बांग्लादेश के एक अखबार में छपी खबर ने बनारसी साड़ी के स्थानीय बुनकरों, कारोबारियों और निर्यातकों की नींद उड़ा दी है। खबर यह है कि बांग्लादेश की राजधानी ढाका में रंगपुर, गंगाछारा, हाथीपारा, सौधुपारा की महिलाएं बनारसी साड़ी बना रहीं हैं। कारोबारियों के अनुसार ढाका की साड़ियां गुणवत्ता में मूल बनारसी साड़ी के बराबर भले ही न हों मगर उनसे अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में ‘बनारसी साड़ी’ का ब्रांड जरूर प्रभावित होगा।
बांग्लादेश गये बनारस के कुछ बुनकरों और हथकरघा क्षेत्र के विशेषज्ञों ने आठ फरवरी के फाइनेंशियल एक्सप्रेस अखबार में छपी खबर देखी तो मामले ने तूल पकड़ा। इस पेशे से जुड़े हजारों परिवारों को लग रहा है कि यदि बनारसी साड़ी के नाम पर किसी दूसरे मुल्क में निर्माण होने लगा तो पूरा धंधा चौपट हो जाएगा। कारोबारियों के अनुसार बांग्लादेश में बन रही साड़ी दोयम दर्जे की है लेकिन उस पर बनारसी साड़ी का नाम दिए जाने के बाद ब्रांड खराब हो रहा है। दुनिया भर में प्रसिद्ध बनारसी साड़ी की पहचान पर सवाल खड़े हो रहे हैं। पिछले दस साल में बनारसी साड़ी के कोराबार में गिरावट को लेकर कारोबारी और बुनकर परेशान हैं। अब उन्हें लग रहा है कि कारोबारी गिरावट की एक वजह ढाका भी है। चीनी रेशम की कीमतों में उतार-चढ़ाव से भी बनारसी साड़ी के कारोबार पर प्रभाव पड़ रहा है।
दरअसल बनारसी साड़ी को बौद्धिक संपदा अधिकार के तहत संरक्षण मिला हुआ है। इसे जीआई उत्पाद का दर्जा प्राप्त है। जीआई उत्पाद होने के कारण बनारस क्षेत्र के अलावा बनारसी साड़ियों का निर्माण और कहीं नहीं हो सकता है। ऐसा करने पर जीआई कानून का उल्लंघन होगा।
अब बनारस के बुनकर व हथकरघा क्षेत्र से जुड़े संगठनों ने पीएमओ को जानकारी देने का निर्णय लिया है। साथ ही चेन्नई स्थित जीआई रजिस्ट्रार कार्यालय में कानून के उल्लंघन की लिखित शिकायत की भी तैयारी हो रही है।
बांग्लादेश के विभिन्न हिस्सों में साड़ियों को बनारसी साड़ी के नाम से बेचा जा रहा है। यह जीआई उत्पाद से संबधित कानून का खुला उल्लंघन है।
डॉ. रजनीकांत, जीआई विशेषज्ञ
डॉ. रजनीकांत, जीआई विशेषज्ञ
दूसरे किसी देश में वहां उत्पादित माल को बनारसी साड़ी का नाम देकर बेचा जाना गलत है। इस संबंध में भारत सरकार व जिम्मेदार एजेंसियों को उचित कार्रवाई करनी चाहिये।
राजन बहल, महामंत्री, बनारसी वस्त्र उद्योग एसोसिएशन
राजन बहल, महामंत्री, बनारसी वस्त्र उद्योग एसोसिएशन
बनारस के बुनकरों को कई प्रतिस्पद्र्धाओं से जूझना पड़ता है। कभी सूरत से टक्कर मिलती है तो कभी चीन से प्योर सिल्क के मामले में बनारस मात खाता रहा है। अब बांग्लादेश में बनारसी साड़ी की नकल बनारस के बुनकरों के लिये कोढ़ में खाज है।
अतीक अंसारी, महामंत्री बनारस पावरलूम वीवर्स एसोसिएशन
अतीक अंसारी, महामंत्री बनारस पावरलूम वीवर्स एसोसिएशन
बांग्लादेश में बनारसी साड़ी के नाम पर कारोबार अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन है। बांग्लादेश बनारसी साड़ी का बड़ा खरीदार भी है लेकिन बनारसी साड़ी की नकल से पिछले वर्षों में कारोबार पर प्रतिकूल असर पड़ा है।
मुकुंद अग्रवाल, पूर्व अध्यक्ष पूर्वांचल निर्यातक संघ
मुकुंद अग्रवाल, पूर्व अध्यक्ष पूर्वांचल निर्यातक संघ
