कुछ लोगों का हर काम अनूठा होता है। पद्मभूषण से सम्मानित रामकुमार उनमेँ से एक थे, जिनकी पकड़ कुची और कलम दोनों पर समान थी। कहानियां लिखीं तो अनूठी, चित्र बनाए तो अनूठे। बनारस पर बनाए उनके चित्रों की लंबे समय तक चर्चा होती रही। अपनी कथा और कला से दुनिया को समृद्ध करने वाले रामकुमार ने शनिवार को दुनिया से विदा लिया। शिमला में 1924 में जन्मे रामकुमार हिंदी के मशहूर लेखक निर्मल वर्मा के बड़े भाई थे। सेंट स्टीफन कालेज से पढ़े रामकुमार ललित कला अकेडमी के फेलो भी थे। उनकी पेंटिंग हुसैन तैयब मेहता की तरह करोड़ों रुपये में बिकती थी। वह अपने अमूर्त चित्रों के लिए जाने जाते थे। प्रकृति उनके बनाए चित्रों में एक अलग ढंग से आती रही। उन्होंने कभी प्रकृति का वास्तविक चित्रण तो नहीं किया, मगर अहसास हमेशा तीव्र रहा। चटकीले रंगों से बचते हुए जगहों का जैसा इंप्रेशन उनके कैनवस पर दिखता है, वह उन्हें दूसरों से अलग रखता है। उनके चित्रों की सबसे बड़ी विशेषता यही थी कि पाठक से संवाद में इनकी कला आत्मीय-सी लगती थी। उनके आकार संवाद की स्थिति बनाते रहे और उसमें हम संवेदना पाते रहे। वे संकोची स्वभाव के थे। अपनी रचनाओं पर खुद बात करने में उन्हें एक झिझक-सी होती थी, लेकिन कला पर बहस के पक्षधर थे। वह साठ के दशक के चर्चित कहानीकार भी थे। अपने समकालीन चित्रकारों एम.एफ. हुसैन, तैयब मेहता और सैयद हैदर रजा की तरह रामकुमार भी प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप से जुड़े हुए थे। उनकी चित्रों की प्रदर्शनी दुनिया के कई देशों में लगी थी। उन्हें 1972 में पद्मश्री से और 2010 में पद्मभूषण प्रदान किया गया।
बनारस पर बनाए चित्रों के लिए चर्चित रहे।
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