प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में मंगलवार को फ्लाईओवर का एक हिस्सा गिरने के बाद ही शासन-प्रशासन की ओर से सरकारी कवायद शुरू हो गई। अब तक जांच कमेटी बन चुकी है, इस पूरे मामले पर मुख्यमंत्री-प्रधानमंत्री कार्यालय की नजर बनी हुई है। आनन-फानन में कुछ अधिकारियों का निलंबन पहले दिन ही कर दिया गया, बावजूद इसके न्याय और कार्यवाही को लेकर संशय क्यों बरकरार है, इसे समझने की कोशिश करते हैं...
गुरुवार को उत्तर प्रदेश सेतु निगम के महाप्रबंधक राजन मित्तल को पद से हटाकर उनके स्थान पर लोक निर्माण विभाग के चीफ इंजीनियर जेके श्रीवास्तव को नया महाप्रबंधक बनाया गया है। हालांकि, राजन मित्तल उत्तर प्रदेश राज्य निर्माण निगम के महाप्रबंधक बने रहेंगे। ऐसे में, कड़ी कार्यवाही की बात संदेह पैदा करती है।
सरकारों पर मित्तल प्रभाव
बहरहाल, राजन मित्तल को प्रदेश के चुनिंदा सम्पर्कधर्मी अधिकारियों में शुमार किया जाता रहा है। सूत्रों के मुताबिक पिछली समाजवादी पार्टी सरकार में तत्कालीन लोक निर्माण मंत्री शिवपाल यादव की अनुकंपा से इन्हें राज्य सेतु निगम के महाप्रबंधक का पद तब मिला था, जब इनके ऊपर पहले से ही आगरा के इनके पिछले कार्यकाल (चीफ इंजीनियर लोक निर्माण विभाग ) को लेकर गंभीर आरोप लगे थे। समाजवादी परिवार में शुरू हुई राजनैतिक उठापटक के बीच पार्टी पदाधिकारियों की शिकायत के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के इशारे पर इन्हें कुछ दिन के लिए पद से हटा भी दिया था। प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद उन्हें आगरा से झांसी स्थानांतरित किया गया था, लेकिन जाने किस दबाव के बाद इस आदेश को रद्द करते हुए राजन मित्तल को प्रतिनियुक्ति पर दोबारा तैनाती दे दी गई थी।
मित्तल पर आरोप पहले भी लगते रहे हैं। बसपा सरकार में इनके अधिशासी अभियंता के पद पर तैनाती के दौरान इनके ऊपर कई बड़े-बड़े टेंडरों को दुकड़ों में काटकर चहेतों को उपकृत करने के आरोप लगे थे। उस शासन काल में समाजवादी पार्टी खेमे के कुछ ठेकेदारों ने जब इनकी शिकायत की तो संबंधित अधिकारियों ने उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया। पीडब्ल्यूडी के तत्कालीन प्रमुख अभियंता एवं विभागाध्यक्ष और मायावती के करीबी टी.राम ने इस पूरे मामले को आसानी से दबा दिया था।
2012 में सरकार बदलने के बाद तत्कालीन लोक निर्माण मंत्री शिवपाल यादव ने अनुकंपा करते हुए मित्तल को राज्य सेतु निगम का महाप्रबंधक बना दिया। मित्तल के सेतु निगम के महाप्रबंधक बनते ही जिन एसपी नेताओं और ठेकेदारों ने अधिशासी अभियंता रहते मित्तल की शिकायत की थी, उन्होंने दोबारा तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से भी इनकी शिकायत की। इस पर तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक मामले को लेकर इन पर सतर्कता जांच के आदेश दिए. इसी के बाद तत्कालीन लोक निर्माण मंत्री शिवपाल यादव ने मित्तल को सेतु निगम के एमडी के पद से हटा दिया था।
