काशी सत्संग: खुदा तेरा जवाब नहीं - Kashi Patrika

काशी सत्संग: खुदा तेरा जवाब नहीं


ठंड का मौसम था। तापमान 0 डिग्री के करीब था। एक बेसहारा बूढ़ा दरगाह के सामने वाले फुटपाथ पर लेटा ठंड से बुरी तरह कांप रहा था। उसके ठीक सामने मजार पे चादर चढ़ाने वालों की कतार लगी हुई थी। वह हर चादर में अपना जीवन देख रहा था, परंतु कोई उसे चादर क्यों देगा? हरेक को चादर चढ़ाकर अपने लिए उज्वल भविष्य जो मांगना था।

तभी एक मजदूर उसी फुटपाथ से गुजर रहा था। उसकी नजर इस बूढ़े पर पड़ी। उसकी हालत देख वह समझ गया कि यदि आज की रात इसने ऐसे ही काटी तो मर भी सकता है। उसने हाथ पकड़कर बूढ़े को उठाया और अपने घर चलने को कहा। बूढ़ा भी हैरान था, क्योंकि वह अकेला ही था जो सड़क से गुजरने के बाद भी दरगाह नहीं जा रहा था।

बूढ़े ने मजदूर से आश्चर्य से पूछा भी कि भाई मेरे, तुम्हें अल्लाह से कुछ नहीं मांगना है? वह बोला- मांगना तो है, पर वह देता है कि नहीं इसका यकीन नहीं। जबकि मेहनत करने पर मजदूरी मिल ही जाती है। खैर, वह सब छोड़ो और घर चलो। अब बूढ़ा तो कोई आसरा चाहता ही था। उधर वह मजदूर बड़ा ही कोमल हृदय था। उसने बूढ़े को ना सिर्फ भोजन कराया, बल्कि रात भर दोनों सिकुड़कर एक चादर में सो भी गए।

सुबह तक बूढ़े की हालत काफी सम्भल चुकी थी। बस उसने आसमान की तरफ ऐलान करते हुए कहा- वाह रे खुदा, तू पता तो नक्काशीदार कारिगरी से बनी आलीशान दरगाहों का देता है और रहता रहमदिल गरीबों के दिल में है।
ऊं तत्सत..

No comments:

Post a Comment