प्राकृतिक सौंदर्य से ओतप्रोत पंचगनी वाकई मनमोहनी है। इसकी सुरम्य वादियों से गुजरकर राजपुरी गांव के करीब-करीब अंतिम छोर पर स्थित है,"राजपुरी गुफाएं"।
पार्किंग से कुछ कदम चलने के बाद आड़ी-टेढ़ी सीढ़ियां गुफाओं तक जाती है। इन सीढ़ियों का निर्माण 1943 में संत गाडगेबाबा ने दलितों के हाथों से कराया था, सो इनका भी अपना इतिहास है। गर्मी की दोपहर में भी यहां रंचमात्र तपन नहीँ था। सीढ़ियों से नीचे उतरते ही ग्रामीण बच्चे केरी और लस्सी बेच रहे थे। संकड़ी गली से होते हुए गुफाओं तक पहुंचते हैं।
गुफाएं तीन तरफ विशाल पत्थरों से घिरी है, सिर्फ सामने घाटी फैली हुई है, जिनको लांघ कर दूर सीना ताने पहाड़ दिख रहे थे। विशाल पत्थरों के बीच स्थित "राजपुरी गुफाएं" शिव-शक्ति के पुत्र भगवान कार्तिकेय को समर्पित हैं। प्राचीन कलात्मक मूर्तियों, मानवीय जीवन के उतार-चढ़ाव, अविरल बहते जल और अद्भुत शांति सहेजे-समेटे यह जगह पर्यटकों से लगभग अछूती है। करीब दसवीं-ग्यारहवीं सदी में अस्तित्व में आईं।
पौराणिक कथाओं के चश्मे से
प्राचीन कथाओं के अनुसार एक बार भगवान कार्तिकेय अपने पिता शिव को प्रसन्न करने और उनका प्रेम पाने के उद्देश्य से विश्व भ्रमण पर निकले थे, उस समय यहीँ पर कार्तिकेय की मुलाकात नारद मुनि से हुई थी। ग्रामीणों में प्रचलित किस्सों के मुताबिक इन गुफाओं का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने रातोंरात कर दिया था। गुफाओं का संबंध पांडवों से भी है। माना जाता है कि अज्ञातवास के दौरान उन्होंने द्रौपदी के साथ इन गुफाओं की शरण ली थी। इन गुफाओं की देखभाल और पूजापाठ के उद्देश्य से यहां एक पंडित सहित दो लोग रहते हैं।
आपस में उलझी छह गुफाएं और प्राकृतिक कुंड
यहां छोटी-बड़ी कुल छह गुफाएं हैं, जो आपस में सुरंग द्वारा एक-दूसरे से यूं जुड़ी हैं इन्हें अलग-अलग कर गिनना कठिन है। गुफाओं में प्राकृतिक रूप से बने तीन कुंड हैं, जिनमें निरंतर पानी की पतली-सी धारा गोमुख से गिरती रहती है।
पाताल गंगा: यह प्राकृतिक जल पाताल गंगा का है, ऐसी मान्यता है।
कुंड: तीन कुंड हैं, दत्तात्रेय, मल्लिकार्जुन और विष्णु कुंड। धार्मिक आस्था है कि इन कुंडों के जल में स्नान कर सभी बुरे कर्मों का पाप धुल जाता है और शरीर निरोग हो जाता है। विशेष दिन यहां स्नान करने वालों की भीड़ रहती है। कुंड का जल अत्यंत शीतल है, जिसे पीकर आप तृप्त हो जाएंगे।
गुफाएं- पहली गुफा के द्वार पर मल्लिकार्जुन कुंड स्थित है, जो आकार में सबसे बड़ा है। यहां एक गाय की मूर्ति है, जिसके मुख से पानी लगातार कुंड में गिरता रहता है। इसके बगल में "दत्तात्रेय कुंड" है और सबसे अंत में "विष्णु कुंड" है। विष्णु कुंड जहां स्थित है, वह जगत् जननी यानी कार्तिकेय की माता जगदंबा का घर है।
