'पत्थर-हीरा एक है '
एक व्यक्ति तथा उसकी पत्नी दोनों संसार से विरक्त हो तीर्थ यात्रा कर रहे थे। चलते हुए उस व्यक्ति को एक बहुमूल्य हीरा पड़ा हुआ दिखायी दिया। उसकी पत्नी कुच्छ पीछे थी। हीरे को देखते ही पति के मन में विचार आया, 'हीरा देखकर मेरी पत्नी के मन में लोभ पैदा न हो जाये।' और वह तुरंत उस पर धूल डालने लगा। पर पत्नी निकट आ चुकी थी, उसने पूछा," यह क्या कर रहे हो ?" पति झेंप गया। पत्नी ने पैर से धूल हटा कर उस हीरे को देखते हुए कहा," अब भी तुम्हारे भीतर हीरा और धूल में भेदबुद्धि बनी हुयी है! तब तुम घर छोड़ कर निकल क्यों आए !"
-बोधकथाएँ
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