प्रसन्नता
यदि तुम अप्रसन्न हो, तो तुम्हारे पास अप्रसन्न होने का कारण है; यदि तुम प्रसन्न हो तो तुम बस प्रसन्न हो--इसके लिए कोई कारण नहीं है। तुम्हारा मन कारण ढूंढ़ने का प्रयास करता है, क्योंकि यह अकारण में विश्वास नहीं कर पाता...
मन अकारण को नियंत्रित नहीं कर सकता--अकारण के साथ मन नपुसंक हो जाता है। इसी कारण मन यह या वह कारण ढूंढ़ता चला जाता है। लेकिन मैं तुम्हें कहना चाहता हूं कि जब कभी तुम प्रसन्न हो, तुम बिना किसी कारण के प्रसन्न हो, जब कभी तुम अप्रसन्न हो, अप्रसन्न होने का तुम्हारे पास कोई कारण होगा--क्योंकि प्रसन्नता ऐसी चीज है जिससे तुम बने हो। यह तुम्हारी चेतना है, यह तुम्हारी आत्यंतिक वास्तविकता है।
आनंद तुम्हारा आत्यंतिक मर्म है। वृक्षों को देखो, पक्षियों को देखो, बादलों को देखो, तारों को देखो...और यदि तुम्हारे पास आंखें हैं तो तुम यह देख पाने में सक्षम होओगे कि सारा अस्तित्व आनंद से भरा है। हर चीज बस प्रसन्न है। वृक्ष प्रसन्न हैं बिना किसी कारण के; वे प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बनने वाले नहीं हैं और वे अमीर नहीं होने वाले हैं और उनके पास कभी बैंक बेलेंस नहीं होगा। फूलों को देखो--बिना किसी कारण के। बस यह अविश्वसनीय है कि फूल कितने प्रसन्न हैं। सारा अस्तित्व आनंद से बना है।
-ओशो
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