बेबाक हस्तक्षेप - Kashi Patrika

बेबाक हस्तक्षेप

रविवार को देशभर में जोर-शोर से 'राष्ट्रीय बाल श्रम उन्मूलन दिवस' पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया और एकजुट होकर बाल श्रम रोकने के संकल्प भी लिए गए। किंतु जमीनी हकीकत यह है कि नन्हे मासूम हाथ, जिनमें किताबें होनी चाहिए, आज भी उन हाथों को कचरे का बोरा उठाने, चाय की टपरी में कप-प्लेट धोने या ऐसे ही अनगिनत कामों में लगे दिख जाते हैं, जो उनके भविष्य ही नहीँ सेहत के साथ भी खिलवाड़ है।
वैसे, बाल श्रम की समस्या विश्व भर में व्याप्त है। आंकड़ों पर नजर डालें तो वर्तमान में विश्व में 215 मिलियन बच्चे बाल मजदूरी कर रहे हैं। 1991 की जनगणना में बाल मजदूरों के सर्वेक्षण के अनुसार 11.3 मिलियन बच्चे बाल मजदूरी का रहे थे। इसके बाद 2001 की जनगणना में इनकी संख्या 12.7 मिलियन हो गई थी। भारत के संदर्भ में वर्ष 2011 जनगणना के अनुसार पांच से 14 वर्ष के करीब 40 लाख बच्चे मजदूर हैं। 15-19 साल के किशोरों को इसमें शामिल कर लिया जाए, तो संख्या बढ़ कर दो करोड़ 20 लाख से अधिक हो जाएगी। हमारे देश में बाल श्रम का मुद्दा बहुत ही पेचीदा है, क्योंकि भारत में बच्चे पुराने समय से ही अपने माता-पिता के साथ खेतों में और अन्य प्रारम्भिक कार्यों में मदद कराते हैं। एक इससे ही संबंधित अन्य अवधारणा, जिसकी इस समय व्याख्या करने की जरुरत है, वो है बंधुआ मजदूरी, जो शोषण का सबसे सामान्य रूप है। बंधुआ मजदूरी का अर्थ, माता-पिता द्वारा अत्यधिक ब्याज की दरों की अदाएगी के कारण, कर्ज के भुगतान के लिए बच्चों को मजदूरों के रूप में कार्य करने के लिए मजबूर करना है।
हालांकि, भारत के संविधान में मूल अधिकारों के अनुच्छेद '24' के अंतर्गत  बाल श्रम प्रतिबंधित है। फिर भी, अन्य मामलों की तरह यहां भी कानून को ताक पर रख बाल श्रम फल-फूल रहा है। क्योंकि, समस्या के मूल में अत्यधिक जनसंख्या, अशिक्षा, गरीबी, ऋण जाल आदि सामान्य कारण हैं। ऐसे में, माता-पिता, सामान्य बचपन के महत्व को अपनी परेशानियों के दबाव के कारण समझने में असफल होते हैं।
कुल मिलाकर, 'राष्ट्रीय बाल श्रम उन्मूलन दिवस'  के रूप में एक दिन बाल श्रम से मुक्ति का संकल्प लेकर समस्या का समाधान नहीँ किया जा सकता है। समस्या को जड़ से खत्म करने के लिए उसके मूल कारणों को खत्म करना आवश्यक है। साथ ही प्रत्येक व्यक्ति को देश का नागरिक होने के नाते संकल्प लेना होगा कि वह किसी भी रूप में बाल श्रम को प्रोत्साहन नहीँ देगा। हर बात के लिए शासन-प्रशासन को दोष देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री नहीँ की जा सकती।
-संपादकीय

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