होश का मतलब/ओशो - Kashi Patrika

होश का मतलब/ओशो


सही होश का मतलब बस होश ही नहीं है--क्योंकि होश परिश्रम बन सकता है--सही होश का मतलब होता है बिना परिश्रम के विश्रांत। कोई होश पैदा करने का प्रयास कर सकता है पर इस तरह तनाव हो सकता है, और तब तनाव सारे कार्य को नष्ट कर देगा। इसलिए ये दो बातें याद रखनी हैं : होश बिना परिश्रम के, बिना तनाव के। 

होश विश्राम की खिलावट है। जब तुम कभी अपने शरीर में किसी तरह का तनाव महसूस करते हो, उस हिस्से को विश्रांत करो। यदि तुम्हारा सारा शरीर विश्रांत है, तुम्हारा होश तेज गति से विकसित होगा। बस देखो, बस परखो, प्रयास मत करो, जोर मत लगाओ; बिना प्रयास के होश। प्रारंभ में यह बड़ा विरोधाभासी लगेगा--अप्रयास और होश--पर एक बार तुम इस पर कार्य करने लगते हो, धीरे-धीरे दक्षता सीख जाते हो। यह दक्षता है। और एक बार तुम दक्षता सीख जाते हो, एक बार यदि तुम एक क्षण भी बिना तनाव के होश को जान लेते हो, तुम सही राह पर हो; तुम फिर वही व्यक्ति नहीं होओगे।

बस विश्रांत होओ और चीजों को वैसा ही होने दो जैसी वे हैं। बहुत निष्क्रिय होश--यह ध्यान का अर्थ है। यदि तुम कभी दृष्टा होना भूल जाते हो, पूरी तरह से ठीक है! जब तुम्हें याद आए, तुम फिर से देखो। जब तुम भूल जाते हो, तुम भूल जाते हो। यह विश्रांतता है, यह जीवन जैसा है उसे स्वीकारना है। तब इससे महान आनंद पैदा होते हैं। तुम कभी प्रयास नहीं करते और तुम्हें कभी अवरोध नहीं होता क्योंकि कुछ भी अवरोध पैदा नहीं कर सकता।

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