलाभिषेक कर बेलपत्र चढ़ाने व पूजा-अर्चना से इच्छित वरदान मिलता है।

महादेवखोला मंदिर से कुछ ही दूरी पर मनोरम पहाडिय़ों के बीच है मोनिसराम का दिव्य स्थल, जो भगवान शंकर का ही प्रतिरूप हैं। प्रकृति प्रदत्त गुफा के मध्य में नीचे बने प्राकृतिक शिवलिंग पर ऊपर स्वत: बने गौ थन आकार की शिला से लगातार बूंद-बूंद गिरता पानी ऐसा प्रतीत होता है, मानो भगवान शिव का जलाभिषेक हो रहा हो। मान्यता है कि यहां कभी कामधेनु ने स्वयं भगवान शिव का अभिषेक अपने थन के दूध से किया था, इससे यह स्थल शक्तिपीठ बनने का सामथ्र्य रखता है। इनके अलावा भी यहां कई अन्य देवी-देवताओं के मंदिर मौजूद हैं।

पर्यटन के लिहाज से शिलांग का मनोरम सौंदर्य, पर्वत शृंखलाएं, शीतल झील-झरने, मन को आह्लादित करने वाली घाटियां व हरे भरे मैदान बेहद आकर्षक हैं। शिलांग पीक यहां का सबसे ऊंचा स्थल है, जहां से समूचा शहर नजर आता है। डेढ़ हजार फुट से ज्यादा ऊंचाई वाला यह स्थल देश की सुरक्षा के लिहाज से काफी संवेदनशील है, जहां भारतीय वायुसेना के पूर्वी कमांड का कार्यालय है और यहां की ऊंची चोटियों पर कई राडार लगाए गए हैं। रात के समय यहां से शहर का नजारा ऐसा लगता है, मानो हम आकाशगंगा के ऊपर खड़े हों। शहर में ही प्रसिद्ध लेडी हैदर पार्क भी है, जिसमें देश-विदेश के फूलों की दुर्लभ किस्में मौजूद हैं। साथ ही यहां चिडिय़ाघर और दुर्लभ प्रजातियों की तितलियों का संग्रहालय भी है, जिसकी नैसर्गिकता देखते ही बनती है। मार्गरेट फाल, कैलांग रॉक, वाडर्स लेक, हाथी झरना, बिशप फाल, स्प्रीट ईगल फाल, क्रिनोलिन फाल, मीठा झरना आदि यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं।

शिलांग से 60 किलोमीटर दूर स्थित है चेरापूंजी, जिसका नाम बदलकर सोहरा रख दिया गया है। यहां के लोग शुरू से ही इसे सोहरा का संबोधन देते थे। बांग्लादेश की सीमा से सटा यह स्थान सर्वाधिक वर्षा के लिए विश्व प्रसिद्ध है। शिलांग से 20 किलोमीटर दूर उमियाम हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट की वजह से बनी झील पर स्थित वाटर स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स है, जहां जल क्रीड़ा का आनंद लिया जा सकता है। शिलांग की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक विरासत का कोई सानी नहीं है। खासी और जेन्तिया पहाडिय़ों की गोद में बसा यह शहर किसी जमाने में गर्मी के दिनों में बंगाल व असम की राजधानी हुआ करता था, 1972 में मेघालय की स्थापना के बाद यह नवनिर्मित राज्य की राजधानी बना।

यहां के मूल निवासी खासी जनजाति के लोग हैं, जिनकी विशेषता है कि महिलाएं ही इनके घरों की मुखिया होती हैं। इतना ही नहीं, इनमें परिवार की बड़ी लड़की को ही घर की मालकिन बनाते हैं और बच्चे के साथ भी मां का ही उपनाम जोड़ा जाता है, जो शायद ही कहीं और देखने को मिले। कलाकारों, चित्रकारों के लिए यह जगह किसी स्वप्नलोक से कम नहीं, जहां बहुत कुछ देखने, महसूस करने व चित्रों में उकेरने लायक है। गुवाहाटी से महज 104 किलोमीटर दूर शिलांग जाने की योजना असम दर्शन के दौरान भी बनाई जा सकती है। देश के किसी भी कोने से गुवाहाटी और कोलकाता पहुंचकर शिलांग के लिए सीधी फ्लाइट पकड़ी जा सकती है। इसके अलावा यहां पहुंचने के लिए गुवाहाटी से बस या टैक्सी की सेवा भी ले सकते हैं।

-सर्वेश 

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