श्री गंगालहरी - Kashi Patrika

श्री गंगालहरी

श्री गंगालहरी 


दरस्मितसमुल्लसदव्दनकान्तिपूरामृतै-
  र्भवज्वलनभर्जिताननिशमूर्जयन्ती नरां  ।
      चिदेकमयचन्द्रिकाचयचम मत्कृतिं तन्वती  
             तनोतु मम शंतनोः सपदि  शन्तनोरङ्गना ॥ ४९॥



         मन्त्रैर्मिलितमौषधैर्मुकुलितं त्रस्तं सुराणां गणैः
             स्त्रस्तं सान्द्रसुधारसैर्विदलितं गारुत्मतैर्ग्रावभिः ।
               वीचिक्षालितकालियाहितपदे  स्वर्लोककल्लोलिनि 
                      त्वं तापं तिरयाधुना मम भवज्वालावलीढात्मनः ॥ ५०॥


आज हम श्री गंगालहरी के दो और श्लोकों को प्रकाशित कर रहें हैं।  


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