जब लोगों ने देखा कि साधु महाराज अभी भी पेड़ के नीचे बैठे परमात्मा का नाम जप रहे हैं, तो एक ग्रामीण ने उन्हें यह जगह छोड़ने की सलाह दी। पर साधु ने कहा- ”तुम लोग अपनी जान बचाओ मुझे तो मेरा परमात्मा बचाएगा!” धीरे-धीरे पानी का स्तर बढ़ता गया और पानी साधु के कमर तक आ पहुंचा।
इतने में वहां से एक नाव गुजरी। मल्लाह ने कहा- ”हे साधू महाराज आप इस नाव पर सवार हो जाइए मैं आपको सुरक्षित स्थान तक पहुंचा दूंगा।" साधू ने कहा- नहीं, मुझे तुम्हारी मदद की आवश्यकता नहीं है , मुझे तो मेरा परमात्मा बचाएगा !! नाव वाला चुप-चाप वहां से चला गया।
कुछ देर बाद बाढ़ और प्रचंड हो गई, फिर साधु ने पेड़ पर चढ़ना उचित समझा और वहां बैठकर परमात्मा को याद करने लगे, तभी अचानक उन्हें गड़गड़ाहट की आवाज सुनाई दी, एक हेलिकाप्टर उनकी मदद के लिए आ पहुंचा, बचाव दल ने एक रस्सी लटकाई और साधु को उस रस्सी को जोर से पकड़ने का आग्रह किया। पर साधु फिर बोला- ”मैं इसे नहीं पकडूंगा, मुझे तो मेरा परमात्मा बचाएगा।” उनकी इतनी हठ के आगे बचाव दल भी उन्हें लिए बगैर वहां से चला गया।
कुछ ही देर में पेड़ बाढ़ की धारा में बह गया और साधु की मृत्यु हो गई। प्राण त्यागते वक्त साधु महाराज ने परमात्मा से पूछा- "हे मालिक, मैंने तुम्हारी पूरी लगन के साथ आराधना की… तपस्या की, पर जब मैं पानी में डूबकर मर रहा था, तब तुम मुझे बचाने नहीं आए, ऐसा क्यों मालिक?
मालिक बोले, ”हे साधु महात्मा, मैं तुम्हारी रक्षा करने एक नहीं, बल्कि तीन बार आया। पहला, ग्रामीण के रूप में, दूसरी बार मल्लाह के रूप में और तीसरी बार हैलीकॉप्टर से रस्सी फेंककर, लेकिन तुम पहचान ही नहीं पाए। साधू को अपनी गलती का अहसास हुआ और सोचने लगा कि मैं भक्ति साधना कर अपने अंदर बैठे परमात्मा को देखने की कोशिश करता रहा, लेकिन ये भूल गया कि परमात्मा सृष्टि के हर जीव में बसता है।
वास्तव में आत्मा ही परमात्मा का स्वरुप है, कमी सिर्फ हमारे पहचान की है।
ऊं तत्सत...
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