"वर-विभूषण" पुरस्कार की भूमिका - Kashi Patrika

"वर-विभूषण" पुरस्कार की भूमिका

समाज के किसी क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य न करने के कारण भले ही आप विशेष पुरस्कार पाने वालों की फेहरिस्त में शामिल न हो सके हों, लेकिन यदि आप हमारे यूपी-बिहार के युवा  हैं, तो एक पुरस्कार तय है, जिसे पाकर आपको विभूषण का सुखद अहसास मिल सकता  है, वह है 'वर विभूषण'। लेकिन कैसे, इस संदर्भ में समुचित जानकारी समेटने की कोशिश करती इस श्रृंखला की पहली कड़ी...


एक समय था, जब पुरस्कार एक ऐसे सम्मान के रूप में रखा जाता था कि पाने वाला व्यक्ति वास्तव में समाज के किसी विशेष क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ होता था। पुरस्कार व्यक्ति को और अधिक उत्कृष्ट कार्य करने के  लिए प्रेरित करता है, लेकिन अब समय बदल चुका है। अब पुरस्कार किसी भी व्यक्ति को मिल सकता है। भले ही पुरस्कार के भीतर छिपे आत्मा की मूल भावना चीख-चीखकर चिल्लाती हो कि ये व्यक्ति मुझे प्राप्त करने की कोई योग्यता नहीं रखता।

देश के कोने-कोने में पुरस्कार सत्यनारायण भगवान के प्रसाद की तरह बांटे जा रहे हैं। प्रसाद ज्यादा से ज्यादा इसलिए बांटे जाते है, ताकि जितने अधिक लोग प्रसाद ग्रहण करेंगे उतना ही अधिक पुण्य मिलेगा। आज पुरस्कार बांटने के पीछे भी यही अवधारणा है। हमारे देश में हर छोटे और बड़े शहरों में स्थानीय स्तर पर पुरस्कारों से सम्मानित करने की होड़ लगी रहती है। अब आप सोच रहे होंगे कि "क्या इस देश में उत्कृष्ट कार्य करने वालों की भरमार है?" जो पुरस्कार पाने के लिए होड़ लगी रहती है। हाँ, इस देश में प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है। फर्क सिर्फ इतना है कि अब पुरस्कार वो लोग पा रहे हैं, जिन्हें जुगाड़ क्षेत्र में महारत हासिल है।स्थानीय स्तर पर जो पुरस्कार वितरण समारोह किये जाते हैं, उसका खर्च भी सम्मानित व्यक्ति को ही उठाना पड़ता है।

पुरस्कार पाने की इच्छा से मेरा मन भी कुलबुलाया, लेकिन मुझे चमचागिरी वाला पुरस्कार नहीं चाहिए था और  देश के लिए कोई उत्कृष्ट कार्य मैंने किया नहीं है, जो मुझे 'भारत रत्न','पद्मविभूषण', 'पद्म भूषण' या 'पद्म श्री' मिल सके। यकीन मानिए, फिर भी पुरस्कार पाने का एक मौका मेरे पास है!

क्या आप जानते है, वह पुरस्कार कौन-सा है? नहीं ना, कोई बात नहीं। इस पुरस्कार के बारे में ज्यादा सोचने की जरूरत भी नहीं है, क्योंकि पुरस्कार का नामकरण पिछले दिनों हमारे दोस्तों के बीच हो रहे वार्तालाप में हुआ है और वह पुरस्कार है "वर-विभूषण" ।

वैसे इस पुरस्कार को पाने की डगर बहुत मुश्किल है, लेकिन नामुमकिन नहीं। इस पुरस्कार को पाने के लिए कड़ी मेहनत की जरूरत नहीं है। बस, आपकी थोड़ी सी सूझ-बूझ आपको यह पुरस्कार आसानी से दिला सकती है। देश के सर्वोच्च पुरस्कारों की तरह इसे राष्ट्रपति नहीं देते। यह पुरस्कार किसी धातु से नहीं बना होता है, लेकिन फिर भी बहुत सम्मोहक होता है। जिसकी भी नजर इस पदक पर पड़ती है, उसकी आंखें चौंधिया जाती हैं। यह पुरस्कार आपको प्राचीन काल के राजाओं-महाराजाओं से भी बड़ा बना देता है। इस पुरस्कार की महिमा अपरम्पार है। अन्य पुरस्कारों की तरह इसके लिए भी एक विशेष समारोह का आयोजन तो किया ही जाता है, किंतु यहां कोई तालियों की गड़गड़ाहट नहीं होती है।

"वर विभूषण" दुनिया के किसी भी पुरस्कार से सर्वश्रेष्ठ है और शायद इसलिए इससे अलंकृत करने का समारोह भी सबसे अलग ही होता है। इसे बनाने के लिए सोने-चांदी या हीरे-जवाहरात का उपयोग नहीं होता, बल्कि इसे पूरी श्रद्धा, स्नेह और सद्-भाव से बनाया जाता है, जिससे यह अनमोल हो जाता है। मैं इसे बनाने की प्रक्रिया में न उलझते हुए सीधे पुरस्कार पाने की विधि बताता हूँ, क्योंकि मैं भी इस पुरस्कार को पाने का इच्छुक हूं।

इस 'विभूषण' को पाने के लिए दोस्तों और सगे-संबंधियों की नजर में खुद को एक समझदार और नेक  इंसान दिखाना होता है, भले ही कॉलेज के दौरान 'चरित्र' के साथ 'हीन' शब्द जुड़ गया हो या मोहल्ले के किसी बिट्टी को हाल ही में छेड़ा हो। इस बात का विशेष ध्यान रखना पड़ता है कि जब कोई 'देखुआर'  आये, तो खुद को इतना सज्जन दिखाओ कि इस जन्म में क्या! अगले सात जन्मों में भी उस देखुआर को आप जैसा कोई वर न मिल पाएगा।
क्रमशः
(सौजन्य-नवीन पांडेय)

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