विश्व के बदलते हालात में महत्वपूर्ण मित्र देशों व पड़ोसियों के साथ संबंध सुधरना मौजूदा वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है। सरकार इसी दिशा में आगे बढ़ती दिख रही है और इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को महज एक दिन की यात्रा पर रूस जा रहे हैं। जर्मनी और चीन के बाद रूस ही ऐसा देश है, जहां मोदी अपने 4 साल के कार्यकाल के दौरान चौथी बार जाएंगे। साल 2015 में मोदी दो बार रूस गए थे। पिछले साल सेंट पीटर्सबर्ग में दोनों देशों की शिखर बैठक में शामिल हुए थे। ताजाताजा मुलाकात भले एक दिन की हो लेकिन, रूस के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति पुतिन के साथ सूची में उनकी छह घंटे की अनौपचारिक बैठक का विशेष अर्थ है।
मोदी ने हाल में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ भी अनौपचारिक मुलाकात की थी। अनौपचारिक बैठकों का न तो एजेंडा घोषित किया जाता है और न बाद में कोई घोषणा की जाती है। इसके बावजूद इन बैठकों का अंतरराष्ट्रीय राजनीति में विशेष महत्व है।
यह दरअसल औपचारिक मुलाकातों और संधियों के लिए की जाने वाली तैयारियां हैं। इन दिनों अमेरिका और रूस के बीच बढ़ता टकराव नए शीतयुद्ध की पटकथा लिख रहा है और उसमें रूस की शस्त्र कंपनी पर लगाई गई अमेरिकी पाबंदी भारत को सीधे प्रभावित करती है। अमेरिका से भारत के हथियारों की खरीद में कई सौ गुना बढ़ोतरी होने के बावजूद अभी भी भारत हथियारों का सबसे ज्यादा सौदा रूस से ही करता है। रूसी कंपनी पर लगी अमेरिकी पाबंदी से भारत को छूट दिलाने के लिए भारत ट्रम्प प्रशासन के साथ अमेरिकी कांग्रेस में भी पैरवी कर रहा है।
बदलती अंतरराष्ट्रीय स्थितियों के बारे में दोनों देशों में एक समझदारी विकसित करना जरूरी है। उनमें ईरान के नाभिकीय सौदे से अमेरिका का वाकआउट, भारत द्वारा विकसित किए जा रहा ईरान का चाबहार बंदरगाह, अफगान-पाकिस्तान की नीति, सीरिया समेत पश्चिम एशिया का संकट जैसे कई मसले शामिल हैं। पाकिस्तान और रूस की बढ़ती निकटता भी एक मसला है लेकिन, उस पर चर्चा होगी या नहीं यह स्पष्ट नहीं है।
जब जून में शंघाई सहयोग संगठन के लिए चीन में, जुलाई में ब्रिक्स के लिए दक्षिण अफ्रीका में, अक्तूबर में दिल्ली में और नवंबर में जी-20 के लिए अर्जेंटीना में पुतिन और मोदी मिलने वाले हैं, तो इस अनौपचारिक मुलाकात का विशेष अर्थ जरूर है। मोदी की यह यात्रा संवेदनशील अंतरराष्ट्रीय स्थितियों के दौर में हो रही है और दुनिया के मंच पर नई ताकत के तौर पर उभरता भारत उन जटिलताओं को सुलझाने में कोई भूमिका निभाना चाहता है। संभवतः भारत अपने पुराने दोस्त को भरोसा भी देना चाहता है कि उसे अमेरिका और इजरायल तो चाहिए लेकिन, रूस की पुरानी मैत्री छोड़कर नहीं।
कुल मिलाकर, साफ है कि मोदी और पुतिन की मुलाकात प्रासंगिक है और कुछ मुलाकातों के तात्कालिक नतीजे नहीँ होते, ये संबंधों के नवीनीकरण के रूप में देखे जाने चाहिए, जो विश्व के पल-पल बदलती पस्थितियों की मांग है।
-संपादकीय
मोदी ने हाल में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ भी अनौपचारिक मुलाकात की थी। अनौपचारिक बैठकों का न तो एजेंडा घोषित किया जाता है और न बाद में कोई घोषणा की जाती है। इसके बावजूद इन बैठकों का अंतरराष्ट्रीय राजनीति में विशेष महत्व है।
यह दरअसल औपचारिक मुलाकातों और संधियों के लिए की जाने वाली तैयारियां हैं। इन दिनों अमेरिका और रूस के बीच बढ़ता टकराव नए शीतयुद्ध की पटकथा लिख रहा है और उसमें रूस की शस्त्र कंपनी पर लगाई गई अमेरिकी पाबंदी भारत को सीधे प्रभावित करती है। अमेरिका से भारत के हथियारों की खरीद में कई सौ गुना बढ़ोतरी होने के बावजूद अभी भी भारत हथियारों का सबसे ज्यादा सौदा रूस से ही करता है। रूसी कंपनी पर लगी अमेरिकी पाबंदी से भारत को छूट दिलाने के लिए भारत ट्रम्प प्रशासन के साथ अमेरिकी कांग्रेस में भी पैरवी कर रहा है।
बदलती अंतरराष्ट्रीय स्थितियों के बारे में दोनों देशों में एक समझदारी विकसित करना जरूरी है। उनमें ईरान के नाभिकीय सौदे से अमेरिका का वाकआउट, भारत द्वारा विकसित किए जा रहा ईरान का चाबहार बंदरगाह, अफगान-पाकिस्तान की नीति, सीरिया समेत पश्चिम एशिया का संकट जैसे कई मसले शामिल हैं। पाकिस्तान और रूस की बढ़ती निकटता भी एक मसला है लेकिन, उस पर चर्चा होगी या नहीं यह स्पष्ट नहीं है।
जब जून में शंघाई सहयोग संगठन के लिए चीन में, जुलाई में ब्रिक्स के लिए दक्षिण अफ्रीका में, अक्तूबर में दिल्ली में और नवंबर में जी-20 के लिए अर्जेंटीना में पुतिन और मोदी मिलने वाले हैं, तो इस अनौपचारिक मुलाकात का विशेष अर्थ जरूर है। मोदी की यह यात्रा संवेदनशील अंतरराष्ट्रीय स्थितियों के दौर में हो रही है और दुनिया के मंच पर नई ताकत के तौर पर उभरता भारत उन जटिलताओं को सुलझाने में कोई भूमिका निभाना चाहता है। संभवतः भारत अपने पुराने दोस्त को भरोसा भी देना चाहता है कि उसे अमेरिका और इजरायल तो चाहिए लेकिन, रूस की पुरानी मैत्री छोड़कर नहीं।
कुल मिलाकर, साफ है कि मोदी और पुतिन की मुलाकात प्रासंगिक है और कुछ मुलाकातों के तात्कालिक नतीजे नहीँ होते, ये संबंधों के नवीनीकरण के रूप में देखे जाने चाहिए, जो विश्व के पल-पल बदलती पस्थितियों की मांग है।
-संपादकीय
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