कर्नाटक विधानसभा भवन आज एचडी कुमारस्वामी की ताजपोशी के लिए सजकर तैयार है और उम्मीद है कि इस मंच पर भाजपा के विरुद्ध शक्ति प्रदर्शन के लिए विपक्ष के कई दिग्गज जुटेंगे। यानी, मंच से इतर एक और मंच तैयार हो रहा है। बेंगलुरु के इस सियासी मंच को 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए विपक्ष की मोर्चेबंदी की तरह देखा जा रहा है। बात जब विपक्षी एकजुटता दिखाने की है, तो मंच का नजारा भी काफी रोचक होगा, क्योंकि यहां कई ऐसे नेता साथ होंगे, जो अब तक एक-दूसरे के धुर विरोधी रहे हैं। सबसे दिलचस्प होगा उत्तर प्रदेश की राजनीति के दो दिग्गज अखिलेश यादव और मायावती का मंच साझा करना। यह पहली बार होगा, जब अखिलेश-मायावती किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में साथ होंगे। हालांकि, गोरखपुर उपचुनाव के दौरान इसके संकेत मिल गए थे, जब गोरखपुर-फूलपुर उपचुनाव में भाजपा को पटखनी देने के बाद अखिलेश यादव ने खुले तौर पर मायावती की तारीफ की थी। नतीजों के बाद अखिलेश खुद उनसे मिलने भी गए थे, वहीं मायावती ने भी कहा था कि सपा-बसपा की ये दोस्ती 2019 के चुनाव में भी देखने को मिल सकती है। ये जुगलबंदी इसी दिशा में एक और कदम प्रतीत हो रहा है, लेकिन राजनीति में कुछ भी तय नहीँ होता।
खैर, कर्नाटक के बहाने जुटने वालों की सूची लंबी है, जिसमें कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष व यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) प्रमुख शरद पवार, राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता तेजस्वी यादव, द्रमुक मुनेत्र कड़गम (द्रमुक) के नेता एमके स्टालिन, राष्ट्रीय लोकदल प्रमुख चौधरी अजित सिंह, माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी और अभिनेता से नेता बने कमल हासन के शामिल होने की अटकलें हैं। फिलहाल, कर्नाटक में सरकार के गठन को लेकर कांग्रेस सहित विपक्ष उत्साहित है और 2019 लोकसभा चुनाव को लेकर उसके हौसले कुछ सकारात्मक हैं।
उधर, भाजपा भी आगामी लोकसभा चुनाव में विजय को लेकर पूरी तरह आश्वस्त है। उसका तर्क है कि विपक्ष के एकजुट होने से कुछ नहीं होगा, क्योंकि मोदी इफेक्ट उसके साथ है। वैसे भी विपक्ष की दोस्ती में खुद ही कंफ्यूजन है। इस बात को इस तरह समझने का प्रयास किया जा सकता है कि शपथ ग्रहण समारोह से ठीक एक दिन पहले एचडी कुमारस्वामी ने स्वीकार किया है कि अगले पांच साल जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन की सरकार चलाना उनके लिए बड़ी चुनौती रहेगी। उन्होंने कहा, ‘मेरी जिंदगी की यह बड़ी चुनौती है। मैं यह अपेक्षा नहीं कर रहा कि मैं आसानी से मुख्यमंत्री के रूप में अपनी जिम्मेदारियों को पूरा कर पाऊंगा।’ यानी सिर्फ मंच साझा कर लेने से विचार साझा करना आसान नहीं होगा।
बहरहाल, सच सिर्फ इतना है कि राजनीति में सब जायज है। सत्ता के लिए कभी भी, किसी के भी साथ दोस्ती गांठी जा सकती है। और किसी भी पल दोस्ती तोड़ी भी जा सकती है। फिलहाल तो सियासतदारों को एक मंच पर बैठे देखना दिलचस्प होगा, क्योंकि फिर ये इत्तेफाक कब होगा कहा नहीं जा सकता।
- संपादकीय
खैर, कर्नाटक के बहाने जुटने वालों की सूची लंबी है, जिसमें कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष व यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) प्रमुख शरद पवार, राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता तेजस्वी यादव, द्रमुक मुनेत्र कड़गम (द्रमुक) के नेता एमके स्टालिन, राष्ट्रीय लोकदल प्रमुख चौधरी अजित सिंह, माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी और अभिनेता से नेता बने कमल हासन के शामिल होने की अटकलें हैं। फिलहाल, कर्नाटक में सरकार के गठन को लेकर कांग्रेस सहित विपक्ष उत्साहित है और 2019 लोकसभा चुनाव को लेकर उसके हौसले कुछ सकारात्मक हैं।
उधर, भाजपा भी आगामी लोकसभा चुनाव में विजय को लेकर पूरी तरह आश्वस्त है। उसका तर्क है कि विपक्ष के एकजुट होने से कुछ नहीं होगा, क्योंकि मोदी इफेक्ट उसके साथ है। वैसे भी विपक्ष की दोस्ती में खुद ही कंफ्यूजन है। इस बात को इस तरह समझने का प्रयास किया जा सकता है कि शपथ ग्रहण समारोह से ठीक एक दिन पहले एचडी कुमारस्वामी ने स्वीकार किया है कि अगले पांच साल जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन की सरकार चलाना उनके लिए बड़ी चुनौती रहेगी। उन्होंने कहा, ‘मेरी जिंदगी की यह बड़ी चुनौती है। मैं यह अपेक्षा नहीं कर रहा कि मैं आसानी से मुख्यमंत्री के रूप में अपनी जिम्मेदारियों को पूरा कर पाऊंगा।’ यानी सिर्फ मंच साझा कर लेने से विचार साझा करना आसान नहीं होगा।
बहरहाल, सच सिर्फ इतना है कि राजनीति में सब जायज है। सत्ता के लिए कभी भी, किसी के भी साथ दोस्ती गांठी जा सकती है। और किसी भी पल दोस्ती तोड़ी भी जा सकती है। फिलहाल तो सियासतदारों को एक मंच पर बैठे देखना दिलचस्प होगा, क्योंकि फिर ये इत्तेफाक कब होगा कहा नहीं जा सकता।
- संपादकीय
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