दुलारी बेटियां/जीत का जूनून - Kashi Patrika

दुलारी बेटियां/जीत का जूनून

कॉमनवेल्थ गेम्स में मेडल जीतने वाला हर खिलाड़ी खास है, लेकिन भारत की दुलारी बेटियों को सलाम, क्योंकि उनके लिए न ही यहां तक का सफर आसान था, न ही आगे की राह आसान होगी। ऐसा इसलिए की तमाम दावों-वादों से इतर महिलाओं की जिंदगी आज भी कहीं ज्यादा मुश्किल है। इसका एक छोटा सा उदाहरण बीसीसीआई की घोषणा में झलक जाता है। इस साल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के ठीक एक दिन पहले नए कॉन्ट्रैक्ट सिस्टम का ऐलान किया गया, जिसके मुताबिक पुरुष क्रिकेट टीम के टॉप प्लेयर्स को सात करोड़ रुपए मिलेंगे और महिला टीम की टॉप प्लेयर्स को 50 लाख रुपए। यानी पुरुष खिलाड़ियों को महिलाओं से 14 गुना ज्यादा रुपए मिलेंगे। कमोबेश यही हाल हर जगह है, इन अनगिनत बंदिशों, दोगुनी चुनौतियों और दबाव को दरकिनार कर इन बेटियों ने मेडल पर कब्जा जमाया। इसलिए इनकी हर जीत, हर उपलब्धि कहीं ज्यादा खास है।
चित्र साभार
इस कॉलम के जरिए इन बेटियों के जज्बे को नमन और अन्य बेटियों को एक सीख कि वो भी खास हैं। बस थोड़े जज्बे और बहुत सारे मेहनत से तूफान में भी दीया जलाया जा सकता है। आज हम जिक्र करेंगे मीराबाई चानू की जिन्होंने जिंदगी की मुसीबतों को पार कर गोल्ड पर कब्जा जमाया


 23 साल, 4 फ़ुट 11 इंच की मीराबाई चानू को देखकर अंदाजा लगाना भी मुश्किल है कि नन्ही सी मीरा बड़े-बड़ों के छक्के छुड़ा सकती हैं। लेकिन 48 किलोग्राम के अपने वजन से करीब चार गुना ज्यादा वजन यानी 194 किलोग्राम उठाकर मीरा ने गोल्ड पर कब्जा जमा लिया। इंफाल की रहने वाली चानू से हालांकि कॉमनवैल्थ गेम्स शुरू होने से पहले ही उम्मीद की जा रही थी कि वह भारत की झोली में पक्का पदक डालेंगी। चानू ने ऐसा किया भी।

बांस से ही की वेटलिफ्टिंग की प्रैक्टिस
8 अगस्त 1994 को जन्मी और मणिपुर के एक छोटे से गांव में पलीबढ़ी मीराबाई बचपन से ही हुनरमंद थीं। उनका गांव इंफाल से करीब 200 किलोमीटर दूर असुविधाओं से भरा था। लेकिन मीराबाई के जेहन में मणिपुर की ही महिला वेटलिफ़्टर कुंजुरानी देवी बस गईं और छह भाई-बहनों में सबसे छोटी मीराबाई ने वेटलिफ़्टर बनने की ठान ली।
मीरा की जिद के आगे माँ-बाप को भी हार माननी पड़ी। 2007 में जब प्रैक्टिस शुरू की, तो पहले-पहल उनके पास लोहे का बार नहीं था और वो बांस से ही प्रैक्टिस किया करती थीं।

ट्रेनिंग के लिए 50 किलोमीटर का सफर
गांव में ट्रेनिंग सेंटर नहीं था, तो 50-60 किलोमीटर दूर ट्रेनिंग के लिए जाया करती थीं। डाइट में रोजाना दूध और चिकन आम परिवार के लिए मुमकिन नहीँ था, सो मीराबाई ने इसे भी आड़े नहीँ आने दिया।

इम्तहान कई हुए
मीराबाई के माता-पिता के पास इतने संसाधन नहीं थे। बात यहां तक आ पहुंची थी कि अगर रियो ओलंपिक में क्वालीफ़ाई नहीं कर पाईं तो वो खेल छोड़ देंगी। हालांकि, उन्हेँ ऐसा नहीँ करना पड़ा, क्योंकि उनके जुनून ने वर्ल्ड चैंपियनशिप के अलावा ग्लासगो कॉमनवेल्थ गेम्स में भी उन्हें सिल्वर मेडल दिलाया।

फिजियो की मदद नहीँ
भारत का नाम कॉमनवैल्थ में चमकाने वाली चानू ने बिना फिजियो के ही यह उपलब्धि हासिल की है। चानू ने बताया कि  यहां प्रतियोगिता के लिए कोई फिजियो नहीं था। उन्हें यहां आने की अनुमति नहीं मिली, प्रतियोगिता में आने से पहले मुझे पर्याप्त उपचार नहीं मिला।


मीराबाई की जुबानी
वे कहती हैं, "मुझे रिकॉर्ड तोड़ने की उम्मीद नहीं थी, लेकिन जब मैं यहां आई तो सोचा था कि रिकॉर्ड बनाउंगी। मैं शब्दों में नहीं बता सकती कि इस समय कैसा महसूस कर रही हूं। मेरा अगला लक्ष्य एशियाई खेल है। मैं इससे भी बेहतर करना चाहती हूं। वहां काफी कठिन स्पर्धा होगी और मुझे बहुत मेहनत करनी होगी।" उनका अगला पड़ाव 2020 टोक्यो ओलंपिक है।
मीराबाई को डांस का भी शौक है। बकौल मीरा ट्रेनिंग के बाद कमरा बंद करके कभी-कभी डांस करती हैं। सलमान खान उनके पसंदीदा कलाकार हैं।
-सोनी सिंह

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