अहंकार छोटे-मोटे टीलों से खुश नहीं होता, राजी नहीं होता, उसे पहाड़ चाहिए। अगर दुख भी हो तो भी टीला न हो, गौरीशंकर हो। अगर वह दुखी भी है, तो साधारण रूप से दुखी होना नहीं चाहता, वह असाधारण रूप से दुखी होना चाहता है। लोग शून्य से बड़ी-बड़ी समस्याएं पैदा हैं, वे समस्या इसलिए बनाते हैं, क्योंकि समस्याओं के बगैर उन्हें खालीपन अनुभव होता है।
वास्तविक सद्गुरु कुछ और ही बात करते हैं। वे कहते रहे हैं, ' कृपा करके जो तुम कर रहे हो उसे देखो, जो बेवकूफी कर रहे हो उसे देखो। पहले तो तुम समस्या पैदा करते हो, और फिर समाधान की खोज में जाते हो। जरा देखो, तुम समस्या कयों पैदा कर रहे हो? ठीक शुरुआत में, जब तुम समस्या पैदा कर रहे हो, वहीं समाधान है। उसे पैदा मत करो। लेकिन यह तुम्हें रास नहीं आएगा क्योंकि तब फिर तुम अपने ऊपर जा गिरोगे, चारो खाने चीत हो जाओगे। कुछ करना नहीं?
केवल इतना ही समझना है कि तुम्हारी कोई समस्या नहीं है। इसी क्षण तुम सब समस्याएं मिटा सकते हो क्योंकि उन्हें बनानेवाले तुम ही हो। अपनी समस्याओं को गौर से देखो: तुम जितना गहरे देखोगे उतनी वे छोटी मालूम होंगी। नजर गड़ाकर उन्हें देखते जाओ, तो धीरे-धीरे वे नदारद हो जाएंगी। उन्हें देखते चले जाओ, और तुम पाओगे, वहां सिर्फ खालीपन है-- एक सुंदर खालीपन तुम्हें घेर लेता है। न कुछ करना है, न कुछ होना है, क्योंकि तुम वह हो ही।]
बुद्धत्व कुछ पाने जैसा नहीं है, उसे जीना है। जब मैं कहता हूं कि मैंने बुद्धत्व पा लिया तो उसका अर्थ इतना ही है कि मैंने उसे जीने का निश्चय किया। बस बहुत हो गया! और तब से मैंने उसे जीया है। यह निर्णय है कि अब समस्याएं पैदा करने में तुम्हें कोई रस नहीं है। बस। यह निर्णय है कि तुम अब समस्याएं पैदा करना और फिर उनके समाधान ढूंढना, इन बेवकूफियों से बाज आ गए हो।
यह पूरी बकवास एक खेल है जो तुम खुद के साथ खेल रहे हो । तुम खुद ही छिप रहे हो और खुद ही खोज रहे हो। तुम दोनों पक्ष हो, और तुम इसे जानते हो। इसलिए जब मैं इसे कहता हूं तो तुम मुस्कुराते हो, तुम हंसते हो। मैं कोई मूढ़तापूर्ण बात नहीं कह रहा हूं; तुम इसे समझ रहे हो। तुम अपने आप पर हंस रहे हो। जरा खुद को हंसते हुए देखो, खुद की मुस्कुराहट का निरीक्षण करो ।तुम उसे समझते हो। ऐसा होना ही है क्योंकि यह तुम्हारा अपन खेल है। तुम छिप रहे हो, और खुद का ही इंतजार कर रहे कि स्वयं को खोज निकाले।
तुम अभी खुद को खोज सकते हो, क्योंकि तुम स्वयं ही छिपे हुए हो। जब कोई आकर कहता है, ' मैं बुद्ध होना चाहता हूं।' गुरु बहुत नाराज होता है क्योंकि शिष्य बुद्ध है ही। अगर बुद्ध मेरे पास आए और पूछे, बुद्ध कैसे हुआ जाए? तो मुझे क्या करना चाहिए? मैं उसके सिर पर चोट करूंगा। तुम किसे धोखा दे रहे हो, तुम बुद्ध हो!
स्वयं के लिए नाहक समस्या मत खड़ी करो। और तुम्हारे भीतर समझ पैदा होगी जब तुम देखोगे कि तुम कैसे समस्या को बड़ी से बड़ी करते चले जाते हो, तुम कैसे उसे गति देते हो, और तुम कैसे चाक को जोर से और जोर से घुमाते हो। फिर अकस्मात तुम अपने दुख की चोटी पर होते हो, और तुम पूरी दुनिया की सहानुभूति चाहते हो।
अहंकार को कुछ समस्याओं की जरूरत होती है। यदि तुम इतनी सी बात समझ लो तो इसे समझते ही पर्वत फिर से टीले हो जाते हैं, और बाद में टीले भी विदा हो जाते हैं। अकस्मात चारों ओर खालीपन होता है, विशुद्ध खालीपन। बुद्धत्व का इतना ही अर्थ है: एक गहन समझ कि कोई समस्या नहीं है। फिर अगर कोई समस्या ही नहीं है तो तुम क्या करोगे? तुम फौरन जीना शुरू करोगे। तुम खाओगे, तुम सोओगे, तुम प्रेम करोगे, तुम गपशप करोगे, तुम गाओगे, तुम नाचोगे।
करने को और क्या है? तुम परमात्मा हो गए, तुमने जीना शुरू कर दिया!
