“मेकर ऑफ मॉडर्न इंडिया” राजा राममोहन राय - Kashi Patrika

“मेकर ऑफ मॉडर्न इंडिया” राजा राममोहन राय

महान समाज सुधारक राजा राममोहन राय के 246वें जन्मदिन पर उनके नाम है, आज का गूगल-डूडल, मुगलों से मिली थी 'राजा' की उपाधि



राजा राममोहन राय को 'आधुनिक भारत का निर्माता', 'आधुनिक भारत का जनक', 'बंगाल पुनर्जागरण का प्रणेता' और 'भारतीय पत्रकारिता के पायनियर' के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने आज से तकरीबन ढाई सौ साल पहले देश के सोते समाज को जगाने का बीड़ा उठाया, जब भारत एक दोराहे पर खड़ा था। एक तरफ अंग्रेज देश को गुलामी में जकड़ रहे थे, दूसरी तरफ कुरीतियां समाज को पीछे ले जा रही थीं।

राजा राममोहन राय मूर्तिपूजा, अंधविश्वास और रूढ़िवादी हिन्दू परंपराओं के विरुद्ध तो थे ही, उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों जैसे सती प्रथा, बाल विवाह के खिलाफ आवाज उठाई।

राम मोहन राय का जन्म बंगाल के हुगली जिसे के राधानगर में 22 मई 1772 ई. में हुआ था। उनके पिता रामकांत वैष्णव और उनकी मां तरिणी देवी शैव अनुयायी थी। राम मोहन की शुरुआती शिक्षा-दीक्षा बंगाल के ही एक गांव में हुई, जहां उन्होंने बांग्ला और संस्कृत का अध्ययन किया। इसके बाद वो फारसी पढ़ने पटना और अरबी पढ़ने मद्रास चले गए। उस वक्त मुगलों के शासन काल में फारसी और अरबी भाषा की बहुम मांग थी। इस दौरान उन्होंने कई धर्मग्रंथों का भी गूढ़ अध्ययन किया।

"ब्रह्म समाज" की स्थापना

राजा राममोहन राय का राजनीति, शिक्षा, पत्रकारिता और धार्मिक मामलों में किया गया योगदान अतुलनीय है। उन्होंने साल 1815 में आत्मीय सभा की स्थापना की, जो बाद में ब्रह्म सभा और फिर साल 1829 में 'ब्रह्म समाज' बन गया। ब्रह्म समाज का मानना है कि सभी धर्म एक हैं जो सामाजिक बदलाव में बड़ी भूमिका अदा कर सकते हैं। ब्रह्म समाज का मानना है कि पूजा के लिए समय और जगह नियत होनी चाहिए। इस समाज ने सती प्रथा के खिलाफ सफल अभियान चलाया। सती प्रथा में विधवाओं को पति की चिता में जिंदा जला दिया जाता था। राजा राम मोहन राय ने बाल विवाह के खिलाफ भी अपनी आवाज बुलंद की।


शिक्षा-दीक्षा में योगदान


शिक्षा के क्षेत्र में राजा राममोहन राय का योगदान अतुलनीय है। उन्होंने भारतीय शिक्षा पद्धति को आधुनिक बनाने के अनेक प्रयास किए। राम मोहन ने साल 1822 में कलकत्ता में हिंदू कॉलेज और एक एंग्लो-वैदिक स्कूल की भी स्थापना की। राममोहन राय अभिव्यक्ति की आजादी के पक्के पक्षधर रहे। उन्होंने कई बांग्ला, फारसी, हिंदी और अंग्रेजी अखबारों का प्रकाशन किया।

मुगलों से बनाया "राजा"

मुगल बादशाह अकबर द्वितीय ने साल 1831 में राममोहन राय को 'राजा' की उपाधि से नवाजा था। 27 सितंबर 1833 में 61 साल की उम्र में जब राजा राममोहन राय का देहांत हुआ, उस वक्त वह इंग्लैंड में थे और उस समय इंग्लैंड में दाह-संस्कार की अनुमति नहीं थी, इसलिए राममोहन राय को वहां दफ्न किया गया। 

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