बिस्तरों पर अब सलवटें नहीं पड़ती,
ना ही इधर-उधर छितराए हुए कपड़े हैं,
रिमोट के लिए भी अब झगड़ा नहीं होता,
ना ही खाने की नई- नई फरमायशें हैं,
मेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं ।
सुबह अखबार के लिए भी नहीं होती मारा मारी,
घर बहुत बड़ा और सुंदर दिखता है,
पर हर कमरा बेजान सा लगता है,
अब तो वक्त काटे भी नहीं कटता,
बचपन की यादें कुछ फोटो में सिमट गयी हैं,
मेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं ।
अब मेरे गले से कोई नहीं लटकता,
ना ही घोड़ा बनने की जिद होती है,
खाना खिलाने को अब चिड़िया नहीं उड़ती,
खाना खिलाने के बाद की तसल्ली भी अब नहीं मिलती,
ना ही रोज की बहसों और तर्कों का संसार है,
ना अब झगड़ों को निपटाने का मजा है,
ना ही बात- बेबात गालों पर मिलता दुलार है,
बजट की खींच-तान भी अब नहीं है,
मेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं।
पलक झपकते ही जीवन का स्वर्ण काल निकल गया
पता ही नहीं चला
इतना खूबसूरत अहसास कब पिघल गया,
तोतली सी आवाज में हर पल उत्साह था,
पल में हँसना , पल में रो देना
बेसाख्ता गालों पर उमड़ता प्यार था,
कंधे पर थपकी और गोद में सो जाना
सीने पर लिटाकर वो लोरी सुनाना,
बार- बार उठ कर रजाई को ओढ़ाना,
अब तो बिस्तर बहुत बड़ा हो गया है,
मेरे बच्चों का प्यारा बचपन कहीं खो गया है।
अब तो रोज सुबह शाम मेरी सेहत पूँछते हैं,
मुझे अब आराम की हिदायत देते हैं
पहले हम उनके झगड़े निपटाते थे,
आज वे हमें समझाते हैं,
लगता है अब शायद हम बच्चे हो गए हैं,
मेरे बच्चे अब बहुत बड़े हो गए।
-अनजान
ना ही इधर-उधर छितराए हुए कपड़े हैं,
रिमोट के लिए भी अब झगड़ा नहीं होता,
ना ही खाने की नई- नई फरमायशें हैं,
मेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं ।
सुबह अखबार के लिए भी नहीं होती मारा मारी,
घर बहुत बड़ा और सुंदर दिखता है,
पर हर कमरा बेजान सा लगता है,
अब तो वक्त काटे भी नहीं कटता,
बचपन की यादें कुछ फोटो में सिमट गयी हैं,
मेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं ।
अब मेरे गले से कोई नहीं लटकता,
ना ही घोड़ा बनने की जिद होती है,
खाना खिलाने को अब चिड़िया नहीं उड़ती,
खाना खिलाने के बाद की तसल्ली भी अब नहीं मिलती,
ना ही रोज की बहसों और तर्कों का संसार है,
ना अब झगड़ों को निपटाने का मजा है,
ना ही बात- बेबात गालों पर मिलता दुलार है,
बजट की खींच-तान भी अब नहीं है,
मेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं।
पलक झपकते ही जीवन का स्वर्ण काल निकल गया
पता ही नहीं चला
इतना खूबसूरत अहसास कब पिघल गया,
तोतली सी आवाज में हर पल उत्साह था,
पल में हँसना , पल में रो देना
बेसाख्ता गालों पर उमड़ता प्यार था,
कंधे पर थपकी और गोद में सो जाना
सीने पर लिटाकर वो लोरी सुनाना,
बार- बार उठ कर रजाई को ओढ़ाना,
अब तो बिस्तर बहुत बड़ा हो गया है,
मेरे बच्चों का प्यारा बचपन कहीं खो गया है।
अब तो रोज सुबह शाम मेरी सेहत पूँछते हैं,
मुझे अब आराम की हिदायत देते हैं
पहले हम उनके झगड़े निपटाते थे,
आज वे हमें समझाते हैं,
लगता है अब शायद हम बच्चे हो गए हैं,
मेरे बच्चे अब बहुत बड़े हो गए।
-अनजान
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