कामयाबी के आगे
आस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में हुए इक्कीसवें राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय खिलाड़ियों का शानदार प्रदर्शन इस बात का संकेत है कि खेलों के विविध आयामों में हमारी प्रतिभाएं निखर रही हैं और कामयाबी के झंडे गाड़ रही हैं। इस बार राष्ट्रकुल खेलों में भारत पहले या दूसरे स्थान पर भले न रहा हो, लेकिन उपलब्धियां इस मायने में ज्यादा बड़ी हैं कि बैडमिंटन, मुक्केबाजी और टेबिल टेनिस जैसे खेलों में भारतीय खिलाड़ियों ने नए कीर्तिमान स्थापित किए। कई उपलब्धियां तो ऐसी हैं, जो पहली बार भारत की झोली में आई। जैसे जेवलिन थ्रो में नीरज चोपड़ा ने कमाल किया। वह कॉमनवेल्थ गेम्स में जेवलिन थ्रो में गोल्ड जीतने वाले पहले भारतीय बन गए। बीस वर्षीय नीरज ने पहले ही थ्रो में क्वालीफाईंग आंकड़े को छूकर फाइनल में जगह पक्की कर ली थी। मोहम्मद अनस 400 मीटर दौड़ में भले ही ब्रॉन्ज से चूक गए पर उन्होंने सबका दिल जीत लिया। उन्होंने 45.31 सेकंड का समय निकाला और इस तरह एक राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया। हिमा दास 400 मीटर दौड़ के फाइनल तक पहुंचीं। इसी तरह और ऐथलीटों ने अच्छा प्रदर्शन कर यह आशा जगाई है कि भारत को जल्दी ही ऐथलेटिक्स में पदक मिलने लगेंगे।
निशानेबाजी में पिछले दिनों युवाओं की एक नई खेप सामने आई है, जिसने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपना जलवा बिखेरा है। गोल्ड कोस्ट में उसका दमखम साफ नजर आया। कुश्ती, बॉक्सिंग और बैडमिंटन में भारत की स्थिति मजबूत रही है। इसलिए आशा के अनुरूप ही इसमें मेडल मिले। हॉकी में निराशा हाथ लगी। कॉमनवेल्थ की उपलब्धि दरअसल युवाओं की उपलब्धि है। भारतीय दल में युवाओं का दबदबा था। शूटिंग में गोल्ड जीतने वाले अनीश भानवाला मात्र 15 साल के हैं। शूटर मनु भाकर 16 की हैं। 16 से 20 की उम्र के कई खिलाड़ी हैं। खिलाड़ियों में कई महिलाएं हैं, जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष करके अपना रास्ता बनाया।
कुल मिलाकर, राष्ट्रमंडल खेलों में भारत की उपलब्धियां बताती हैं कि हमारे यहां प्रतिभाओं की कमी नहीं है। बस जरूरत है, तो प्रतिभाओं को खोज कर उन्हें बढ़ावा, बेहतरीन प्रशिक्षण और सुविधाएं मुहैया कराने की। देश में जो तवज्जो क्रिकेट जैसे खेल को दी जाती है वह और खेलों को नहीं मिलती। इतना ही नहीँ खेल के क्षेत्र में प्रतिभाओं को आगे लाने के लिए खेल संघ समर्पण से काम नहीँ करते, बल्कि यहां भी राजनीति की पैठ है। यदि खेल संघ दबाव से मुक्त होकर पूर्ण समर्पण के साथ काम करें और राजनीति के चंगुल से मुक्त हों तो भारतीय खिलाड़ी दुनिया में हर खेल में परचम लहराने में सक्षम हैं।
-संपादकीय
निशानेबाजी में पिछले दिनों युवाओं की एक नई खेप सामने आई है, जिसने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपना जलवा बिखेरा है। गोल्ड कोस्ट में उसका दमखम साफ नजर आया। कुश्ती, बॉक्सिंग और बैडमिंटन में भारत की स्थिति मजबूत रही है। इसलिए आशा के अनुरूप ही इसमें मेडल मिले। हॉकी में निराशा हाथ लगी। कॉमनवेल्थ की उपलब्धि दरअसल युवाओं की उपलब्धि है। भारतीय दल में युवाओं का दबदबा था। शूटिंग में गोल्ड जीतने वाले अनीश भानवाला मात्र 15 साल के हैं। शूटर मनु भाकर 16 की हैं। 16 से 20 की उम्र के कई खिलाड़ी हैं। खिलाड़ियों में कई महिलाएं हैं, जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष करके अपना रास्ता बनाया।
कुल मिलाकर, राष्ट्रमंडल खेलों में भारत की उपलब्धियां बताती हैं कि हमारे यहां प्रतिभाओं की कमी नहीं है। बस जरूरत है, तो प्रतिभाओं को खोज कर उन्हें बढ़ावा, बेहतरीन प्रशिक्षण और सुविधाएं मुहैया कराने की। देश में जो तवज्जो क्रिकेट जैसे खेल को दी जाती है वह और खेलों को नहीं मिलती। इतना ही नहीँ खेल के क्षेत्र में प्रतिभाओं को आगे लाने के लिए खेल संघ समर्पण से काम नहीँ करते, बल्कि यहां भी राजनीति की पैठ है। यदि खेल संघ दबाव से मुक्त होकर पूर्ण समर्पण के साथ काम करें और राजनीति के चंगुल से मुक्त हों तो भारतीय खिलाड़ी दुनिया में हर खेल में परचम लहराने में सक्षम हैं।
-संपादकीय
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