कठुआ केस
इस तरह की दर्दनाक घटना भारत के किसी भी कोने में किसी भी जाति या मज़हब के साथ हो तो जाति-धर्म के आधार पर घटना कम या ज़्यादा निंदनीय हो सकती है क्या ? लेकिन दुर्भाग्य से भारतीय राजनीति के मापदंड कुछ और ही हैं. भारतीय राजनीति के लिए घटना का दुर्भाग्यपूर्ण होना एक पक्ष के लिए शुभ संकेत होता है, जो उस जाति के प्रतिनिधि होने का दम्भ भरते है. और सीधे दोष दूसरी पार्टी पर मढ़ दिया जाता है. यहाँ से दोषारोपण की राजनीति शुरू होती है । हर दल दूसरे दल को मंच से आईना दिखाने लगता है। और अगर कोई पार्टी निष्पक्ष होने का थोड़ा प्रयास करती है तो बाकि दलों को अपना वोट बैंक किसी और के हाथ में जाता हुआ दीखने लगता है परिणामस्वरूप फिर से घटनो को गढ़ा जाने लगता है.
बहुत संभव है के यहाँ घटाएं राजनीति चमकाने और अपना वोट बैंक अपनी ही झोली में गिरे, इसको भी केंद्र में रख कर पटकथा लिखी जाती है.
कठुआ केस में भी परिवार का वयान और मीडिया में आरही ख़बरें में कोई ताल-मेल नहीं दिख रहा. परिवार अभी किसी बात की पुष्टि नहीं कर रहा जब के उच्च स्तरीय जाँच की मांग कर रहा है. और आगे बढ़ के परिवार यह भी कह रहा के दुसरे समुदाय के लोग हमेशा ही मिल जुल कर रहते आएं हैं उन्होंने बदला लेने के लिए ऐसा क्यों किया यह बात उनको समझ नहीं आरही। फ़िर यह बात उनको क्यों समझायी जारही है. क्या केस की जाँच के पूरी होने तक़ इंतज़ार करने से किसी की राजनीति को फ़ायदा कम होता
डीएनए जैसे सबूत की पुष्टि भी सरकार नहीं कर रही पर मंदिर को ही घटना स्थल बताने में कोई भी समाचार-पत्र ख़ासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पीछे नहीं है. बच्ची का नाम, धर्, समुदाय, उसकी तस्वीर सब का प्रयोग किया जा रहा है , अब जब हाई कोर्ट ने फटकार लगायी तब गलती में सुधर हुआ है।
सोशल मीडिया पर गुनाहगारो जो नामज़द ही है, की तस्वीरें आरोपी के रूप में पहचान के लिए दिखाई जा रही है , क्या थोड़ा इंतज़ार कर लेने में; पक्के तौर पर पुष्टि हो जाने तक हमे रुकना नहीं चाहिए था. क्या अब यहाँ कोर्ट के निर्णय से पहले ही हम-आप , मीडिया, सत्ता दाल या विपक्ष अपनी-अपनी सुविधा कौर फ़ायदे को भांप कर कोर्ट से पहले ही निर्णायक नहीं बने हुए हैं.
दुर्भाग्य से यहाँ हर दल के पास उपद्रवी भीड़ होती है और उस भीड़ को सड़क पर उतार कर अपने मुद्दों की राजनीति को सड़कों पर ले आते है और बहुत हद तक जनता को भी समझाने में सफल है।
(ये लेखक के निजी विचार है। )
- संपादकीय
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