जन्मदिवस विशेष:
शास्त्रीय संगीत के महारथी मन्ना दा (डे) ने अपनी आवाज से फिल्मी गीतों को इस कदर सजाया-संवारा की सैकड़ों जुबान पर "जिंदगी कैसी है पहेली..., प्यार हुआ इकरार हुआ...,नदिया चले चले रे धारा..., ऐ मेरी जोहर-ए-जबीं..., ये रात भीगी-भीग..., बाबू समझो इशारे...जैसे गीत आज भी बने हुए हैं। रूमानी से शास्त्रीय हर विद्या पर उनकी पकड़ ऐसी थी कि संगीत के दिग्गज भी उनकी गायकी के कायल थे। मोहम्मद रफी ने एक साक्षात्कार में कहा था, "आप लोग मेरे गीत सुनते हैं, लेकिन मैं मन्ना दा के गीतों को ही सुनता हूं।" इसी तरह महेंद्र कपूर कहते हैं, "हम सभी उन्हें आज भी मन्ना दा के नाम से ही पुकारते हैं। शास्त्रीय गायकी में उनका कोई सानी नहीं।"
अपने सुरमयी सफर में मन्ना दा ने तकरीबन 4000 गीत गाए, जिनमें 12 भाषाओं के गाने शुमार हैं। उन्होंने 1500 से ज्यादा हिंदी गानों के साथ 1200 से ज्यादा बंगाली गाने गाए। उनके द्वारा गाए गानों में 85 गुजराती, 70 मराठी, 35 भोजपुरी, 18 पंजाबी, 8 उड़िया, 6 असमी गाने, 2-2 कन्नड़ और मलयालम, 1-1 कन्नड़, मलयालम और मगही भाषा के गाने शामिल हैं।
किस्मत की बात है..
निदा फाजली का शेर है, "कोशिश भी कर उम्मीद भी रख, रास्ता भी चुन, फिर इसके बाद थोड़ा मुकद्दर तलाश कर" यहीँ मुक्कदर की बात रही होगी, जो कुश्ती-मुक्केबाजी में दिलचस्पी रखने वाला युवक एक दिन संगीत की दुनिया में सबका चहेता बन गया। जी हां, कॉलेज के दिनों में मन्ना दा यानि प्रबोध चन्द्र डे को कुश्ती-मुक्केबाजी का सिर्फ शौक ही नहीँ था, ऐसी प्रतियोगिताओं में हिस्सेदारी भी करते थे। पिता उन्हें वकील बनाना चाहते थे, लेकिन मन्ना की किस्मत में कुछ और था, जो उन्हें मुंबई खींच लाया।
सारेगामा...की शुरुआत
1 मई 1919 को मन्ना दादा का जन्म कोलकाता में हुआ। कलकत्ता में मन्ना डयानि प्रबोध चन्द्र डे का जन्म हुआ था। संगीत की शुरुआती शिक्षा उनके चाचा केसी डे ने दी थी। उनके बचपन के दिनों का एक दिलचस्प वाकया है। उस्ताद बादल खान और मन्ना दा के चाचा एक बार साथ-साथ रियाज कर रहे थे। तभी खान ने मन्ना दा की आवाज सुनी और उनके चाचा से पूछा," यह कौन गा रहा है?" जब मन्ना दा को बुलाया गया, तो वह बोले, "बस ऐसे ही गा लेता हूं", लेकिन बादल खान ने मन्ना की छिपी प्रतिभा को पहचान लिया और इसके बाद वह अपने चाचा से संगीत की शिक्षा लेने लगे। फिर 40 के दशक में अपने चाचा के साथ मन्ना दा संगीत के क्षेत्र में किस्मत आजमाने मुंबई आ गए और यहीँ के होकर रह गए।
"तमन्ना" से चली गाड़ी
उनके गायन का सफर 1942 में फिल्म ‘तमन्ना’ से शुरू हुआ और 2013 तक
चलता रहा। फिल्म तमन्ना में उन्हें सुरैया के साथ गाने का मौका मिला। हालांकि, इससे पहले वह फिल्म "रामराज्य" में कोरस के रूप में गा चुके थे। 1950 की "मशाल" में उन्होंने एकल गीत "ऊपर गगन विशाल" गाया, जिसको संगीत की मधुर धुनों से सजाया था सचिन देव बर्मन ने। प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन ने अपनी अमर कृति मधुशाला को स्वर देने के लिये भी मन्ना दा का चयन किया। मन्ना दा की प्रतिभा को पहचानने वालों में संगीतकार शंकर-जयकिशन का नाम खास है। इस जोडी़ ने मन्ना डे से अलग-अलग शैली में गीत गवाए। उन्होंने मन्ना डे से 'आजा सनम मधुर चांदनी में हम...' जैसे रुमानी गीत और 'केतकी गुलाब जूही...' जैसे शास्त्रीय राग पर आधारित गीत भी गवाए। दिलचस्प बात है कि शुरुआत में मन्ना दा ने यह गीत गाने से मना कर दिया था।
