जो तुम आ जाते एक बार/महादेवी वर्मा - Kashi Patrika

जो तुम आ जाते एक बार/महादेवी वर्मा

जो तुम आ जाते एक बार



कितनी करूणा कितने संदेश,

पथ में बिछ जाते बन पराग,

गाता प्राणों का तार तार,

अनुराग भरा उन्माद राग,

आंसू लेते वे पथ पखार,

जो तुम आ जाते एक बार।

हंस उठते पल में आर्द्र नयन,

धुल जाता होठों से विषाद,

छा जाता जीवन में बसंत,

लुट जाता चिर संचित विराग,

आंखें देतीं सर्वस्व वार,

जो तुम आ जाते एक बार।।


जब यह दीप थके


जब यह दीप थके तब आना

यह चंचल सपने भोले है,

दृग-जल पर पाले मैने, मृदु

पलकों पर तोले हैं,

दे सौरभ के पंख इन्हें सब नयनों मे पहुंचाना!

पूछता क्यों शेष कितनी रात?

पूछता क्यों शेष कितनी रात?

छू नखों की क्रांति चिर संकेत पर जिनके जला तू

स्निग्ध सुधि जिनकी लिये कज्जल-दिशा में हंस चला तू

परिधि बन घेरे तुझे, वे उंगलियां अवदात!

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