गुफा 'दो' पहली गुफा से छोटी है, जिसमें उत्तर की ओर मुख किए शिवलिंग स्थापित है।
गुफा 'तीन' में भगवान विष्णु की मूर्ति है, जिसके हाथ में शंख, गदा, कमल का फूल, चक्र है।
गुफा 'चार' शिव को समर्पित है, जिसमें शिवलिंग, नंदी के अलावा कुछ अन्य मूर्तियां हैं।
गुफा 'पांच' भगवान कार्तिकेय की है। इसके अंदर एक छोटी सी गुफा में भगवान मल्लिकार्जुन (शिवलिंग) है, जो बाबधन गांव की खुदाई में मिली थी और यहां लाकर स्थापित की गई है। मल्लिकार्जुन गुफा के द्वार पर एक तरफ भैरव और दूसरी तरफ गणपति की मूर्ति है। यहीँ दक्षिण की तरफ भगवान कार्तिकेय की गुफा है।
गुफा 'छह' अंतिम गुफा है, जो बाहर से बंद है। इसमें सिर्फ नंदी की मूर्ति मौजूद है।
गुफाओं के अंदर दिन के वक्त भी इतना अंधेरा था कि टॉर्च के बिना मूर्तियों को देखना मुश्किल था। दीवारों पर देवनागरी (पाली) में शिलालेख भी मौजूद हैं।
स्त्रियों को दर्शन की मनाही
शास्त्रों में यह वर्णन है कि शिव और पार्वती के कहने पर उनके दोनों पुत्रों कार्तिकेय एवं गणेश प्रथम पूज्य देव होने की प्रतियोगिता में शामिल हुए और पृथ्वी की परिक्रमा पर निकले। किंतु गणेश जी भारी-भरकम शरीर वाले होने के कारण एक जगह बैठ गए और कार्तिकेय मोर पर सवार होकर पृथ्वी परिक्रमा पर चले गए। कार्तिकेय काफी वर्षों तक भ्रमण करते रहे और परिक्रमा पूरी नहीं कर सके।
गणेशजी ने धीरे-धीरे अपने माता-पिता की परिक्रमा पूरी कर ली और गणेश जी को बुद्धिमान मान लिया गया। बड़ा मानकर गणेशजी की शादी करा दी। जब कार्तिकेय वापस आए, तो वे इस बात से क्रोधित होकर तपस्या पर चले गए। जब शिव-पार्वती कार्तिकेय को मनाने पहुंचे, तो उन्होंने क्रोध में श्राप दे दिया कि जो स्त्री उनका दर्शन करेंगी वो सात जन्मों तक विधवा बनेंगी और पुरुष दर्शन करेंगे, तो वे सात जन्म तक नरक को भोगेंगे।
हालांकि, फिर शिव-पार्वती के आग्रह पर उनका क्रोध शांत हुआ। इसके बाद कार्तिकेय ने कहा, "कार्तिक पूर्णिमा (भगवान कार्तिकेय का जन्मदिन) के दिन जो दर्शन करेगा, उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी।" तब से वर्ष में एक बार ही कार्तिकेय मन्दिरों के पट भक्तों के लिए खुलते हैं और बड़ी संख्या में भक्तगण दर्शन-पूजन करते हैं। "राजपुरी में यह नियम पूरी तरह लागू है और स्त्रियों का दर्शन वर्जित है।"
पहुंचने की कसरत
पंचगनी से यह लगभग यह 8 से 10 किमी की दूरी पर स्थित है। राजपुरी गांव महाबलेश्वर, महाड, वई, चिपलुन आदि से करीब है। यह सतारा और रायगढ़ जिले की सीमा पर स्थित है। लोकल ट्रांसपोर्ट से आसानी से महाबलेश्वर और पंचगनी से यहां पहुंचा जा सकता है। आसपास यहां रेलवे स्टेशन मौजूद नहीँ है। निकटतम रेलवे स्टेशन पुणे (लगभग 82 किमी) है।
-सोनी सिंह
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