शिथिलता का सुख/ओशो - Kashi Patrika

शिथिलता का सुख/ओशो

शरीर को रिलैक्स(शिथिल) करो और तुम आश्चर्यचकित रह जाओगे कि यदि तुम अपने शरीर के किसी भी हिस्से तक पहुंचते हो, वह सुनता है, वह तुम्हारा अनुसरण करता है...


जब तुम रिलैक्स होना शुरू करते हो, परिधि से शुरू करो-'वहां हम हैं, हम वहीं से शुरू कर सकते हैं जहां हम हैं।' अपनी चेतना की परिधि को रिलैक्स करो--अपने शरीर को रिलैक्स करो, अपने आचरण को रिलैक्स करो, अपने कृत्यों को रिलैक्स करो। रिलैक्स ढंग से चलो, रिलैक्स ढंग से खाओ, बातचीत करो, सुनो रिलैक्स ढंग से। हर प्रकिया को धीमा कर दो। जल्दी में मत रहो और उतावले ना रहो। ऐसे चलो जैसे कि सारा अनंत काल तुम्हें मिला हुआ है--सच तो यह है कि यह तुम्हें उपलब्ध है। हम हमेशा से यहां हैं और हम हमेशा यहां रहेंगे। रूप बदलते चले जाएंगे, पर सार नहीं बदलेगा। वस्त्र बदलते चले जाएंगे, पर आत्मा नहीं बदलेगी।

रिलैक्स होने का पहला चरण यह है कि अपने शरीर को रिलैक्स करो। और तुम आश्चर्यचकित होओगे कि यदि तुम अपने शरीर के किसी भी हिस्से तक पहुंचते हो, वह सुनता है, वह तुम्हारा अनुसरण करता है--यह तुम्हारा अपना शरीर है। बंद आंखों के साथ अपने शरीर के भीतर नख से सिर तक जाकर देखो कि तनाव कहां है। और तब उस हिस्से से बात करो जैसे कि तुम अपने मित्र से बात करते हो। अपने और अपने शरीर के साथ संवाद होने दो। उसे कहो कि रिलैक्स होओ, और उसे कहो, "यहां डरने की कोई जरूरत नहीं है। डरो मत। मैं यहां ध्यान रखने के लिए हूं, तुम रिलैक्स हो सकते हो।" धीरे-धीरे, तुम इसमें कुशल होना सीख जाओगे।

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