महिलाओं से जुड़े अपराधों को सख्त कानूनी जामा पहनाने की मांग को लेकर जब पूरे देश का पारा चढ़ा हुआ है। इस बीच आयी एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट विचारनीय है कि खुद कानून बनाने वाले ही महिलाओं से जुड़े गंभीर आरोपों का सामना कर रहे हैं। देश के 51 विधायकों और तीन सांसदों पर महिलाओं के खिलाफ अपराध के केस दर्ज हैं। इनमें शील भंग करने के इरादे से किसी महिला पर हमला, अपहरण, बलात्कार, घरेलू हिंसा और मानव तस्करी के लिए मजबूर करने से संबंधित गंभीर अपराध शामिल हैं। अपराधिक फेहरिस्त वाले सांसदों और विधायकों की फेहरिस्त में भाजपा 14 नाम के साथ सबसे ऊपर है। शिवसेना से सात और ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस के छह जनप्रतिनिधियों पर इस तरह के केस दर्ज हैं। इनके अलावा कांग्रेस के पांच, तेलुगु देशम पार्टी के पांच, बीजू जनता दल के चार, निर्दलीय तीन, झारखंड मुक्ति मोर्चा के तीन, राष्ट्रीय जनता दल के दो, डीएमके के दो और माकपा के एक सांसद या विधायक पर महिलाओं के खिलाफ अपराध के केस दर्ज हैं।
पिछले पांच साल में भाजपा ने 48 वैसे प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं, जो महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों का सामना कर रहे हैं। बसपा और कांग्रेस ने क्रमशः 36 और 27 लोगों को टिकट दिए जिन पर इस तरह के आरोप हैं। इनके अलावा तृणमूल कांग्रेस ने 12, माकपा ने 12, भाकपा ने 10 और एनसीपी ने छह लोगों को टिकट दिए जो इस तरह के आरोपों का सामना कर रहे थे। इन उम्मीदवारों ने लोकसभा, राज्यसभा और राज्य विधान सभा चुनावों में हिस्सा लिया।
सवाल यह उठता है कि ऐसे छवि के साथ सरकार हो या जनता के पैरोकार महिलाओं को कितना सुरक्षित समाज दे पाएंगें! जोर-शोर से महिला सुरक्षा की बात करने मात्र से यह मुद्दा कैसे हल हो सकता है, जब नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले दामन ही दागदार हो। यह रिपोर्ट एक बार फिर यह बात सामने आ गई है कि नेताओं की कथनी और करनी में अंतर होता है।
पिछले पांच साल में भाजपा ने 48 वैसे प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं, जो महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों का सामना कर रहे हैं। बसपा और कांग्रेस ने क्रमशः 36 और 27 लोगों को टिकट दिए जिन पर इस तरह के आरोप हैं। इनके अलावा तृणमूल कांग्रेस ने 12, माकपा ने 12, भाकपा ने 10 और एनसीपी ने छह लोगों को टिकट दिए जो इस तरह के आरोपों का सामना कर रहे थे। इन उम्मीदवारों ने लोकसभा, राज्यसभा और राज्य विधान सभा चुनावों में हिस्सा लिया।
सवाल यह उठता है कि ऐसे छवि के साथ सरकार हो या जनता के पैरोकार महिलाओं को कितना सुरक्षित समाज दे पाएंगें! जोर-शोर से महिला सुरक्षा की बात करने मात्र से यह मुद्दा कैसे हल हो सकता है, जब नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले दामन ही दागदार हो। यह रिपोर्ट एक बार फिर यह बात सामने आ गई है कि नेताओं की कथनी और करनी में अंतर होता है।
- संपादकीय
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