-ओशो
वास्तविक सद्गुरु कुछ और ही बात करते हैं। वे कहते रहे हैं, ' कृपा करके जो तुम कर रहे हो उसे देखो, जो बेवकूफी कर रहे हो उसे देखो। पहले तो तुम समस्या पैदा करते हो, और फिर समाधान की खोज में जाते हो। जरा देखो, तुम समस्या कयों पैदा कर रहे हो? ठीक शुरुआत में, जब तुम समस्या पैदा कर रहे हो, वहीं समाधान है। उसे पैदा मत करो। लेकिन यह तुम्हें रास नहीं आएगा क्योंकि तब फिर तुम अपने ऊपर जा गिरोगे, चारो खाने चीत हो जाओगे। कुछ करना नहीं?
केवल इतना ही समझना है कि तुम्हारी कोई समस्या नहीं है। इसी क्षण तुम सब समस्याएं मिटा सकते हो क्योंकि उन्हें बनानेवाले तुम ही हो। अपनी समस्याओं को गौर से देखो: तुम जितना गहरे देखोगे उतनी वे छोटी मालूम होंगी। नजर गड़ाकर उन्हें देखते जाओ, तो धीरे-धीरे वे नदारद हो जाएंगी। उन्हें देखते चले जाओ, और तुम पाओगे, वहां सिर्फ खालीपन है-- एक सुंदर खालीपन तुम्हें घेर लेता है। न कुछ करना है, न कुछ होना है, क्योंकि तुम वह हो ही।]
बुद्धत्व कुछ पाने जैसा नहीं है, उसे जीना है। जब मैं कहता हूं कि मैंने बुद्धत्व पा लिया तो उसका अर्थ इतना ही है कि मैंने उसे जीने का निश्चय किया। बस बहुत हो गया! और तब से मैंने उसे जीया है। यह निर्णय है कि अब समस्याएं पैदा करने में तुम्हें कोई रस नहीं है। बस। यह निर्णय है कि तुम अब समस्याएं पैदा करना और फिर उनके समाधान ढूंढना, इन बेवकूफियों से बाज आ गए हो।
यह पूरी बकवास एक खेल है जो तुम खुद के साथ खेल रहे हो । तुम खुद ही छिप रहे हो और खुद ही खोज रहे हो। तुम दोनों पक्ष हो, और तुम इसे जानते हो। इसलिए जब मैं इसे कहता हूं तो तुम मुस्कुराते हो, तुम हंसते हो। मैं कोई मूढ़तापूर्ण बात नहीं कह रहा हूं; तुम इसे समझ रहे हो। तुम अपने आप पर हंस रहे हो। जरा खुद को हंसते हुए देखो, खुद की मुस्कुराहट का निरीक्षण करो ।तुम उसे समझते हो। ऐसा होना ही है क्योंकि यह तुम्हारा अपन खेल है। तुम छिप रहे हो, और खुद का ही इंतजार कर रहे कि स्वयं को खोज निकाले।
तुम अभी खुद को खोज सकते हो, क्योंकि तुम स्वयं ही छिपे हुए हो। जब कोई आकर कहता है, ' मैं बुद्ध होना चाहता हूं।' गुरु बहुत नाराज होता है क्योंकि शिष्य बुद्ध है ही। अगर बुद्ध मेरे पास आए और पूछे, बुद्ध कैसे हुआ जाए? तो मुझे क्या करना चाहिए? मैं उसके सिर पर चोट करूंगा। तुम किसे धोखा दे रहे हो, तुम बुद्ध हो!
स्वयं के लिए नाहक समस्या मत खड़ी करो। और तुम्हारे भीतर समझ पैदा होगी जब तुम देखोगे कि तुम कैसे समस्या को बड़ी से बड़ी करते चले जाते हो, तुम कैसे उसे गति देते हो, और तुम कैसे चाक को जोर से और जोर से घुमाते हो। फिर अकस्मात तुम अपने दुख की चोटी पर होते हो, और तुम पूरी दुनिया की सहानुभूति चाहते हो।
अहंकार को कुछ समस्याओं की जरूरत होती है। यदि तुम इतनी सी बात समझ लो तो इसे समझते ही पर्वत फिर से टीले हो जाते हैं, और बाद में टीले भी विदा हो जाते हैं। अकस्मात चारों ओर खालीपन होता है, विशुद्ध खालीपन। बुद्धत्व का इतना ही अर्थ है: एक गहन समझ कि कोई समस्या नहीं है। फिर अगर कोई समस्या ही नहीं है तो तुम क्या करोगे? तुम फौरन जीना शुरू करोगे। तुम खाओगे, तुम सोओगे, तुम प्रेम करोगे, तुम गपशप करोगे, तुम गाओगे, तुम नाचोगे।
करने को और क्या है? तुम परमात्मा हो गए, तुमने जीना शुरू कर दिया!
-ओशो
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