पहले भी लगे हैं आरोप
राजन मित्तल ने आगरा में मुख्य अभियंता का पद संभालने के बाद मानकों को ताक पर रखते हुए नाना प्रकार के काम किए, लेकिन सबसे बड़ा मामला तब प्रकाश में आया जब उन्होंने आगरा के एक सरसों तेल के व्यापारी शिव कुमार राठौर के भाई देवेन्द्र राठौर की कंपनी को 1200 करोड़ रुपये के टेंडर दे दिए। राठौर की कंपनी आरपी इंफ्रास्ट्रक्चर को 800 करोड़ का पहला टेंडर दिया गया था, लेकिन इस टेंडर को प्राप्त करने के लिए आरपी इंफ्रांस्ट्रक्चर के पास न तो कोई जरूरी अनुभव था और न ही अन्य योग्यतायें थीं, जो लोक निर्माण विभाग के टेंडरों के लिए अनिवार्य थीं. अनुकंपा की सीमा की हद तब हो गई जब इस टेंडर के लिए जमा होने वाले 25 करोड़ रुपयों की धनराशि के एफडीआर की भी तत्कालीन मुख्य अभियंता राजन मित्तल ने बगैर जांच किए पास कर दिया।
गौरतलब है कि नियमानुसार लोक निर्माण विभाग में किसी भी टेंडर के लिए केवल स्टेट बैंक आफ इंडिया या फिर उसकी सहायक किसी राष्ट्रीयकृत बैंक से ही जारी एफडीआर को ही स्वीकार किया जाता है। इस नियम के बावजूद मित्तल ने नियमों को ताक पर रखकर कोआपरेटिव बैंक की 25 करोड़ की फर्जी एफडीआर को स्वीकार करते हुए मथुरा-आगरा के बीच 800 करोड़ रुपए के सड़क निर्माण के कार्य के लिए आरपी इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ अनुबंध कर लिया। इसके बाद मित्तल और आरपी इंफ्रास्ट्रक्चर के बीच टेंडर देने-लेने का सिलसिला लंबे समय तक जारी रहा। मित्तल ने उसके बाद बरसाना, गोवर्धन और डींग इलाकों में सड़क निर्माण के लिए निकले 458 करोड़ रुपए के टेंडर भी आरपी इंफ्रास्ट्रक्चर की झोली में डाल दिए। इन टेंडरों को देने में भी वही प्रक्रिया अपनाई गई, जो पिछली बार अपनाई गई थी और मित्तल आसानी से पद पर जमे रहे।
भाजपा नेताओं ने भी की थी शिकायत
सितंबर 2017 में स्थानीय भज नेताओं ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पास मित्तल की कारगुजारियों को लेकर शिकायत भी की थी। लेकिन कार्यवाही के आश्वासन के सिवा कोई नतीजा नहीं निकला था और वे आराम से अपने पद पर जमे रहे। वाराणसी हादसे के बाद भी मित्तल के आत्मविश्वास के में कोई कमी नहीं आई और उन्होंने फौरन बयान दिया कि पुल में इस्तेमाल हुए कंक्रीट, सरिया और डिजाइन में कोई गड़बड़ी नहीं है। उन्होंने बड़ी आसानी से आंधी और तूफान को बीम खिसकने का कारण बता डाला।
खैर, मित्तल को पूरी तरह कठघरे में खड़ा करना जल्दबाजी होगी। वैसे भी, माना जा रहा है कि इस मामले में दोषी अफसरों पर कार्यवाही का सिलसिला अभी जारी रहेगा, क्योंकि मामला सरकार और वरिष्ठ नेताओं की साख से जुड़ा है। सबको इस बात का अंदेशा भी है कि कहीं यह मामला भी सरकारी फाइलों में सिमटकर न रह जाए। अब यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि इस हादसे को लापरवाही के चलते बुलावा देने वाले अफसर नपते हैं या कार्यवाही खानापूर्ति तक सिमट कर रह जाती है।
(साभार)
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