शून्यता अनंत हो सकती है.../ओशो - Kashi Patrika

शून्यता अनंत हो सकती है.../ओशो

सिर्फ शून्यता अनंत हो सकती है; कुछ होना निश्चित ही सीमा बद्ध होगा। शून्यता के द्वारा ही जीवन का, अस्तित्व का अनंत विस्तार संभव है--न कि कुछ के द्वारा। 
 परमात्मा कोई व्यक्ति नहीं है : वह कोई नहीं है या अधिक सही होगा कहना, नाचीज होना। परमात्मा कोई व्यक्ति नहीं है : वह शून्य है या, और अधिक सही होगा, ना-कुछ होना। वह सृजनात्मक शून्यता है।

कभी भी एक क्षण के लिए भी मत सोचना कि शून्यता नकारात्मक दशा है, एक अभाव है, नहीं। शून्यता का बस यही अर्थ है ना-कुछ होना। चीजें समाप्त हो जाती हैं, सिर्फ अनंत सत्ता बनी रहती हैं। रूप विदा हो जाते हैं, सिर्फ रूपविहीनता बनी रहती है। परिभाषाएं समाप्त हो जाती हैं, अपरिभाषित बना रहता है।

बुद्ध की जागृत अवस्था पूर्ण होती है। उस पूर्ण जागृत अवस्था में आलोकित होश सकारात्मक शून्यता के साथ घिरा होता है। यह खाली नहीं है, यह पूरा भरा है। चीजें विदा हो चुकीं... और जो बचता है उसे अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता। हम अभिव्यक्त करने का प्रयास करते हैं जैसे कि आनंद, उल्लास; अनंत आनंद, लेकिन ये सच्चाई की केवल प्रतिध्वनियां हैं।।
-ओशो

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