श्री गंगालहरी के आखरी तीन श्लोक - Kashi Patrika

श्री गंगालहरी के आखरी तीन श्लोक


श्री गंगालहरी 


धूते नगेंद्रकृक्तिप्रमथगणमणिश्रेणिनंदिन्दुमुख्यं  
सर्वस्वं हारयित्वा स्वमथ पुरभिदि द्राक  पणीकर्तुकामे । 
साकूतं हैमवत्या मृदुलहसितया वीक्षितायास्तवाम्ब   
व्यालोलोल्लसिवल्गल्लहरिनटघटीताण्डवं नः पुनातु ॥ ५१॥



विभूषितानङ्गरिपूक्तमाङ्गा सधःकृतानेकजनार्तिभङ्गा। 
मनोहरोक्तुङ्गचलक्तरङ्गा गङ्गा ममाङ्गान्यमलीकरोतु ॥ ५२॥



इमां पीयूषलहरीं  जगन्नाथेन निर्मीतां ।
यः पठेक्तस्य सर्वत्र जायन्ते सुखसम्पदः ॥ ५३॥

आज हम काशी पत्रिका में श्री गंगालहरी के आखरी तीन श्लोकों को प्रकाशित कर रहें हैं।  

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