वो कहते हैं कि हर इंसान समान है। और निश्चित ही यह हर इंसान के अहंकार को संतुष्ट करता है--किसी को आपत्ति नहीं होती। इंसान को कही गई सबसे खतरनाक झूठों में से एक है यह। मैं तुम्हें कहता हूं कि समानता झूठ है।
दो मनुष्य भी--किसी भी तरह से, किसी भी आयाम से, समान नहीं होते हैं। मेरा यह अर्थ नहीं है कि वे असमान हैं, मेरा अर्थ है कि वे अद्वितीय हैं, अतुलनीय हैं, इसलिए समान या असमान का कोई प्रश्न ही पैदा नहीं होता। क्या तुम इस कक्ष के खंभों के समान हो? ये खंभे हो सकता है कि सुंदर हों, लेकिन तुम उनके समान नहीं हो। लेकिन क्या इसका यह मतलब होता है कि तुम इन खंभों से छोटे हो? इसका इतना ही मतलब होता है कि तुम खंभे नहीं हो--खंभे खंभे हैं, और तुम तुम हो।
हर इंसान अपने आप में एक वर्ग है।
और जब तक कि हम प्रत्येक व्यक्ति के अनूठेपन को न पहचानें, यहां किसी तरह के मानव अधिकार नहीं हो सकते, और यहां किसी प्रकार की सभ्य--मानवीय, प्रेमपूर्ण, आनंदित दुनिया नहीं होगी।
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