काशी सत्संग/ मनुष्य ने रचा दुःख - Kashi Patrika

काशी सत्संग/ मनुष्य ने रचा दुःख




ईश्वर ने संसार की रचना की और मनुष्य ने अपने विचार व कर्मों से दुःख और सुख की रचना कर ली...
अब ईश्वर कहते हैं कि तुम मुझे पसंद करो या नापसंद, दोनों ही मेरे पक्ष में हैं। क्योंकि अगर तुम मुझको पसंद करते हो, तो मैं तुम्हारे दिल में हूं। और अगर नापसंद करते हो, तो मैं तुम्हारे दिमाग में हूं !! पर रहूंगा तुम्हारे पास ही।
"सफलता" या "असफलता" को कभी ईश्वर की कृपा से नहीं जोड़ना चाहिए। "सफलता" की पोशाक कभी तैयार नहीं मिलती, इसे बनाने के लिए "मेहनत" का हुनर चाहिए, जबकि "असफलता" के साथी हैं "आलस्य" और "अकर्मण्यता"। गीता का भी यहीं सार है, "कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचनः"।
"इच्छाएं पूरी नही होतीं, तो क्रोध बढ़ता है और इच्छाएं पूरी होतीं हैं, तो लोभ बढ़ता है। इसीलिए जीवन की हर तरह की परिस्थिति में धैर्य बनाये रखना ही श्रेष्ठता है।"

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