क्या है जीआई उत्पाद
किसी भी भौगोलिक क्षेत्र में जो उत्पाद वहां की विशेषताओं और प्राचीनता को समेटे हुए हैं और लोगों की आजिविका के स्रोत के रूप में स्थापित हैं, वे जीआई पंजीकरण के रूप में उस भौगोलिक क्षेत्र की बौद्धिक संपदा का दर्जा प्राप्त करते हैं। चेन्नई स्थित जीआई रजिस्ट्रार कार्यालय से लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद जीआई का दर्जा दिया जाता है। जीआई उत्पाद किसी संस्था या व्यक्ति नहीं, बल्कि संबंधित समुदाय की संपत्ति होती है।
किसी भी भौगोलिक क्षेत्र में जो उत्पाद वहां की विशेषताओं और प्राचीनता को समेटे हुए हैं और लोगों की आजिविका के स्रोत के रूप में स्थापित हैं, वे जीआई पंजीकरण के रूप में उस भौगोलिक क्षेत्र की बौद्धिक संपदा का दर्जा प्राप्त करते हैं। चेन्नई स्थित जीआई रजिस्ट्रार कार्यालय से लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद जीआई का दर्जा दिया जाता है। जीआई उत्पाद किसी संस्था या व्यक्ति नहीं, बल्कि संबंधित समुदाय की संपत्ति होती है।
खास बातें-
04 सितंबर 2009 को बनारसी साड़ी को जीआई उत्पाद का दर्जा मिला था
5000 करोड़ रुपये से ज्यादा का कारोबार है बनारसी साड़ी का हर साल
400 करोड़ से ज्यादा की बनारसी साड़ी का निर्यात बांग्लादेश को होता है पूर्वांचल से
27 हजार हैंडलूम बुनकर परिवार पंजीकृत हैं हथकरघा विभाग में
90 हजार से अधिक पावरलूम बुनकर परिवार पंजीकृत हैं हथकरघा विभाग में
04 सदस्य औसत रूप से एक बुनकर परिवार में करते हैं बिनकारी
02 लाख से ज्यादा लोग अप्रत्यक्ष रूप से साड़ी कारोबार में पा रहे हैं रोजगार
04 सितंबर 2009 को बनारसी साड़ी को जीआई उत्पाद का दर्जा मिला था
5000 करोड़ रुपये से ज्यादा का कारोबार है बनारसी साड़ी का हर साल
400 करोड़ से ज्यादा की बनारसी साड़ी का निर्यात बांग्लादेश को होता है पूर्वांचल से
27 हजार हैंडलूम बुनकर परिवार पंजीकृत हैं हथकरघा विभाग में
90 हजार से अधिक पावरलूम बुनकर परिवार पंजीकृत हैं हथकरघा विभाग में
04 सदस्य औसत रूप से एक बुनकर परिवार में करते हैं बिनकारी
02 लाख से ज्यादा लोग अप्रत्यक्ष रूप से साड़ी कारोबार में पा रहे हैं रोजगार
40 हजार के करीब हैंडलूम (करघे)
2 हजार साड़ी की दुकानें व गद्दी
2 हजार साड़ी की दुकानें व गद्दी
कारोबार से जुड़ी पांच कड़ी-
बुनकर-गृहस्था-गद्दीदार-कोठीदार-निर्यातक
बुनकर-गृहस्था-गद्दीदार-कोठीदार-निर्यातक
5 सौ साल पुराना है कलात्मक बनारसी साड़ी का इतिहास
बनारसी साड़ी की खासियत:
- तनछुई, जामावार, जामदानी, कटवर्क, जंगला, बूटीदार,
- प्योर आर्ट पर आधारित है ‘ट्रेडिशनल’ बनारसी साड़ी
रेशम से बनती हैं फैशनबल बनारसी साड़ियां
- साड़ियों में होता है लेस रफल्स, नेट्स, पाकेट्स का इस्तेमाल
- बुनाई वाली साड़ियों की कीमत 12 हजार से 10 लाख रुपए तक
- तनछुई, जामावार, जामदानी, कटवर्क, जंगला, बूटीदार,
- प्योर आर्ट पर आधारित है ‘ट्रेडिशनल’ बनारसी साड़ी
रेशम से बनती हैं फैशनबल बनारसी साड़ियां
- साड़ियों में होता है लेस रफल्स, नेट्स, पाकेट्स का इस्तेमाल
- बुनाई वाली साड़ियों की कीमत 12 हजार से 10 लाख रुपए तक
शैली- कठुआ, फेकुआ, जकार्ड
(साभार: हिंदुस्तान)
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