बदलते वैश्विक परिवेश में जिस तेजी से व्यवस्था परिवर्तन का दौर चल रहा है, क्या भारत उसके लिए तैयार हैं। आज विश्व के अधिकांश देश अपनी अर्थव्यवस्था को नया आयाम देने में जुटे है। अमेरिका ने अपने दरवाजें विश्व के लिए जहाँ एक ओर बंद कर लेने की कवायत शुरू करते हुए अमेरिका फर्स्ट की नीति पर काम किया हैं, वहीं चीन अपनी आर्थिक शक्ति का प्रदर्शन विश्व में बड़े पैमाने पर कर रहा है।
रूस ने अपनी सैन्य शक्ति और राजनयिक कुशलता का प्रदर्शन कर विश्व को जहाँ चकित कर दिया है, वही अन्य देश दो धड़ो में बटे विश्व से ऊपर उठ कर अपने अपने देश को नई गति देने में लगें हैं।
इन सबके बीच भारत कहाँ खड़ा है? ये हम सब के लिए एक सोचनीय प्रश्न हैं। मोदी सरकार के बनने के बाद से ही विकास सब से बड़े मुद्दे के रूप में उभरा हैं। कुछ घटनाओं को छोड़ दिया जाए, तो दलगत और जातिगत जटिलताओं से देश पहली बार उबरता हुआ दिख रहा हैं। विकास की दिशा में सरकार द्वारा उठाए कदम सराहनीय हैं, जहाँ सरकार ने बिजली और सड़क के क्षेत्र में आमूलचूल सफलता पाई हैं। बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में देश ने नई ऊंचाई को छुआ हैं।
इन सभी उपलब्धियों के साथ देश में अनेक समस्यां भी पनपी हैं, जहाँ देश में लोगों की आशाओं में बढ़ोत्तरी हुई हैं, वही उन आशाओं की पूर्ति के लिए पर्याप्त क्षत्रों में बढोत्तरी न होना चिंता का विषय हैं। आज पूरे देश में शिक्षा को जो स्तर हैं, वो सोचनीय हैं।
देश की शिक्षा व्यवस्था बड़े पैमाने पर कुशल कामगारों को पैदा करने में असफल रही हैं। जहाँ एक ओर नए क्षेत्रों का सृजन नहीं हो पा रहा है, वहीं जो क्षेत्र हैं उनके अनुरूप कामगारों की संख्या में भी बढ़ोत्तरी न के ही बराबर हैं।
देश की शिक्षा व्यवस्था आज भी आजादी के पहले की व्यवस्था हैं, जिसमे बड़े पैमाने पर लोगों को लम्बे वक्त तक घेर कर रखना ही मूल रहा हैं। आज भी पारम्परिक शिक्षा व्यवस्था में लोगों की रूचि ज्यादा हैं, वरण आज के परिवेश में रोजगारपरक शिक्षा का महत्व बढ़ता जा रहा हैं। जहाँ विश्व के सभी देशों ने अपनी शिक्षा व्यवस्था को बहुत पहले ही मजबूत कर लिया। भारत अब भी अपनी गलतियों से सीख लेने को तैयार नहीं हैं।
आज अगर हमें विश्व महाशक्ति के रूप में उभरने की दिशा में कार्य करना हैं तो सही रास्ता चुनना होगा। सबसे पहले हमें अपनी शिक्षा व्यवस्था में अमूलचूल परिवर्तन करना होगा। कम उम्र के प्रोफेशनल पैदा करने होंगे और देश के भीतर ही अनेक नए क्षेत्रों का विस्तार करना होगा। इन कवायदों के साथ अगर हम कुछ साल भी सही दिशा में आगे बढ़ते हैं, तो देश प्रगति राह पर आगे बढ़ जाएगा और हमें विश्व महाशक्ति बनते देर नहीं लगेगी।
- संपादकीय
रूस ने अपनी सैन्य शक्ति और राजनयिक कुशलता का प्रदर्शन कर विश्व को जहाँ चकित कर दिया है, वही अन्य देश दो धड़ो में बटे विश्व से ऊपर उठ कर अपने अपने देश को नई गति देने में लगें हैं।
इन सबके बीच भारत कहाँ खड़ा है? ये हम सब के लिए एक सोचनीय प्रश्न हैं। मोदी सरकार के बनने के बाद से ही विकास सब से बड़े मुद्दे के रूप में उभरा हैं। कुछ घटनाओं को छोड़ दिया जाए, तो दलगत और जातिगत जटिलताओं से देश पहली बार उबरता हुआ दिख रहा हैं। विकास की दिशा में सरकार द्वारा उठाए कदम सराहनीय हैं, जहाँ सरकार ने बिजली और सड़क के क्षेत्र में आमूलचूल सफलता पाई हैं। बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में देश ने नई ऊंचाई को छुआ हैं।
इन सभी उपलब्धियों के साथ देश में अनेक समस्यां भी पनपी हैं, जहाँ देश में लोगों की आशाओं में बढ़ोत्तरी हुई हैं, वही उन आशाओं की पूर्ति के लिए पर्याप्त क्षत्रों में बढोत्तरी न होना चिंता का विषय हैं। आज पूरे देश में शिक्षा को जो स्तर हैं, वो सोचनीय हैं।
देश की शिक्षा व्यवस्था बड़े पैमाने पर कुशल कामगारों को पैदा करने में असफल रही हैं। जहाँ एक ओर नए क्षेत्रों का सृजन नहीं हो पा रहा है, वहीं जो क्षेत्र हैं उनके अनुरूप कामगारों की संख्या में भी बढ़ोत्तरी न के ही बराबर हैं।
देश की शिक्षा व्यवस्था आज भी आजादी के पहले की व्यवस्था हैं, जिसमे बड़े पैमाने पर लोगों को लम्बे वक्त तक घेर कर रखना ही मूल रहा हैं। आज भी पारम्परिक शिक्षा व्यवस्था में लोगों की रूचि ज्यादा हैं, वरण आज के परिवेश में रोजगारपरक शिक्षा का महत्व बढ़ता जा रहा हैं। जहाँ विश्व के सभी देशों ने अपनी शिक्षा व्यवस्था को बहुत पहले ही मजबूत कर लिया। भारत अब भी अपनी गलतियों से सीख लेने को तैयार नहीं हैं।
आज अगर हमें विश्व महाशक्ति के रूप में उभरने की दिशा में कार्य करना हैं तो सही रास्ता चुनना होगा। सबसे पहले हमें अपनी शिक्षा व्यवस्था में अमूलचूल परिवर्तन करना होगा। कम उम्र के प्रोफेशनल पैदा करने होंगे और देश के भीतर ही अनेक नए क्षेत्रों का विस्तार करना होगा। इन कवायदों के साथ अगर हम कुछ साल भी सही दिशा में आगे बढ़ते हैं, तो देश प्रगति राह पर आगे बढ़ जाएगा और हमें विश्व महाशक्ति बनते देर नहीं लगेगी।
- संपादकीय
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