निःसन्तान की गोद भरती हैं मां अनुसूइया - Kashi Patrika

निःसन्तान की गोद भरती हैं मां अनुसूइया


हमारे देश का इतिहास ऐसी महिलाओं की गाथाओं से पटा है, जिन्होंने अपने तप, सत, वीरता से अबला के सबला रूप से परिचित ही नहीँ कराया, उसे पूज्यनीय भी बनाया। सिर्फ इंसान ही नहीँ देवता भी उनके सामने नतमस्तक हुए, ऐसी ही देवी हैं माता अनुसूइया। जिनके कोख से ब्रह्मा ने चंद्रमा, शिव ने दुर्वासा और विष्णु ने दत्तात्रेय के रूप में जन्म लिया और देवी अनुसूइया 'पुत्रदा' माता के रूप में विश्वभर में पूजी जाने लगीं। उत्तराखण्ड के चमेली जिले मंडल से करीब 6 किमी की ऊंचाई पर पहाड़ों पर स्थित है माता अनुसूइया का मंदिर, जहां विशेष रूप से निःसन्तान लोग सन्तान की कामना लेकर आते हैं।  


देवी अनुसूइया राजा कर्दम और देवहूति की 9 कन्याओं में से एक व ऋषि अत्रि की अर्धांगिनी थीं। उनके पतिव्रत्य का तेज इतना था कि देवों तक भी उनके प्रताप का प्रभाव था। यही कारण है कि उन्हें 'माता अनुसूइया' के नाम से जाना जाता है। उनके पतिव्रत्य की चर्चा सुनकर स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और महेश उनकी परीक्षा लेने आए थे।

कथाओं के झरोखे से 
मान्यता के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु व महेश अनुसूइया के सतित्व और ब्रह्मशक्ति को परखने के लिए गए थे। परंतु जब कई वर्षों तक तीनों देव वापिस नहीं लौटे तो तीनों देवियां चिंतित होकर चित्रकूट गईं। वहां उनकी मुलाकात नारद जी से हुई। उन्होंने नारद जी से अपने पतियों का पता पूछा, तो नारद जी ने बताया कि वे सती अनुसूइया के आश्रम में बालक बनकर खेल रहे हैं। ‍तब तीनों देवियां अनुसूइया के आश्रम पहुंचीं तथा माता अनुसूइया से क्षमा याचना कर तीनों देवों को उनके मूल स्वरूप में प्रकट करवाने का निवेदन किया। तब सती अनुसूइया ने तीनों बच्चों पर जल छिड़ककर उन्हें उनका पूर्व रूप प्रदान किया। तदनंतर ब्रह्मा ने चंद्रमा, शिव ने दुर्वासा और विष्णु ने दत्तात्रेय के रूप में माता अनुसूइया की गोद से जन्म लिया व देवी अनुसूइया 'पुत्रदा' यानी माता के रूप में विश्वभर में पूजी जाने लगी। तभी से इस स्थान पर सती मां अनुसूइया को पुत्रदायिनी के रूप में पूजा जाता है।


नवरात्र में विशेष पूजा
'नवरात्र' के दिनों में अनुसूइया देवी के मंदिर में नौ दिन तक मंडल घाटी के ग्रामीण मां का पूजन करते है। मंदिर की विशेषता यह है कि दूसरे मंदिरों की तरह यहां पर बलि प्रथा का प्रावधान नहीं है। यहां श्रद्धालुओं को विशेष प्रसाद दिया जाता है। यह स्थानीय स्तर पर उगाए गए गेहूं के आटे से बनाया जाता है। यहां संतान की कामन से लोग अनुसूइया की विशेष-पूजा अर्चना करते हैं।

मंदिर का निर्माण
प्राचीन काल में यहां देवी अनुसूइया का छोटा-सा मंदिर था, जब्कि सत्रहवीं सदी में कत्यूरी राजाओं ने इस स्थान पर अनुसूइया देवी के भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। परंतु अठारहवीं सदी में आए विनाशकारी भूकंप से यह मंदिर ध्वस्त हो गया। इसके बाद संत ऐत्वारगिरी महाराज ने ग्रामीणों की मदद से इस मंदिर का पुन: निर्माण करवाया।

कैसे पहुंचे
यहां आने के लिए यात्री ऋषिकेश से चमोली तक 250 किलोमीटर की दूरी तय कर सड़क मार्ग से पहुंच सकते हैं। यहां से दस किलोमीटर गोपेश्वर पहुंचने के बाद 13 किलोमीटर दूर मंडल तक वाहन की भी सुविधा है। मंडल से पांच किलोमीटर पैदल चढ़ाई चढ़कर देवी अनुसूइया के मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। हर वर्ष 'दत्तात्रेय जयंती समारोह' मनाया जाता है, जिसमें पूरे देशभर से लोग शामिल होने के लिए यहां पहुंचते हैं। इसके अलावा यहा इस दिन को 'नौदी मेले' का आयोजन होता है।

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