कर्नाटक चुनाव परिणाम के साथ ही शुरू हुआ सियासी नाटक और रोमांचक होता जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने येदियुरप्पा (भाजपा) को शनिवार शाम 4 बजे तक का समय बहुमत साबित करने के लिए दिया है। इस फैसले को लेकर कांग्रेस-जेडीएस जहां उत्साह दिखा रही है, वहीँ भाजपा भी दावा कर रही है कि वह बहुमत साबित कर देगी। दोनों ओर के दावे कितने सही हैं यह तस्वीर साफ होने में तकरीबन 26 घंटे का समय है। तब तक सियासी गलियारे में जोड़-तोड़-विधायक बचाव का माहौल गर्म रहेगा। हालांकि, इसी के साथ कर्नाटक के सियासी उलझन का पटापेक्ष होने की उम्मीद है।
भाजपा की कसरत
सुप्रीम कोर्ट के फैसले को एक तरफ भाजपा के लिए मुश्किल के तौर पर देखा जा रहा है, वहीँ भाजपा हाईकमान बहुमत का जादुई आंकड़ा छूने का पूरा विश्वास जता रही है। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस, जेडीएस के कई विधायक भाजपा के संपर्क में हैं। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि फ्लोर टेस्ट के लिए भाजपा मोर्चाबंदी कर ही रही है, दूसरी तरफ कांग्रेस के लिंगायत विधायकों को अपने तरफ करने की भी कोशिश में जुटी है। राजनीतिक संकेतों पर नजर डालें तो स्पष्ट है कि गुरुवार को येदियुरप्पा लिंगायत मठ पहुंचे और वहां उन्होंने संत शिवकुमार स्वामी का आशीर्वाद लिया। हालांकि, अभी पार्टी के पास बहुमत से सात विधायक कम हैं। भाजपा की अल्पमत वाली सरकार को अगर सत्ता में बना रहना है, तो उसे विधानसभा में मौजूद सदस्यों का बहुमत हासिल करना होगा।
कानूनी सलाहकारों से संपर्क में भाजपा
मीडिया खबरों के अनुसार भाजपा के कानूनी सलाहकार ऐंटी-डिफेक्शन लॉ (दल-बदल कानून) की स्टडी कर रहे हैं। वे इस बात का तोड़ निकालने की कोशिश कर रहे हैं कि किस तरह से विपक्षी पार्टी के विधायक बिना अयोग्य घोषित हुए सरकार बनाने में मदद कर सकते हैं। भाजपा कानूनन विपक्षी पार्टी के धड़े को पार्टी में शामिल करने की योजना नहीं बना रही है। यह काफी बड़ी चुनौती है। इसके लिए जेडीएस (37) और कांग्रेस (78) के एक-एक तिहाई सदस्यों को अपने पक्ष में लाना होगा। मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने शपथ लेने के बाद अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस और जेडी (एस) के सदस्यों से अपने विवेक के अनुसार वोट करने की अपील की। भाजपा ने अपनी रणनीति का खुलासा नहीं किया है, लेकिन संभावना जताई जा रही है कि विश्वास मत वाले दिन विपक्षी पार्टी के विधायकों को एक भरोसेमंद हिस्सा वोटिंग से दूर रह सकता है।
लिंगायत नेताओं को लुभाएगी भाजपा
भाजपा का लिंगायत मठों से अच्छे ताल्लुकात के लिए जाना जाता है। कर्नाटक के इस प्रमुख समुदाय को पांच साल बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल हुई है। सूत्रों की माने तो लिंगायत के धार्मिक नेता भी विश्वास मत के दौरान अपने समुदाय के विधायक को भाजपा के पक्ष में वोट कराने के लिए चाल चल सकते हैं।
दल-बदल कानून पर विचार
पार्टी के कानूनविदों की सोच के मुताबिक, विधानसभा में शपथ लेने से पहले किसी भी सदस्य पर उसके दल का निर्देश लागू नहीं होता है। यह चीज उन्हें ऐंटी-डिफेक्शन लॉ (दल-बदल कानून) से बचाती है और उनकी सदस्यता बरकरार रखती है। भाजपा इस रणनीति पर भी विचार कर रही है।
