बेबाक हस्तक्षेप - Kashi Patrika

बेबाक हस्तक्षेप

बड़े जतन और परिश्रम के बाद केंद्र सरकार ने साल भर उथल-पुथल रहने वाले विश्वविद्यालय (बीएयू) में राकेश भटनागर जी जैसे शिक्षविद की नियुक्ति की है। राष्ट्रपति द्वारा होने वाली इस नियुक्ति में ऐसा माना जाता है कि केंद्र का परोक्ष हस्तक्षेप होता है। 
माननीय गिरीश चंद्र त्रिपाठी जैसे इकोनॉमी के जानकार शिक्षाविद ने अपने तीन साल के कार्यकाल के दौरान कई महत्वपूर्ण कार्य किए, साथ ही कुछ गलतियां भी कीं और जिन्हें अपने कार्यकाल के अंतिम पड़ाव पर उन्होंने स्वीकारा भी। अपने कार्यकाल के अंतिम क्षणों में गिरीशजी टूट से गए और विश्वविद्यालय की आतंरिक राजनीति से उन्होंने ये कहते हुए बचाव किया,"अपने कार्यकाल के दौरान मुझसे कुछ अयोग्य नियुक्तियां भी हुईं।"
अब जब सब कुछ सौ गज जमीन के नीचे योजनाबद्ध तरीके से दफन भी कर दिया गया मालूम होता है; ऐसे में माननीय राकेश भटनागर जैसे विद्वान् को बीएचयू की कमान सौंपना यहां के ज्ञानियों के गले नहीँ उतर रहा। 
एक तो, उनके अब तक के कार्यकाल से समझ आ गया है कि वो पुराने मुद्दों से पल्ला झाड़ लेने की प्रक्रिया के पैरोकार हैं, यानी "बीती ताहि, बिसार दे" की नीति को ध्यान में रख उन्हें विश्वविद्यालय में अब तक क्या हुआ से लेनदेना नहीँ है। ऐसे व्यक्ति को किसी सर्वमान्य बीएचयू का कुलपति नियुक्त करना यहां के जानकारों को लीपा-पोती करने जैसा लग रहा है, जिनकी नजर में यह तमाम नाकामियों पर पर्दा डालने की कोशिश जैसा है। 
कुल मिलाकर, ऐसे में विश्वविद्यालय का आने वाला वर्ष में कठिन प्रतीत हो रहा है। अगर भटनागरजी ने जल्द ही पुराने मामलों का निपटारा नहीं किया, तो स्थितियां और विषम हो सकती हैं। हालांकि, विवादों पर पर्दा डालने वाली छवि के भटनागरजी से फिलहाल ज्यादा सुधारों की उम्मीद करना बेमानी ही नहीँ, जल्दबाजी भी होगी।
- संपादकीय

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