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अभिषेक |
जब मैं स्नातक प्रथम वर्ष में था तभी, गंगोत्री धाम के बारे में पढ़ा और फिर वहां की तस्वीरें देखकर तो जैसे मंत्रमुग्ध हो गया. फिर क्या था, मन पंख लगाकर गंगोत्री पहुंचने को व्याकुल हो उठा. हालांकि, अपने इस सपने को साकार करने के लिए मुझे 12 वर्षों का लम्बा इंतज़ार करना पड़ा. मगर इस यात्रा का खास रोमांस यह था कि मुझे दुपहिया से 150 किमी की यात्रा का मौका मिला।
पर्वतीय क्षेत्र में बाइक चलाने का अनुभव एकदम रोमांचकारी था । प्रकृति को नजदीक से देखने का मौका मिला।यदि आप कुशल चालक है, तो आप इस रोमांच का लुत्फ उठा सकते है और उबाऊ बस की थकान से बच सकते हैं. लेकिन बाइक चलाते समय सावधानी का विशेष ख्याल रखना पड़ता है, वर्ना, ' हटी दुर्घटना घटी.'
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मार्ग में आने वाली सारी बाधाओं के बावजूद जैसे बारिश, भूस्खलन आदि को पार करते हुए हम गंगोत्री पहुंचे थे , जिसका सारा श्रेय हमारे मैंवरीक् ग्रुप को जाता है. जैसा कि हमारी योजना वहाँ जाने की शाम 4 बजे बनी और हम 5 बजे शाम चार मित्रों का ग्रुप यात्रा के लिए रवाना हो गया . रात 8 बजे उत्तरकाशी पहुंचे।ऐसा लग रहा था फिल्म "शराबी" का गीत "जहां चार यार मिल जाए ..." हमही पर फिल्माया गया है। सफर सुहाना और फ़िल्मी था, लेकिन आगे और सफर बाकी था. सुबह 10 बजे निकल पड़े, आगे के सफर पर.
- अभिषेक
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