महात्मा गांधी ने देखी थी ये फिल्म
मन्ना दा ने फिल्म "रामराज्य" में एक कोरस गाया था। यह फिल्म महात्मा गांधी ने देखी थी। दिलचस्प बात है कि यही एक एकमात्र फिल्म थी, जिसे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने देखा था।
निजी जीवन
18 दिसंबर, 1953 को मन्ना दा ने केरल की सुलोचना कुमारन से विवाह किया। इनकी दो बेटियां हुईं। सुरोमा का जन्म 19 अक्टूबर, 1956 और सुमिता का 20 जून 1958 को हुआ। दोनों बेटियां सुरोमा और सुमिता गायन के क्षेत्र में नहीं आईं।
प्रतिष्ठा एवं सम्मान
मन्ना दा को फिल्मों में उल्लेखनीय योगदान के लिए 1971 में पदमश्री पुरस्कार और 2005 में पदमभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा वह 1969 में फिल्म "मेरे हुजूर" के लिए सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक, 1971 मे बंगला फिल्म "निशि पदमा" के लिए सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक और 1970 में प्रदर्शित फिल्म "मेरा नाम जोकर" के लिए फिल्म फेयर के सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक पुरस्कार से सम्मानित किए गए। मन्ना दा को वर्ष 2009 में फिल्मों के सर्वोच्च सम्मान "दादा साहब फाल्के" पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
आत्मकथा "जिबोनेर जलासोघोरे"
वर्ष 2005 में 'आनंदा प्रकाशन' ने उनकी आत्मकथा "जिबोनेर जलासोघोरे" प्रकाशित की। उनकी आत्मकथा को अंग्रेज़ी में पैंगुइन बुक्स ने "Memories Alive" के नाम से छापा, तो हिंदी में इसी प्रकाशन की ओर से "यादें जी उठी" के नाम से प्रकाशित की। मराठी संस्करण "जिबोनेर जलासाघोरे" साहित्य प्रसार केंद्र, पुणे द्वारा प्रकाशित किया गया।
और वे विदा हो गए
24 अक्टूबर 2013 की सुबह 4 बजकर 30 मिनट पर लंबी बीमारी के बाद वे इस दुनिया से विदा हो गए। पीछे छोड़ गए, "दिल की गिरह खोल दो...,दिल का हाल सुने दिल वाला...,ऐ मेरे प्यारे वतन...,मुड़ मुड़ के ना देख..., कस्मे वादे प्यार वफा, सब बातें हैं..., नदिया चले, चले रे धारा जैसे सदाबहार गीत।
-सोनी सिंह
शास्त्रीय संगीत के महारथी मन्ना दा (डे) ने अपनी आवाज से फिल्मी गीतों को इस कदर सजाया-संवारा की सैकड़ों जुबान पर "जिंदगी कैसी है पहेली..., प्यार हुआ इकरार हुआ...,नदिया चले चले रे धारा..., ऐ मेरी जोहर-ए-जबीं..., ये रात भीगी-भीग..., बाबू समझो इशारे...जैसे गीत आज भी बने हुए हैं। रूमानी से शास्त्रीय हर विद्या पर उनकी पकड़ ऐसी थी कि संगीत के दिग्गज भी उनकी गायकी के कायल थे। मोहम्मद रफी ने एक साक्षात्कार में कहा था, "आप लोग मेरे गीत सुनते हैं, लेकिन मैं मन्ना दा के गीतों को ही सुनता हूं।" इसी तरह महेंद्र कपूर कहते हैं, "हम सभी उन्हें आज भी मन्ना दा के नाम से ही पुकारते हैं। शास्त्रीय गायकी में उनका कोई सानी नहीं।"
अपने सुरमयी सफर में मन्ना दा ने तकरीबन 4000 गीत गाए, जिनमें 12 भाषाओं के गाने शुमार हैं। उन्होंने 1500 से ज्यादा हिंदी गानों के साथ 1200 से ज्यादा बंगाली गाने गाए। उनके द्वारा गाए गानों में 85 गुजराती, 70 मराठी, 35 भोजपुरी, 18 पंजाबी, 8 उड़िया, 6 असमी गाने, 2-2 कन्नड़ और मलयालम, 1-1 कन्नड़, मलयालम और मगही भाषा के गाने शामिल हैं।
किस्मत की बात है..
