महर्षि पतंजलि ने योग सूत्र में नैतिक बल को प्राप्त करने के पांच नियम बताए हैं। इन पांच नियमों में एक नियम है संतोष। संतोष ही परम सुख है। परमेश्वर से जो कुछ मिला है, उसी में प्रसन्न रह कर भोग करना चाहिए।
परमेश्वर से जो कुछ मिला है उसी का प्रसन्न रहकर भोग करना चाहिए, ताकि किसी प्रकार का लोभ या तृष्णा न सताए। पतंजलि ने संतोष को चित्तवृत्तियों को निर्मल और अनुशासित करने के उपाय के रूप में सम्मिलित किया है। संतोष वैराग्य का नहीं, बल्कि अनुग्रह का भाव है, यानि जो लोग अपने जीवन से संतुष्ट रहते हैं हमेशा वो दूसरों के लिए एक प्रेरणा बन जाते हैं। संतुष्ट लोगों में ऐसे क्या गुण होते हैं, जानने की कोशिश करते हैं-
स्वयं के अच्छे मित्र
संतुष्ट व्यक्ति अपने पर ध्यान केंद्रित करता है और अपनी बातों को गंभीरता से सोचता है। ऐसे लोग स्वयं के सबसे अच्छे दोस्त होते हैं और इन्हें खुद के साथ समय व्यतित करना सबसे अच्छा लगता है।
'बीती ताही, विसार दे'
"जो बीत गई, वो बात गई" के सूत्र पर काम करते हुए ऐसे लोग अतीत की बातों को सोचकर दुखी नहीँ होते हैं। वर्तमान में जीने का प्रयास करते हैं।
चिंता नहीँ, चिंतन को महत्व
असंतुष्ट लोग बेवजह की चिंता से घिरे रहते हैं। कई बार हालात इतना बिगड़ जाते हैं कि लोग डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं। वो इस समस्या से बाहर निकलने के बजाय और इस परेशानी को बढ़ा लेते हैं। लेकिन जो लोग संतुष्ट रहते हैं, उन्हें अपनी चिंता से बाहर निकलना आता है। वे समस्या के समऔर उन्हें मैनेज करना बहुत अच्छी तरह आता है।
किसी भी काम को जोश से करते हैं
जो लोग खुद से और अपने जीवन से संतुष्ट होते हैं, वो अपने छोटे से छोटे काम को जोश से करते हैं और किसी भी काम को छोटा या बड़ा नहीं समझते हैं। अपने काम को जोश से करना भी आपके अंदर खुशी ला सकता है और आपको जीवन का सबसे अच्छा अनुभव प्रदान कर सकता है।
परफेक्शन की चाह नहीं रखते हैं:
यह एक सच है कि कोई इंसान परफेक्ट नहीं होता है और जो लोग अपने जीवन से संतुष्ट रहते हैं। उन्हें यह बात बहुत अच्छे से पता होती है और यही कारण है कि वो अपने जीवन से खुश रहते हैं।
bahut achha likha hai..
ReplyDeleteBahut bahut dhnyawad
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