भारत और रूस के बीच एक महत्वपूर्ण रिश्ता रहा है,जो विश्वास पर कायम है। इसमें किसी दूसरे देश का हस्तक्षेप न तो कभी रूस ने स्वीकारा है और न ही कभी भारत ने, अगले हफ्ते जब रूस में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति पुतिन साथ होंगे, तो फिर से एक बार पुराने रिश्तों में नई गर्माहट आएगी।
रूस विश्व में भारत का सबसे पुराना साझेदार रहा है और रिश्तों की नजदीकियां इस कदर पास है कि भारत में आज भी रूस को अमेरिका से ज्यादा तवज्जों दिया जाता है। बदलते दौर के साथ रूस ने अपनी नजदीकियां चीन से बढ़ाई और भारत ने अमेरिका के साथ। दोनों देशो के आतंरिक हालत और संस्कृति भी बहुत हद तक एक ही है, जहाँ एक ओर रूस शीत युद्ध के बाद अपने से अलग हुए देशों से यदा-कदा परेशान रहता है, वैसे ही भारत भी आजादी के बाद विभाजन के दंश के रूप में पाकिस्तान की नादानियों को ढोता आया है। और यह स्थिति तब तक ऐसी रहेगी जब तक इन विभाजित देशो के आतंरिक हालत नहीं बदलते या कोई आतंरिक शक्ति इन्हें अपने मूल देश से निकटता करने को तैयार नहीं करती।
तमाम दुश्वारियों के वाबजूद दोनों देशों ने तरक्की के वो आयाम कायम किए है कि आज वो देश जिनसे इन दोनों देशो ने सम्बन्ध स्थापित किए थे, परस्पर बराबरी पर खड़े है। एक और जहाँ ट्रेड वार में फंसे चीन और अमेरिका अपने संसाधनों का इस्तेमाल एक दूसरे को नीचा दिखाने में कर रहें हैं। वही भारत और रूस अपनी बढ़ती शक्ति का इस्तेमाल दूसरे देशो की भलाई के लिए कर रहें है।
आज जब विश्व में एक नई क्रांति ने जन्म लिया है, जिसका जन्मदाता भारत का लोकतंत्र है जो सभी के कौतुहल का विषय बना हुआ है। ऐसे भारत के सबसे पुराने साथी के साथ द्विपक्षीय वार्ता विश्व को नए दौर में ले जाएगी। भारत के इर्द-गिर्द घूमती नए विश्व की ये नीति अब रूस के लिए नए रास्तों का सृजन करेगी, जिसमें हिंसा का कोई स्थान नहीं हैं। इस बार की वार्ता में अनुमानतः जब दोनों राष्ट्राध्यक्ष मिल रहे होंगे तो अगले सौ वर्षो के पारस्परिक सम्बन्धों का खाका साथ लिए होंगे।
- संपादकीय
रूस विश्व में भारत का सबसे पुराना साझेदार रहा है और रिश्तों की नजदीकियां इस कदर पास है कि भारत में आज भी रूस को अमेरिका से ज्यादा तवज्जों दिया जाता है। बदलते दौर के साथ रूस ने अपनी नजदीकियां चीन से बढ़ाई और भारत ने अमेरिका के साथ। दोनों देशो के आतंरिक हालत और संस्कृति भी बहुत हद तक एक ही है, जहाँ एक ओर रूस शीत युद्ध के बाद अपने से अलग हुए देशों से यदा-कदा परेशान रहता है, वैसे ही भारत भी आजादी के बाद विभाजन के दंश के रूप में पाकिस्तान की नादानियों को ढोता आया है। और यह स्थिति तब तक ऐसी रहेगी जब तक इन विभाजित देशो के आतंरिक हालत नहीं बदलते या कोई आतंरिक शक्ति इन्हें अपने मूल देश से निकटता करने को तैयार नहीं करती।
तमाम दुश्वारियों के वाबजूद दोनों देशों ने तरक्की के वो आयाम कायम किए है कि आज वो देश जिनसे इन दोनों देशो ने सम्बन्ध स्थापित किए थे, परस्पर बराबरी पर खड़े है। एक और जहाँ ट्रेड वार में फंसे चीन और अमेरिका अपने संसाधनों का इस्तेमाल एक दूसरे को नीचा दिखाने में कर रहें हैं। वही भारत और रूस अपनी बढ़ती शक्ति का इस्तेमाल दूसरे देशो की भलाई के लिए कर रहें है।
आज जब विश्व में एक नई क्रांति ने जन्म लिया है, जिसका जन्मदाता भारत का लोकतंत्र है जो सभी के कौतुहल का विषय बना हुआ है। ऐसे भारत के सबसे पुराने साथी के साथ द्विपक्षीय वार्ता विश्व को नए दौर में ले जाएगी। भारत के इर्द-गिर्द घूमती नए विश्व की ये नीति अब रूस के लिए नए रास्तों का सृजन करेगी, जिसमें हिंसा का कोई स्थान नहीं हैं। इस बार की वार्ता में अनुमानतः जब दोनों राष्ट्राध्यक्ष मिल रहे होंगे तो अगले सौ वर्षो के पारस्परिक सम्बन्धों का खाका साथ लिए होंगे।
- संपादकीय
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