संगीत के आइंस्टीन, मोजार्ट और पिकासो...उस्ताद अल्ला रक्खा - Kashi Patrika

संगीत के आइंस्टीन, मोजार्ट और पिकासो...उस्ताद अल्ला रक्खा

जन्मदिन विशेष: 
बात आजादी से काफी पहले की है। बारह वर्ष का बच्चा तबले की ध्वनि से इस कदर आकर्षित हुआ कि घर छोड़ कर तबला सीखने भाग गया। इतना ही
नहीँ, तबला बजाने की अपनी धुन को पूरा करने के लिए छोटी-मोटी नौकरियां भी करता रहा और रियाज भी। आखिर उसके हुनर को परख और पहचान दोनों मिली और आगे चलकर वह सुविख्यात तबला वादक, भारत के सर्वश्रेष्ठ एकल और संगीत वादक उस्ताद अल्ला रक्खा खां के रूप में प्रतिष्ठित हुए। 

इनका पूरा नाम कुरैशी अल्ला रक्खा खां है और प्रसिद्ध तबला वादक जाकिर हुसैन के पिता ही नहीँ गुरु भी हैं। अल्ला रक्खा ने अपनी तालीम तबले के पंजाब घराने के मियां कादिर बख्श से शुरू की थी। बाद में अल्ला रक्खा ने पटियाला घराने के आशिक अली खान से राग विद्या भी सीखा। अल्ला रक्खा ने बतौर तबला वादक अपना करियर लाहौर में संगत वादक के तौर पर शुरू किया। उन्होंने 1940 में बॉम्बे के आल इंडिया रेडियो में अपना सबसे पहले एकल तबला वादन प्रोग्राम प्रस्तुत किया। उन्होंने कई हिंदी फिल्मों के संगीत में भी तबला वादन किया, किंतु यहां उनका मन नहीँ रमा। आगे चलकर सितार वादक पंडित रविशंकर के साथ उनकी जुगलबंदी जम गई।


खां साहब का जीवन
उस्ताद अल्ला रक्खा खां का जन्म 29 अप्रैल, 1919 को भारत के जम्मू शहर के फगवाल नामक जगह पर हुआ था। आरंभ से ही अल्ला रक्खा को तबले की ध्वनि आकर्षित करती थी। बारह वर्ष की अल्प आयु में एक बार अपने चाचा के घर गुरदासपुर गए और वहीं से तबला सीखने के लिए घर छोड़ कर भाग गए। उसके बाद पीछे मुड़कर नहीँ देखा।
अल्ला रक्खा ने उन्होंने दो शादियां की थी। उनकी पहली बावी बेगम थीं, जिनसे उनके तीन बेटे जाकिर हुसैन, फजल कुरैशी और तौफीक कुरैशी हैं और एक बेटी खुर्शीद औलिया कुरैशी थीं। बाद में अल्ला रक्खा ने पाकिस्तान की एक महिला से प्रेम विवाह किया।

पंडित रविशंकर संग जुगलबंदी
पंडित रविशंकर और अल्ला रक्खा साहब की जुगलबंदी ने खासी लोकप्रियता बटोरी। इस श्रंखला में 1967 का मोन्टेनरि पोप फेस्टिवल एवं वर्ष 1969 का वुडस्टाक फेस्टिवल बहुत लोकप्रिय हुए। अल्ला रक्खा साहब के वादन की विशेषता थी कि वे कलाकार के मूड और शैली के अनुसार उसकी संगत करते थे।

अमेरिका में वाहवाही!
अल्ला रक्खा और पंडित रविशंकर साठ के दशक में अमेरिका गए थे। वहां इन्होंने  मशहूर ब्रिटिश रॉक बैंड बीटल्स के साथ एक रॉक एंड रोल कॉन्सर्ट किया था। श्रोताओं में हजारों हिप्पी लोग थे। इसमें बैंड के नौ ड्रम थे और अल्ला रक्खा के दो तबले (दायां और बायां)। देखने वालों को ड्रम ज्यादा प्रभावी और ग्लैमरस लग रहे थे, लेकिन जब तबले की ताल अल्ला रक्खा ने दी, तो रॉक एंड रोल के दिग्गज लोगों ने कहा, ”खान तो संगीत के आइंस्टीन, मोजार्ट और पिकासो तीनों हैं।” यह बात उन दिनों की है, जब बीटल्स की लोकप्रियता चरम पर थी।

जाकिर हुसैन के शब्दों में...
अपने पिता और उस्ताद अल्ला रक्खा के बारे में जाकिर कहते हैं, “अब्बा जी ने एक
पिता और गुरु के रूप में हमेशा संतुलन बनाए रखा। तबले की तालीम उनकी प्राथमिकता थी, लेकिन इसके चलते हमारे बचपन की हत्या नहीं होने दी।” ये उस्ताद अल्ला रक्खा की तालीम का ही नतीजा था, जो जाकिर को 16 वर्ष की छोटी आयु में ही उस्ताद कहा जाने लगा। उस्ताद अल्ला रक्खा जी के छोटे बेटे तौफीक अपने अलग तरह के परक्शन म्यूजिक के कारण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जाने जाते हैं।

सम्मान और पुरस्कार
अल्ला रक्खा को उनके सराहनीय काम के लिए 1977 में ‘पद्मश्री’ पुरस्कार और 1982 में ‘संगीत नाटक अकादमी’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
इस महान तबला वादक का मुंबई में 3 फरवरी 2000 को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। उससे ठीक एक दिन पहले ही उनकी सुपुत्री का निधन हुआ था। लोगों का कहना है कि वे पुत्री के सदमे को सह नहीं पाए।
-सोनी सिंह (चित्र साभार)

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