फिलहाल, भाजपा कितना सफल होती है, यह तो 27 घण्टों के बाद ही पता चलेगा। लेकिन सवाल यह भी उठ रहा है कि जोड़तोड़ से बहुमत साबित भी हो गया, तो कर्नाटक में सरकार की स्थिरता कहा तक बरकरार रहेगी।
भाजपा की कसरत
सुप्रीम कोर्ट के फैसले को एक तरफ भाजपा के लिए मुश्किल के तौर पर देखा जा रहा है, वहीँ भाजपा हाईकमान बहुमत का जादुई आंकड़ा छूने का पूरा विश्वास जता रही है। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस, जेडीएस के कई विधायक भाजपा के संपर्क में हैं। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि फ्लोर टेस्ट के लिए भाजपा मोर्चाबंदी कर ही रही है, दूसरी तरफ कांग्रेस के लिंगायत विधायकों को अपने तरफ करने की भी कोशिश में जुटी है। राजनीतिक संकेतों पर नजर डालें तो स्पष्ट है कि गुरुवार को येदियुरप्पा लिंगायत मठ पहुंचे और वहां उन्होंने संत शिवकुमार स्वामी का आशीर्वाद लिया। हालांकि, अभी पार्टी के पास बहुमत से सात विधायक कम हैं। भाजपा की अल्पमत वाली सरकार को अगर सत्ता में बना रहना है, तो उसे विधानसभा में मौजूद सदस्यों का बहुमत हासिल करना होगा।
कानूनी सलाहकारों से संपर्क में भाजपा
मीडिया खबरों के अनुसार भाजपा के कानूनी सलाहकार ऐंटी-डिफेक्शन लॉ (दल-बदल कानून) की स्टडी कर रहे हैं। वे इस बात का तोड़ निकालने की कोशिश कर रहे हैं कि किस तरह से विपक्षी पार्टी के विधायक बिना अयोग्य घोषित हुए सरकार बनाने में मदद कर सकते हैं। भाजपा कानूनन विपक्षी पार्टी के धड़े को पार्टी में शामिल करने की योजना नहीं बना रही है। यह काफी बड़ी चुनौती है। इसके लिए जेडीएस (37) और कांग्रेस (78) के एक-एक तिहाई सदस्यों को अपने पक्ष में लाना होगा। मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने शपथ लेने के बाद अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस और जेडी (एस) के सदस्यों से अपने विवेक के अनुसार वोट करने की अपील की। भाजपा ने अपनी रणनीति का खुलासा नहीं किया है, लेकिन संभावना जताई जा रही है कि विश्वास मत वाले दिन विपक्षी पार्टी के विधायकों को एक भरोसेमंद हिस्सा वोटिंग से दूर रह सकता है।
लिंगायत नेताओं को लुभाएगी भाजपा
भाजपा का लिंगायत मठों से अच्छे ताल्लुकात के लिए जाना जाता है। कर्नाटक के इस प्रमुख समुदाय को पांच साल बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल हुई है। सूत्रों की माने तो लिंगायत के धार्मिक नेता भी विश्वास मत के दौरान अपने समुदाय के विधायक को भाजपा के पक्ष में वोट कराने के लिए चाल चल सकते हैं।
दल-बदल कानून पर विचार
पार्टी के कानूनविदों की सोच के मुताबिक, विधानसभा में शपथ लेने से पहले किसी भी सदस्य पर उसके दल का निर्देश लागू नहीं होता है। यह चीज उन्हें ऐंटी-डिफेक्शन लॉ (दल-बदल कानून) से बचाती है और उनकी सदस्यता बरकरार रखती है। भाजपा इस रणनीति पर भी विचार कर रही है।
फिलहाल, भाजपा कितना सफल होती है, यह तो 27 घण्टों के बाद ही पता चलेगा। लेकिन सवाल यह भी उठ रहा है कि जोड़तोड़ से बहुमत साबित भी हो गया, तो कर्नाटक में सरकार की स्थिरता कहा तक बरकरार रहेगी।
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