निदा फाजली का शेर है, "कोशिश भी कर उम्मीद भी रख, रास्ता भी चुन, फिर इसके बाद थोड़ा मुकद्दर तलाश कर" यहीँ मुक्कदर की बात रही होगी, जो कुश्ती-मुक्केबाजी में दिलचस्पी रखने वाला युवक एक दिन संगीत की दुनिया में सबका चहेता बन गया। जी हां, कॉलेज के दिनों में मन्ना दा यानि प्रबोध चन्द्र डे को कुश्ती-मुक्केबाजी का सिर्फ शौक ही नहीँ था, ऐसी प्रतियोगिताओं में हिस्सेदारी भी करते थे। पिता उन्हें वकील बनाना चाहते थे, लेकिन मन्ना की किस्मत में कुछ और था, जो उन्हें मुंबई खींच लाया।
सारेगामा...की शुरुआत
1 मई 1919 को मन्ना दादा का जन्म कोलकाता में हुआ। कलकत्ता में मन्ना डयानि प्रबोध चन्द्र डे का जन्म हुआ था। संगीत की शुरुआती शिक्षा उनके चाचा केसी डे ने दी थी। उनके बचपन के दिनों का एक दिलचस्प वाकया है। उस्ताद बादल खान और मन्ना दा के चाचा एक बार साथ-साथ रियाज कर रहे थे। तभी खान ने मन्ना दा की आवाज सुनी और उनके चाचा से पूछा," यह कौन गा रहा है?" जब मन्ना दा को बुलाया गया, तो वह बोले, "बस ऐसे ही गा लेता हूं", लेकिन बादल खान ने मन्ना की छिपी प्रतिभा को पहचान लिया और इसके बाद वह अपने चाचा से संगीत की शिक्षा लेने लगे। फिर 40 के दशक में अपने चाचा के साथ मन्ना दा संगीत के क्षेत्र में किस्मत आजमाने मुंबई आ गए और यहीँ के होकर रह गए।
"तमन्ना" से चली गाड़ी
उनके गायन का सफर 1942 में फिल्म ‘तमन्ना’ से शुरू हुआ और 2013 तक
चलता रहा। फिल्म तमन्ना में उन्हें सुरैया के साथ गाने का मौका मिला। हालांकि, इससे पहले वह फिल्म "रामराज्य" में कोरस के रूप में गा चुके थे। 1950 की "मशाल" में उन्होंने एकल गीत "ऊपर गगन विशाल" गाया, जिसको संगीत की मधुर धुनों से सजाया था सचिन देव बर्मन ने। प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन ने अपनी अमर कृति मधुशाला को स्वर देने के लिये भी मन्ना दा का चयन किया। मन्ना दा की प्रतिभा को पहचानने वालों में संगीतकार शंकर-जयकिशन का नाम खास है। इस जोडी़ ने मन्ना डे से अलग-अलग शैली में गीत गवाए। उन्होंने मन्ना डे से 'आजा सनम मधुर चांदनी में हम...' जैसे रुमानी गीत और 'केतकी गुलाब जूही...' जैसे शास्त्रीय राग पर आधारित गीत भी गवाए। दिलचस्प बात है कि शुरुआत में मन्ना दा ने यह गीत गाने से मना कर दिया था।
महात्मा गांधी ने देखी थी ये फिल्म
मन्ना दा ने फिल्म "रामराज्य" में एक कोरस गाया था। यह फिल्म महात्मा गांधी ने देखी थी। दिलचस्प बात है कि यही एक एकमात्र फिल्म थी, जिसे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने देखा था।
निजी जीवन
18 दिसंबर, 1953 को मन्ना दा ने केरल की सुलोचना कुमारन से विवाह किया। इनकी दो बेटियां हुईं। सुरोमा का जन्म 19 अक्टूबर, 1956 और सुमिता का 20 जून 1958 को हुआ। दोनों बेटियां सुरोमा और सुमिता गायन के क्षेत्र में नहीं आईं।
प्रतिष्ठा एवं सम्मान
मन्ना दा को फिल्मों में उल्लेखनीय योगदान के लिए 1971 में पदमश्री पुरस्कार और 2005 में पदमभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा वह 1969 में फिल्म "मेरे हुजूर" के लिए सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक, 1971 मे बंगला फिल्म "निशि पदमा" के लिए सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक और 1970 में प्रदर्शित फिल्म "मेरा नाम जोकर" के लिए फिल्म फेयर के सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक पुरस्कार से सम्मानित किए गए। मन्ना दा को वर्ष 2009 में फिल्मों के सर्वोच्च सम्मान "दादा साहब फाल्के" पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
आत्मकथा "जिबोनेर जलासोघोरे"
वर्ष 2005 में 'आनंदा प्रकाशन' ने उनकी आत्मकथा "जिबोनेर जलासोघोरे" प्रकाशित की। उनकी आत्मकथा को अंग्रेज़ी में पैंगुइन बुक्स ने "Memories Alive" के नाम से छापा, तो हिंदी में इसी प्रकाशन की ओर से "यादें जी उठी" के नाम से प्रकाशित की। मराठी संस्करण "जिबोनेर जलासाघोरे" साहित्य प्रसार केंद्र, पुणे द्वारा प्रकाशित किया गया।
और वे विदा हो गए
24 अक्टूबर 2013 की सुबह 4 बजकर 30 मिनट पर लंबी बीमारी के बाद वे इस दुनिया से विदा हो गए। पीछे छोड़ गए, "दिल की गिरह खोल दो...,दिल का हाल सुने दिल वाला...,ऐ मेरे प्यारे वतन...,मुड़ मुड़ के ना देख..., कस्मे वादे प्यार वफा, सब बातें हैं..., नदिया चले, चले रे धारा जैसे सदाबहार गीत।
-सोनी सिंह
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